लखनऊ : लोकसभा चुनाव को लेकर चुनावी बिगुल बज चुका है. इस बार उत्तर प्रदेश में छोटे दल भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस जैसे बड़े दलों का खेल बिगाड़ने वाले हैं. दरअसल जिन छोटे दलों को बड़े दलों का साथ नहीं मिला वह अलग से अपने प्रत्याशी मैदान पर उतार रहे हैं. ऐसे में इन छोटे दलों के पक्ष में भले ही चुनाव परिणाम न आए. मगर यही छोटे दल कई बड़ों का खेल बिगाड़ेंगे.
शिवपाल सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी से अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) बनाई है. प्रसपा का पीस पार्टी के साथ गठबंधन हुआ है. दोनों दलों में से किसी एक का भी पूरे उत्तर प्रदेश में प्रभाव नहीं है. लेकिन अगर प्रसपा पश्चिम उत्तर प्रदेश में अपना प्रभाव दिखाएगी तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में पीस पार्टी का प्रभाव साफ दिखेगा. यहां मुस्लिम-यादव का गठजोड़ अगर काम किया तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा.
इसके बाद कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह की नव गठित जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी का प्रभाव प्रतापगढ़ जिले में ही दिखता है. उन्होंने जब तक पार्टी नहीं बनाई थी, तब तक जातीय समीकरण का लाभ मिलता रहा है. अब उनके साथ वही लोग खड़े दिखेंगे जो किसी और पार्टी में नहीं होंगे. हालांकि, पार्टी बनाने से पहले और बाद में भी उन्होंने भाजपा के साथ जाने की जुगत की लेकिन बात नहीं बनी. तब उन्होंने अपने दो प्रत्याशी भी घोषित किए.
वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल एनडीए गठबंधन में शामिल है. इन दलों की अपनी-अपनी नाराजगी थी, जिसे भाजपा नेतृत्व ने मना लिया. योगी सरकार के मंत्री ओमप्रकाश राजभर और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बाकायदा प्रेस के सामने आकर नाराजगी नहीं होने और एनडीए गठबंधन के साथ चुनाव लड़ने की घोषणा की है.