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स्पेशल रिपोर्ट : 8 साल में दिखाई थी बहादुरी, अब मुफलिसी में 'रियाज'

वह कहता है कि सम्मान तो बहुत मिले. देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी. लेकिन, सम्मान से पेट नहीं भरता साहेब. अपना घर चलाने के लिए उसने हैप्पी टी स्टॉल तो खोला है लेकिन जीवन में हैप्पी का आना अभी बाकी है. देखिए यह खास रिपोर्ट...

ईटीवी भारत
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Published : Jan 23, 2021, 11:08 PM IST

लखनऊ : बहादुरी के मेडल, वादों और भलाई करने से ही अगर पेट भर जाता तो फिर रियाज को आज गुहार नहीं लगानी पड़ती. लखनऊ के वृंदावन कॉलोनी में रहने वाले रियाज कहते हैं कि अब्दुल कलाम आजाद, अटल बिहारी वाजपेई और सोनिया गांधी जैसे दिग्गजों ने वादे किए थे. कहा था कि इंटर पास कर जाओ हम तुम्हें नौकरी दे देंगे. लेकिन वादे परवान नहीं चढ़ सके.

स्पेशल रिपोर्ट...

अपने दोनों हाथ और एक पैर गंवा चुके रियाज ने टी स्टॉल लगाया है और नाम रखा है हैप्पी टी. लेकिन जीवन में खुशियां आनी अभी बाकी हैं. साल 2003 में हुए एक हादसे ने रियाज की जिंदगी ही बदल डाली. तब रियाज की उम्र करीब 8 साल की थी. एक छोटी बच्ची अपने पिता के साथ रेलवे क्रॉसिंग पार कर रही थी. तभी सामने से ट्रेन आ रही थी. रियाज ने बच्ची और उसके पिता को कई बार आवाज दी. वह चिल्लाया ट्रेन आ रही है हट जाओ...लेकिन ना तो बच्ची हटी और ना ही बच्ची के पिता ने रियाज की चेतावनी पर ध्यान दिया. 8 साल का रियाज खुद बच्ची को बचाने दौड़ पड़ा. उसने बच्ची को अपने हाथों में उठा लिया लेकिन इस दौरान रियाज का पैर कैंची में फंस गया. लेकिन रियाज ने बिना अपनी परवाह किए अपने हाथों से बच्ची को दूर फेंक दिया. लेकिन रियाज खुद को नहीं बचा सका. रियाज के दोनों हाथ और एक पैर कट चुका था.

मदद की उम्मीद अभी बाकी है

काफी इलाज के बाद रियाज बच तो गए लेकिन जीवन भर के लिए उनका एक पैर और दोनों हाथ खो चुका था. उनकी इस बहादुरी के लिए सम्मान तो बहुत मिले. अपनी धरती से लेकर विदेशों तक नाम कमाया. लेकिन केवल नाम और सम्मान से चूल्हे पर रोटी नहीं सेकी जा सकती. दिव्यांग रियाज अब चाय की दुकान लगाते हैं लेकिन कहते हैं वक्त बीतने के साथ परिवार की जरुरतें बढ़ जाती हैं और जेब छोटी होती जाती है.

दोनों हाथ और एक पैर गंवा चुके रियाज

रियाज की शादी हो चुकी है और उसका एक प्यारा सा बेटा भी है. रियाज की मां कहती हैं कि घर की माली हालत ठीक नहीं है. बस उसके बेटे को ठीक-ठाक नौकरी मिल जाए, ताकि रियाज के बेटे की परवरिश ठीक से हो सके...

अपने बच्चे को दुलारते रियाज

जिन हाथों ने उस छोटी बच्ची को बचाया था आज वो नहीं हैं, लेकिन रियाज की आंखों में मदद की आस अभी बाकी है. सम्मान तो बहुत मिला अब जीने का सहारा मिलना चाहिए. रियाज की जिंदगी को भी अब किनारा चाहिए.

चाय की दुकान का है सहारा

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