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30 करोड़ पौधरोपण से प्रदेश को मिलेगी कुपोषण से मुक्ति, बढ़ेगी प्रतिरोधक क्षमता

उत्तर प्रदेश में इस साल 30 करोड़ पौधरोपण होना है. पौधों से हमें ऑक्सीजन मिलती है. वृक्षारोपण से ज्यादा लोगों के कुपोषण निवारण में सहायक होगा.

लखनऊ में पौधरोपण.
लखनऊ में पौधरोपण.

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Published : Jun 11, 2021, 1:06 AM IST

लखनऊ:उत्तर प्रदेश में इस वर्ष 30 करोड़ पौधरोपण होना है. इस बृहद वृक्षारोपण से ज्यादा लोगों के कुपोषण निवारण में सहायक होगा. वहीं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि भी होगी. प्रदेश में विशेषकर महिलाओं, बच्चों एवं निर्बल व निर्धन वर्ग में कुपोषण व भोजन की समस्या के दृष्टिगत सहजन एवं गरीबों के लिए उपयोगी 'गरीब का भोजन’ कहे जाने वाले महुआ पौध का रोपण भारी पैमाने पर किया जाएगा. वहीं प्रदेश की योगी सरकार बड़ी संख्या में लोगों को कुपोषण से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ बढ़ाने पर केंद्रित होगा.

पोषक तत्वों से भरपूर है सहजन
मुख्य वन संरक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि सहजन की पत्तियों एवं फलों में कैल्शियम, आयरन, प्रोटीन प्रचुर मात्रा पाया जाता है. सहजन की पत्तियों, बीज व फल से गठिया, मधुमेह, चर्मरोग सहित विभिन्न रोगों की औषधियां में काम आता हैं. मुख्य वन संरक्षक प्रचार-प्रसार मुकेश कुमार ने बताया कि सहजन तेज गति से बढ़ने वाला माध्यम आकार व लम्बी फलियों वाला वृक्ष है. सहजन सूखा सहन करने वाला वृक्ष है. नई पत्तियों व फलियों का उपयोग सब्जी व पराम्परागत औषधि के रूप में होने के कारण वन विभाग द्वारा विभागीय वृक्षारोपण कार्यक्रमों में सहजन का रोपण वृहद् स्तर पर किया जा रहा है, वन विभाग की नर्सरी में 78 लाख से अधिक पौधे हैं.


बड़े काम का महुआ, गुणों से भरपूर
मुख्य वन संरक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि महुआ मोटे तने, फैली शाखाओं, गोल छत्र वाला विशाल व बहु उपयोगी वृक्ष है. इसके मीठे फूल आदिवासियों और गांवों के निर्धन परिवारों का मुख्य भोजन है. इसे कच्चा या पका कर खाने, सुखाकर आटे में मिलाकर रोटी बनाने के काम में लाया जाता है. यह अति निर्धन वर्ग के ग्रामवासियों का मुख्य भोजन होने के कारण वृक्षारोपण क्षेत्र में बड़ी संख्या में रोपित किया जा रहा है. प्रदेश की पौधशालाओं में महुआ के 8.30 लाख से अधिक पौधे का रोपण होगा. मुकेश कुमार ने बताया कि कुपोषण निवारण एवं प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करने वाले कुल फलदार 6,12,64,367 तथा औषधीय एवं सुगन्धित 4,36,02062 पौधे वन विभाग की पौधशालाओं में मौजूद हैं.

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