उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

अज्ञेय पुण्यतिथि विशेष: 'हम राही नहीं राहों के अन्वेषी हैं'

By

Published : Apr 4, 2021, 1:08 PM IST

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय का हिन्दी साहित्य में एक अमिट पहचान है. कवि, शैलीकार, कथाकार, निबंधकार, सम्पादक और अध्यापक जैसी कई विधाओं में पारंगत. आज चार अप्रैल को अज्ञेय की पुण्यतिथि है. युवा पीढ़ी को इस शख्सियत से रूबरू कराने के लिए ETV Bharat ने लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राहुल पाण्डेय से खास बातचीत की. पेश है विशेष रिपोर्ट.

अज्ञेय पुण्यतिथि विशेष
अज्ञेय पुण्यतिथि विशेष

लखनऊ:हम राही नहीं राहों के अन्वेषी हैं. सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय की यह एक पंक्ति उनके पूरे व्यक्तित्व और जीवन दर्शन से परिचय कराती है. ETV Bharat से खास बातचीत में लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राहुल पाण्डेय कहते हैं कि अज्ञेय का पूरा जीवन इन्हीं पंक्तियों के इर्दगिर्द है. चाहें साहित्य की रचना हो, स्वतंत्रता संग्राम हो या फिर जीवन संघर्ष. अज्ञेय कभी भी पुरानी राहों पर चलने के बजाए अपनी राह खुद तैयार की. इसी का नतीजा है कि आज भी उनकी रचनाओं को सिविल सेवा परीक्षा से लेकर विश्वविद्यालयों तक में हिंदी साहित्य को विद्यार्थियों के लिए अनुकरणीय हैं.

अज्ञेय पुण्यतिथि विशेष
19 साल की उम्र में किया धमालडॉ. राहुल पाण्डेय कहते हैं कि अज्ञेय का जन्म मार्च 1911 में उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुआ था. पिता सरकारी नौकरी में थे. पढ़ाई लिखाई देश में अलग अलग घूमते हुए हुई. डॉ. राहुल पाण्डेय कहते हैं कि बीएससी करने के बाद अंग्रेजी में एमए की पढ़ाई कर रहे थे. इसी दौरान वह स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. बात 1930 की है. उस समय अज्ञेय की उम्र करीब 19 साल की होगी. क्रांतिकारी आंदोलन का हिस्सा हुआ करते थे. कई जगह यह लिखा हुआ पाया जाता है कि वह बम बनाते हुए पकड़े गए लेकिन फरार भी हो गए थे. 1930 में उन्हें पकड़ लिया गया. ऐसे मिला अज्ञेय नामडॉ. राहुल बताते हैं कि जेल में रहते हुए उन्होंने अपने एक परिचित को पत्र लिखा. कहा जाता है कि वह अपनी पहचान छिपाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने पत्र में अपने नाम के स्थान पर अज्ञेय लिख दिया. उसके बाद से ही यह उनका उपनाम बन गया. इन रचनाओं की है साहित्य में अमिट पहचानडॉ. राहुल बताते हैं कि 1947 में देश आजाद हो गया. उसके बाद उन्होंने साहित्य को ही पूरी तरह से अपना लिया. हरी घास पर क्षण भर, बावरा अहेरी, इन्द्रधनुष रौंदे हुये थे, आत्मनेपद, भवंती, अंतर जैसी अनेक रचनाओं ने आज भी हिन्दी साहित्य के प्रेमियों पर अमिट छाप छोड़ी है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details