लखनऊ: राजधानी में लगातार गिर रहे भूजल स्तर (ground water level) को बेहतर करने को लेकर राज्य सरकार ने तमाम तरह के प्रावधान किए हैं. बारिश की एक-एक बूंद को संरक्षित करने को लेकर सरकार प्रयासरत है, लेकिन राजधानी लखनऊ में ही तमाम सरकारी कार्यालयों के अंदर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम (rain water harvesting) लगे तो हैं, लेकिन बदहाल हो गए हैं. अधिकारियों के अनुसार राजधानी लखनऊ में इस समय 30 से 45 मीटर तक तमाम अलग-अलग इलाकों का जलस्तर नीचे पहुंच चुका है और प्रतिवर्ष करीब एक से डेढ़ मीटर तक नीचे जा रहा है. बावजूद इसके जिम्मेदार इसको लेकर गंभीर नहीं हैं.
लखनऊ में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थिति बदहाल योजना सरकारी कार्यालयों में तोड़ रही है दम
राज्य सरकार ने भूजल स्तर को ठीक करने के उद्देश्य से बारिश की एक-एक बूंद को सुरक्षित करने को लेकर मास्टर प्लान में बदलाव की व्यवस्था शुरू की है. बावजूद इसके सरकारी कार्यालयों में ही यह पूरी योजना दम तोड़ रही है. सरकार को चाहिए कि ठीक ढंग से सर्वे कराया जाए और जहां भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग पहले लगाए गए थे, उनकी वर्तमान में क्या स्थिति है इसको लेकर गंभीरता से प्रयास किए जाएं. इसे मरम्मत कराकर ठीक कराया जाए, जिससे वर्षा जल को संरक्षित करने का काम ठीक ढंग से हो सके और जल स्तर को मेंटेन किया जा सके.
जल संरक्षण के दावों की पोल खोलती पड़ताल
सरकार की योजना के अनुसार इससे जल संरक्षण का काम मंशा के अनुरूप नहीं हो पा रहा है. ईटीवी भारत ने राजधानी लखनऊ के सरकारी कार्यालयों में जल संरक्षण योजना की पड़ताल की स्थिति काफी भयावह मिली. कई जगहों पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगे तो हुए हैं, लेकिन वह बेकार हो गए हैं, बदहाल पड़े हुए हैं. हालांकि लखनऊ जिलाधिकारी कार्यालय के अंदर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के माध्यम से वर्षा जल संचयन की व्यवस्था जरूर होती है. ईटीवी भारत की पड़ताल में यह बात सामने आई कि लखनऊ जिलाधिकारी कार्यालय के अंदर करीब 15 साल पहले रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया था, जो अभी भी काम कर रहा है. बारिश के जल को संरक्षित करते हुए उसे धरती तक पहुंचाया जा रहा है. छतों से पानी नीचे आने के लिए बकायदा पाइप लगाए गए हैं और कलेक्ट्रेट परिसर के अंदर एक टैंक बनाकर उसके माध्यम से जल संरक्षित करते हुए धरातल पर भेजा जा रहा है.
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कलेक्ट्रेट परिसर में काम कर रहा है रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
कलेक्ट्रेट परिसर में भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाया गया है. इसको बने हुए कम से कम 15 साल से ज्यादा का समय हो गया है. इसके अलावा कलेक्ट्रेट के सामने भी कंपाउंड के पास मल्टीस्टोरी बन रही है, वहां भी चारों तरफ रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बना हुआ था. इस समय पार्किंग का काम चल रहा है. इस नाते वह काम नहीं कर रहा है. बाकी जो सिस्टम अंदर बना है वह काम कर रहा है.
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नगर निगम मुख्यालय का सिस्टम बदहाल
नगर निगम मुख्यालय के बाहर बनाया गया रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पूरी तरह से बदहाल नजर आया. पिछले कई साल से यह रेन वाटर हार्वेस्ट सिस्टम बेकार पड़ा हुआ है और इसका टाइम भी खत्म हो चुका है. यहां के कर्मचारी बताते हैं कि पिछले कई सालों से इसके माध्यम से जल संरक्षित करने का काम नहीं किया जा रहा है. अधिकारियों ने इसका निरीक्षण भी किया बावजूद इसके यह काम नहीं कर रहा है और पूरी तरह से बेकार हो चुका है. नगर निगम मुख्यालय के पास रहने वाली अनीता कहती हैं कि नगर निगम मुख्यालय के पीछे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का टैंक बनाया गया है. यह पिछले कई साल पहले बनाया गया था और काफी समय पहले खराब हो गया है. इससे अब वर्षा के जल को संरक्षित करने का काम नहीं किया जा सकता है. कई बार अधिकारियों ने निरीक्षण किया, लेकिन इसके बावजूद भी यह ठीक नहीं हो पाया है.
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जहां भूगर्भ जल संरक्षण का कार्यालय वहां भी दम तोड़ रही योजना
ईटीवी भारत की पड़ताल में सबसे चौंकाने वाली बात थी कि सैकड़ों सरकारी कार्यालयों वाले जवाहर भवन, इंदिरा भवन में इसकी स्थिति और भी खराब नजर आई. यहां पर भूगर्भ जल संरक्षण का निदेशालय है. बावजूद इसके यहां पर पिछले कई साल पहले बनाया गया रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम पूरी तरह से बेकार हो चुका है. दोनों भवनों के बीच में बड़े-बड़े पाइपों के माध्यम से टैंक बनाए गए थे और इसके माध्यम से बारिश के जल को संरक्षित करते हुए जमीन तक ले जाना था, लेकिन पिछले कई साल से यह हार्वेस्टिंग सिस्टम पूरी तरह से बेकार हो गया है. अधिकारी भी इसको लेकर गंभीर नजर नहीं आ रहे हैं.
बढ़ रहा है जल संकट फिर भी जिम्मेदार नहीं हैं गंभीर
जवाहर भवन इंदिरा भवन कर्मचारी महासंघ के महामंत्री सुशील तिवारी ने ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए कहा कि इन दोनों भवनों में 72 विभागों के कार्यालय हैं और करीब 7000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं और इसी भवन में भूगर्भ जल संरक्षण निदेशालय भी बना हुआ है. उन्होंने कहा कि बड़े ही शर्म की बात है कि भूगर्भ जल संरक्षण विभाग भी यहीं पर बना हुआ है और यहां पर ही वर्षा जल संरक्षित करने की योजनाएं दम तोड़ रही हैं. बारिश का पानी सड़कों पर नालों से बह जाता है, लेकिन उसे संरक्षित नहीं किया जाता है.
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रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को बेहतर करने के जारी हैं प्रयास
भूगर्भ जल संरक्षण निदेशक वीके उपाध्याय ने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि राज्य सरकार की तरफ से लगातार रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जाने को लेकर दिशा निर्देश दिए जा रहे हैं. हमारे विभाग की तरफ से भी लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है और जहां भी रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम की स्थिति ठीक नहीं है, उसे ठीक कराया जा रहा है. जिससे बारिश के जल को बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सके और गिरते हुए जल स्तर को बेहतर किया जा सके.