लखनऊ : नवरात्रि पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मिशन शक्ति अभियान की शुरुआत की है. पूरे प्रदेश में मिशन शक्ति का अभियान काफी लोकप्रिय हुआ है. महिला अपराध पर लगाम लगाने में काफी सफलता मिली. भारत सरकार ने भी मिशन शक्ति अभियान को सराहा. केंद्रीय स्तर पर महिला सुरक्षा के लिए चलाए जाने वाले अभियान का नाम भी मिशन शक्ति रखा गया. राजधानी लखनऊ में भी एक ऐसी ही महिला है जो सामाजिक सरोकार कर रही हैं. जिनका नाम वर्षा वर्मा हैं. जो कोविड काल से ही आमजन मानस की सेवा व मदद कर रही हैं.
समाजसेवी वर्षा वर्मा ने बताया कि 'यदि कोई महिला दृढ़संकल्प करे तो क्या नहीं कर सकती है. फिर चाहे कुछ भी काम हो वह जरूर कर लेगी अगर उसके पास आत्मविश्वास है. उन्होंने बताया कि हमेशा से सामाजिक कार्यकर्ता बनना चाहती थीं, जरूरतमंदों के लिए मैं जो काम करती हूं, उसे कोई काम नहीं बल्कि सेवा समझ के करती हूं. जब मैं दूसरों की मदद करती हूं तो मुझे दिल से बहुत सुकून मिलता है. उन्होंने कहा कि आज की दौड़ में महिलाएं किसी से कम नहीं हैं. इसके अलावा प्रदेश सरकार भी महिला शक्ति को बढ़ावा देने के लिए मिशन शक्ति जैसे अभियान की शुरुआत कर चुकी है. बहुत सारी ऐसी योजनाएं हैं जो महिलाओं के लिए समर्पित हैं.'
ईटीवी भारत से वर्षा वर्मा ने बताया कि 'बचपन से ही मेरा एक सपना था कि मैं ऐसा काम करूं, जिससे मैं अधिक से अधिक लोगों से जुड़ सकूं. दूसरों की सेवा करूं. बचपन से ही मुझे दूसरों की मदद करना काफी अच्छा लगता था. 14 से 15 साल की उम्र में जब भी मैं कहीं जाती थी, अगर मुझे कोई गरीब व्यक्ति या कोई असहाय व्यक्ति दिख जाता था तो मैं उसकी मदद जरूर करती थी. यह चीज बड़े होने के साथ बढ़ती चली गई. यह कोई काम नहीं है बल्कि यह एक सेवा है जो मैं असहाय लोगों की करती हूं. मुझे इससे दिल से बहुत खुशी मिलती है. आत्म संतुष्टि मिलती है कि मैं किसी की मदद कर पा रही हूं. इसी सेवा को मैंने एक काम के तौर पर चुन लिया, जो मुझे हमेशा से बहुत अच्छा लगता था.'
उन्होंने बताया कि 'कोविड काल में जब कोई अपनों का साथ नहीं दे रहा था उस समय हमारी संस्था ने असहाय लोगों की मदद की. और लावारिस व्यक्तियों का दाह संस्कार करने की ठानी. उस समय बस दिमाग में यही चल रहा था कि जिनका कोई भी नहीं है उनका हम दाह संस्कार करेंगे. उनके लिए हम हमेशा खड़े रहेंगे. उनको हम अपना कंधा देंगे. उन्होंने कहा कि वह एक ऐसा दौर था जब स्थितियां बिल्कुल विपरीत थीं. लोग अपनों का साथ छोड़ कर जा रहे थे. सड़क पर अपनों को छोड़कर चले जाते थे या फिर घर की अगर किसी सदस्य की मौत हो जाती थी तो उसे छूते नहीं थे. यहां तक की दाह संस्कार में भी कोई शामिल नहीं होता था. उस समय हमने यह संकल्प लिया कि हम खुद फील्ड पर उतरेंगे और लावारिस लोगों का दाह संस्कार कराएंगे.'
उन्होंने कहा कि 'इसके लिए जरूरी था कि हम आम जनता तक किस तरह से पहुंचेंगे जनता तक पहुंचाने के लिए हमने एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया. तमाम एंबुलेंस की व्यवस्था की उस समय हमने लोगों को अपनी सेवाएं दीं. हमारे पास जब फोन आता था उस समय हम एक कॉल पर बिना कुछ सोचे समझे क्षेत्र में जाते थे और लावारिस लाश को लेकर आते थे और उसका दाह संस्कार करते थे. कोरोना काल में बहुत से जरूरतमंदों की हमने मदद की हेल्पलाइन नंबर पर जिसका भी फोन आता था और जिसे सच में हमारी आवश्यकता होती थी. उनकी हम मदद करने के लिए हमेशा खड़े रहते थे.'