लखनऊ: देश को आजाद हुए 72 वर्ष हो गए, लेकिन आजादी के बाद से अब तक उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में औद्योगिक विकास की रफ्तार सुस्त ही रही है. आलम यह है कि आजादी के 72 वर्षों में भी लखनऊ में सिर्फ दो बड़ी कंपनियां ही स्थापित हो सकीं. आज की तारीख में एक बड़ी कंपनी करीब 20 वर्ष पूर्व बंद हो चुकी है, तो दूसरी बंदी की कगार पर है.
आजादी के बाद स्थापित हुईं कंपनियां भी ठप. लखनऊ में औद्योगिक विकास न के बराबर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में औद्योगिक विकास न के बराबर होने की वजह से लोगों को रोजगार की समस्या का भी सामना करना पड़ रहा है. पिछली और वर्तमान सरकारों की तरफ से भी कुछ ऐसा नहीं किया गया, जिससे बड़ी कंपनियां यहां आकर निवेश कर सकें और लोगों को रोजगार मिल सके.
आजादी के बाद स्थापित हुईं कंपनियां भी ठप
लखनऊ में स्कूटर इंडिया और टाटा मोटर्स जैसी दो बड़ी कंपनियां आजादी के बाद स्थापित हुईं, लेकिन इनमें से स्कूटर इंडिया करीब 20 वर्ष पूर्व बंद हो चुकी है और पूरी तरह से उसका काम यहां से सिमट चुका है. वहीं टाटा मोटर्स की हालत भी बहुत ही नाजुक है और आने वाले कुछ महीनों में बंद हो सकती है.
औद्योगिक विकास की रफ्तार सुस्त
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि लखनऊ रेजिडेंशियल सिटी है. ऐसे में औद्योगिक विकास स्थापित होने में यहां बाधा बनी रही और लोगों का रुझान दूसरे अन्य शहरों और अन्य राज्यों में ज्यादा हुआ, जो चिंताजनक है. आजादी के बाद से अब तक सिर्फ और सिर्फ 2 बड़े उद्योग ही लखनऊ में लगाए जा सके. उनमें से एक पूरी तरह से बंद हो चुका है तो दूसरा बंदी की कगार पर है. यह राजधानी लखनऊ के लिए एक बहुत ही बड़ी विडंबना है.
आजादी के बाद से औद्योगिक इकाइयों के नाम पर लखनऊ में सिर्फ स्कूटर इंडिया लिमिटेड और टाटा मोटर्स ही लगे हैं और कोई औद्योगिक प्रतिष्ठान लखनऊ में स्थापित नहीं हो पाया, जिसको हम देश के स्तर पर उसकी पहचान समझ सकें.
-संदीप सक्सेना, सदस्य, भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ