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लखनऊ में बढ़ गए स्पर्म संरक्षित कराने वाले पुरुष, जानिए माजरा क्या है ?. - स्पर्म बैंक का खर्च

कुछ साल पहले तक स्पर्म संरक्षण एरक टैबू था. लोग खुलकर इस मुद्दे पर बात नहीं करते थे. मगर हालात बदले तो जरूरतमंद लोग अपने वंश और संतान के लिए स्पर्म को संरक्षित कराने लगे. लखनऊ के स्पर्म बैंकों में महीने में पांच लोग पहुंच रहे हैं. हालांकि उनमें अधिकतर लोग गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं और वह अपने परिवार के भविष्य के लिए स्पर्म संरक्षित करा रहे हैं..

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Published : Nov 18, 2022, 8:17 PM IST

लखनऊ : मौजूदा दौर में कैंसर से जंग लड़ रहे मरीज अपने वंश को लेकर चिंतित रहते हैं. अपने वंश आगे चलाने के लिए अपने स्पर्म (शुक्राणु) को संरक्षित करा रहे हैं. लखनऊ के कई सरकारी और निजी स्पर्म बैंक में हर महीने आठ से दस मरीज पहुंच रहे हैं. क्वीन मैरी अस्पताल की वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा सचान ने बताया कि पहले स्पर्म संरक्षित कराने को लेकर लोग संकोच करते थे. लेकिन अब बहुत सारे मरीज हैं, जो अपने वंश को आगे बढ़ाने को लेकर अपनी स्वेच्छा से अपने स्पर्म को सुरक्षित स्पर्म बैंक में रखवा रहे हैं. इसमें ज्यादातर वहीं लोग होते है जो किसी जानलेवा बीमारी से ग्रसित होते है या जो देश की सेवा में बॉर्डर पर जंग लड़ते हैं..

जानकारी देती वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ. रेखा सचान.
डॉ. रेखा सचान ने बताया कि बताया कि यह बात सच है कि कैंसर से जंग लड़ रहे मरीज अपने वंश को लेकर चिंतित रहते हैं. उनका वंश आगे न चलता रहे, इसके लिए वे अपने स्पर्म (शुक्राणु) को संरक्षित करा रहे हैं. शहर के निजी स्पर्म बैंक में हर महीने चार से पांच कैंसर रोगी पहुंच रहे हैं. इन मरीजों को डर है कि कैंसर के कारण कहीं उनकी प्रजनन क्षमता खत्म न हो जाए. उन्होंने कहा कि बार-बार कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी कराने से पुरुष और महिला रोगियों की प्रजनन क्षमता प्रभावित होने की आशंका रहती है. परिवार के भविष्य को देखते हुए वे स्पर्म संरक्षित कर रहे हैं, ताकि भविष्य में बिना किसी परेशानी संतान प्राप्ति हो सके.

डॉक्टरों का कहना है कि पहले इक्का- दुक्का लोग ही आते थे, अब उनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है. अभी लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में स्पर्म बैंक नहीं हैं. यहां पति के द्वारा जो महिलाएं गर्भधारण करती हैं, उनके लिए अलग से सीमेन बैंक से शुक्राणु आते हैं. ऐसे में लोग निजी आईवीएफ सेंटर जा रहे हैं. शहर में 20 से 25 निजी आईवीएफ सेंटर हैं. वहां हर महीने कैंसर के करीब चार से पांच मरीज स्पर्म संरक्षित कराने पहुंच रहे हैं. इंदिरा आईवीएफ सेंटर के हेड डॉ. आरबी सिंह ने बताया कि स्पर्म संरक्षित कराने वालों में सबसे अधिक तादाद कैंसर रोगियों की है.


आठ से दस हजार सालाना खर्च :डॉ सचान ने बताया कि सरकारी अस्पताल आईवीएफ पद्धति से ट्रीटमेंट दिया जाता है, बहुत ही किफायती दाम में हो जाता है. सरकारी अस्पतालों में इसका कोई भी अतिरिक्त शुल्क नहीं लगता है. एक निजी आईवीएफ सेंटर में स्पर्म और अंडे को संरक्षित करने के लिए सालाना आठ से दस हजार रुपये शुल्क जमा करना होता है. बाद में लोग आईवीएफ तकनीक से संतान का सुख प्राप्त कर सकते हैं. वैसे तो हर आईवीएफ सेंटर का अलग-अलग मूल्य निर्धारित होता है लेकिन आठ से दस हजार सालाना खर्च ज्यादातर स्पर्म बैंक के होते हैं. डॉ. सचान ने बताया कि प्रदेशभर में लगभग 150 से अधिक स्पर्म बैंक है और प्रदेश भर में निजी और सरकारी मिलाकर कुल दो हजार से अधिक आईवीएफ सेंटर हैं.

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