लखनऊ:हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रदेश भर के इंटर कॉलेजों और हाई स्कूलों में वर्ष 2013 के विज्ञापन संख्या 3 के क्रम में की गई प्रधानाचार्यों की नियुक्तियों के मामले में स्थगन आदेश पारित किया है. न्यायालय ने यह अंतरिम राहत एकल पीठ द्वारा उक्त नियुक्तियों को रद् करने के फैसले के विरुद्ध दाखिल विशेष अपील पर दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने श्याम शंकर उपाध्याय और अन्य और यूपी सेकेंड्री एजुकेशन सर्विसेज, इलाहाबाद की ओर से दाखिल दो अलग-अलग अपीलों पर पारित किया है. न्यायालय ने पाया कि बड़ी मात्रा में हो चुकी नियुक्तियां एकल पीठ के निर्णय से प्रभावित होंगी और अपीलार्थीगण प्रधानाचार्य के पद पर दिसंबर 2022 से कार्य भी कर रहे हैं. न्यायालय ने कहा कि ऐसे में अगली सुनवाई तक यथास्थिति बनाए रखी जाए. मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी.
उल्लेखनीय है कि इस मामले में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति प्रकिया वर्ष 2013 में विज्ञापन संख्या 3 जारी करते हुए शुरू की गई थी. एकल पीठ के समक्ष कहा गया था कि यह प्रकिया नौ वर्षों तक ठप रही और अचानक वर्ष 2022 में एक माह के भीतर नियुक्ति प्रक्रिया को पूरा कर दिया गया. जिसमें अन्य नियमों का भी ख्याल नहीं रखा गया. एकल पीठ ने 1 फरवरी 2023 के अपने फैसले में कहा कि हमें यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि विज्ञापन जारी करने के नौ वर्ष बाद की गईं नियुक्तियां संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हैं.
वर्ष 2014 के बाद जिन अभ्यर्थियों ने उक्त पद के लिए योग्यता हासिल की है. उनकी नियुक्ति पर विचार करने से उन्हें सिर्फ इसलिए वंचित कर दिया गया, क्योंकि नौ वर्षों तक उक्त विज्ञापन के क्रम में नियुक्ति प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया गया. एकल पीठ ने कहा था कि चयन की पूरी प्रक्रिया ही अविधिक है और संविधान के अनुच्छेद 16 का भी उल्लंघन है. एकल पीठ ने नियुक्तियों को रद्द करने के साथ ही नए सिरे से नियमानुसार नियुक्तियों की प्रकिया जल्द पूरी करने का आदेश दिया था.
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