लखनऊ: साल 2004 से 2008 के बीच लखनऊ विद्युत सम्पूर्ति प्रशासन में बिजली बिलों में करोड़ों की हेराफेरी हुई थी. अब 18 साल बाद एसआईटी इस मामले की फिर से जांच शुरू करेगी. शासन के निर्देश पर पुलिस अधीक्षक (एसआईटी) ने मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को पत्र लिखा है. उन्होंने ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची मांगी है जिनके कारण ऑनलाइन बिलिंग प्रणाली के डाटा में ढाई करोड़ एरियर बिलों से ही गुम हो गया था. अब मध्यांचल प्रबंधन की तरफ से लेसा के दोनों मुख्य अभियंताओं से सूची तलब की गई है.
वर्ष 2004 से 2008 के बीच बिजली बिलों में तकरीबन ढाई करोड़ रुपये घटने और उन्हें फिर से बिलों में जोड़ने के बीच मामले की जांच के लिए आदेश जारी हुआ था, लेकिन अधिकारियों ने इस पूरे मामले को ही दबा दिया था. पूरी रकम बिलों में जोड़ी ही नहीं गई थी. बिजली विभाग के अधिकारी सफाई देने में जुट गए थे कि गलती सिस्टम की थी. बैकअप में गड़बड़ी होने से ड्रॉप आउट हो गया था और एरियर गायब हो गया था. अब शासन की नजर टेढ़ी होने के बाद फिर से इस मामले की जांच की फाइल खुल गई है.
16 जुलाई को मध्यांचल विद्युत वितरण निगम के मुख्य अभियंता अंशुमान ने 2004 से 2008 के बीच तैनात रहे कर्मचारियों की सूची तलब कर ली है. इस मामले के एक बार फिर से खुलने के बाद बिजली विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों में खलबली मच गई है. साल 2004 से 2008 के बीच लेसा में नया-नया ऑनलाइन सर्वर शुरू हुआ था. बैकअप में गड़बड़ी होने से ड्रॉप आउट हुआ और एरियर गायब हो गया था. विशेष सचिव गृह के पत्र के बाद एसआईटी ने मध्यांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को चार बार पत्र लिखकर इंजीनियरों और लिपिकों के बारे में विस्तृत जानकारी मांगी, लेकिन हर बार अफसरों ने आधी-अधूरी सूचना देते हुए जांच को सही दिशा में जाने ही नहीं दिया.