लखनऊ:कोरोना वायरस ने झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों का जीवन बद से बदतर बना दिया है. लॉकडाउन के चलते इन लोगों को न ही कहीं काम मिल रहा है और न ही खाने के लिए सामान. झोपड़ी में रहने वाली सफीकुननिशा हों या राजेश भारती, गीता हों या फिर जगन्नाथ साहू. ये सभी लोग कहीं न कहीं कोई न कोई काम करते थे, लेकिन लॉकडाउन के चलते अब ये घर में रहने को मजबूर हैं. न ही इनके पास कोई काम बचा है और न ही गुजर बसर के लिए पैसे. जिंदगी में इनके पहले से ही परेशानियों का सैलाब था तो अब कोरोना ने इस सैलाब को जलजले में बदल दिया है. जब से इन्हें पता चला है कि एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्ती मुंबई के धारावी में रहने वाले लोग कोरोना वायरस की चपेट में आ रहे हैं तब से ये लोग हर वक्त डर के साये में जीने को मजबूर हैं.
'ईटीवी भारत' की जांच-पड़ताल
ईटीवी भारत ने ऐसी झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के बीच जाकर उनका हाल-चाल जाना. झुग्गी में रहने वाली सफीकुन्निशा बताती हैं कि वे घरों में खाना-पकाने और साफ-सफाई का काम करती थीं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अब उन्हें कोई बुला नहीं रहा है. अब तक जो पैसे जोड़ कर रखे थे बस उससे ही घर चल रहा है. उन्होंने बताया कि बस्ती में एक बार सैनिटाइजेशन हुआ था. तबसे अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है.
झुग्गियों में कैद रहने को मजबूर
लखनऊ के राजाजीपुरम इलाके में बांस-टाट की झुग्गी-झोपड़ी वाली गरीबों की बस्ती में तकरीबन डेढ़ सौ परिवार रहता है. यहां रहने वाला कोई रिक्शा चलाता है तो कोई सफाईकर्मी है. कोई स्कूल में चपरासी है तो कोई दूसरों के घर में साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करता है. लॉकडाउन के चलते यह सब घरों में कैद रहने को मजबूर हैं, जिन घरों में ये लोग साफ-सफाई और खाना बनाने का काम करके कुछ पैसे कमाते थे. उन लोगों ने कोरोना के खतरे के कारण इनके लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए हैं.
सफाईकर्मी परेशान
देश के विकास में अहम रोल निभाने वाले सफाईकर्मियों की हालत लॉकडाउन में काफी खराब है. राजाजीपुरम इलाके की झुग्गी में रहने वाले छोटू धानुक ने बताया कि वे नगर निगम में सफाईकर्मी हैं. नाले की सफाई का काम करते हैं और प्रतिदिन 300 रुपये की दिहाड़ी लेते हैं, लेकिन इस समय कोई काम न होने से घर में रहने को मजबूर हैं. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में एक दिन झाड़ू लगाने का काम मिला था. इसके बाद कोई काम नहीं मिला.