लखनऊ :प्रदेश के लगभग सभी शहरों और राजमार्गों में जाम, अतिक्रमण, यातायात नियमों की अनदेखी और इन सबसे बेपरवाह पुलिस को देखा जा सकता है. यहां न लोग जागरूक हैं और न पुलिस सतर्क. थानों और पुलिस चौकियों के बाहर भी ठेले-खोमचों की कतारें आम हैं. ऐसा नहीं है कि बिना पुलिस को 'खुश' किए यह सब चलता रहता है. जहां पुलिस नहीं चाहती वहां अतिक्रमण होता भी नहीं है. लोगों में भी जिम्मेदार नागरिक बनने का भाव अब तक नहीं आया है. यहां लोग सिर्फ भय की भाषा समझते हैं. ऐसे में यह भी दिखाई नहीं दे रहा कि भविष्य में कोई सुधार होगा. नेतागण सत्ता में आते ही जन सरोकार के मुद्दे भूल जाते हैं.
एक वक्त था, जब किसी भी वाहन की आधी हेड लाइट काली करना अनिवार्य होता था. पुलिस और परिवहन विभाग भी इस नियम का अनुपालन सुनिश्चित कराते थे. धीरे-धीर यह नियम खत्म सा हो गया है. आधी हेडलाइट काली होने से सामने से आ रहा वाहन चालक आंखों में लाइट लगने से चुंधियाता नहीं था. यह नियम अब नई पीढ़ी को मालूम तक नहीं है. इसके पीछे दोष किसका है? पुलिस और परिवहन विभाग इस नियम का अनुपालन क्यों सुनिश्चित नहीं कराते. आज लोगों को अपर-डिपर का उपयोग कब, कैसे और कहां करना है यह भी नहीं मालूम होता है. भारी वाहनों में अक्सर बैक लाइट गायब रहती है. यही वजह है कि प्राय: बड़ी गाड़ियों में कुछ दिखाई न देने के कारण लोग पीछे से हादसा कर बैठते हैं. लोगों को यातायात संकेतकों का ज्ञान नहीं होता. न ही पुलिस और परिवहन विभाग की ओर से लोगों को इसकी पर्याप्त जानकारी दी जाती है. लोग भी सीट बेल्ट और हेलमेट लगाना अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते. सिर्फ चालान के भय से ही कभी-कभी इन नियमों का पालन करते हैं, जबकि लोगों को खुद इसे अपनी आदत में शुमार कर लेना चाहिए. दोपहिया और चार पहिया वाहनों में क्षमता से ज्यादा सवारियां ढोई जाती हैं. यातायात नियमों को लेकर जनजागरूकता का भी घोर अभाव है.