लखनऊ :दो विधानसभा और एक संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया, हालांकि रामपुर विधानसभा सीट उसे गंवानी भी पड़ी. सबसे यादगार रहा मैनपुरी संसदीय सीट का उपचुनाव (Mainpuri parliamentary seat by-election), जहां डिंपल यादव ने पौने तीन लाख वोटों से जीत दर्ज कराई है. इस जीत के अपने मायने और सबक भी हैं. यह बात और है कि सपा नेतृत्व इस जीत से कितना सीखने की कोशिश करता है.
2012 में जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे, तभी से यादव कुनबे में मतभेद शुरू हो गए थे. इन्हीं मतभेदों के कारण ही 2017 में सपा को सत्ता से हाथ धोना पड़ा और भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी. बावजूद इसके सपाई कुनबे में घमासान नहीं थमा और 2018 में अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल सिंह यादव ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली. 2019 के लोकसभा चुनावों में सपा और प्रसपा एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में थे. सपा ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर एक चौंकाने वाला फैसला किया. इस चुनाव के नतीजे भी चौंकाने वाले ही रहे. अस्सी लोकसभा सीटों में सपा सिर्फ पांच जीत सकी और बसपा के खाते में गईं दस सीटें. यानी गठबंधन का असल लाभ बसपा को मिला. सपा ने सिर्फ खोया, पाया कुछ भी नहीं. बावजूद इसके बसपा ने सपा पर तमाम आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ लिया. यानी सब कुछ करने के बाद भी सपा के खाते में सिर्फ रुसवाई ही आई. अखिलेश यादव ने तब भी नहीं सोचा कि पहले परिवार में एका की पहल करें. 2022 के चुनाव में भी सपा और प्रसपा के विलय पर बात नहीं बनी. हालांकि बिल्कुल अंतिम समय में शिवपाल यादव ने सपा के टिकट पर जसवंत नगर से चुनाव लड़ने का फैसला किया. इस चुनाव के दौरान शिवपाल को सपा में वह सम्मान नहीं मिला वह जिसके हकदार थे. चुनाव बाद भी अखिलेश ने उन्हें पार्टी के विधायक दल की बैठक से दूर रखा. जाहिर है कि शिवपाल और अखिलेश नजदीक आते-आते फिर दूर हो गए. प्रसपा को न तो 2019 में कोई सफलता मिली और न ही 2022 में, लेकिन दोनों चुनावों में इस पार्टी ने समाजवादी पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया.
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ही शिवपाल सिंह यादव को यह समझ में आ चुका था कि वह अकेले कोई बड़ा परिवर्तन नहीं ला सकते. इसलिए वह हमेशा चाहते थे कि अखिलेश और उनमें किसी तरह मेल हो जाए. हालांकि तब अखिलेश यादव इसके लिए तैयार नहीं थे. मुलायम सिंह भी चाहते थे कि परिवार में एका हो, लेकिन वह यह सुख जीते जी नहीं पा सके. 2022 में ही हुए रामपुर और आजमगढ़ संसदीय सीटों के उपचुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव प्रचार करने तक नहीं गए, जबकि यह दोनों सपा की ही सीटें थीं. नतीजतन भाजपा ने दोनों ही सीटें जीत लीं. अखिलेश यादव के उपचुनाव में प्रचार करने न जाने की खूब आलोचना भी हुई, लेकिन उन्होंने इससे कोई सबक नहीं लिया. अखिलेश यादव ने उपचुनाव शुरू होते ही चाचा शिवपाल यादव से मेल कर लिया. साथ ही चुनाव भर मैनपुरी में पूरे दल-बल के साथ डेरा डाले रहे. नतीजा सामने है.