लखनऊ:भद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को कजरी तीज (kajri teej) मनाई जाती हैं. कजरी तीज (kajri teej) को बूढ़ी तीज (budhi teej), सातुड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से पति की लंबी आयु होने के साथ सुख-समृद्धि और मनोकामना की पूर्ति होती है. इस व्रत में शाम को चंद्रमा के निकलने के बाद उसे अर्घ्य देकर ही महिलाएं व्रत खोलती हैं. महिलाओं संग कुंवारी कन्याएं भी व्रत-पूजन कर अपने लिए अच्छे पति की कामना करती हैं. पूर्वांचल में गंगा घाट के किनारे बसने वाले सभी जिलों में रात में महिलाएं पूरी रात कजरी गीत गाती हैं, जिसे रतजगा भी कहा जाता है.
कजरी तीज का मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 24 अगस्त को शाम 4 बजकर 5 मिनट से शुरू होकर 25 अगस्त की शाम 4 बजकर 18 मिनट पर समाप्त होगी.
पूजा सामग्री
कजरी तीज में मिट्टी, गाय का गोबर, घी, गुड़, नीम की टहनी, काजल, मेंहदी, मौली, बिंदिया कच्चा दूध, दीपक, थाली में नींबू, ककड़ी, केला, सेब, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत आदि पूजा सामाग्री एकत्रित कर लें.
पूजा विधि
नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे देने से करें. फिर अक्षत चढ़ाएं. अनामिका उंगली से नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली की 13 बिंदिया लगाएं. साथ ही काजल की 13 बिंदी भी लगाएं, काजल की बिंदियां तर्जनी उंगली से लगाएं. नीमड़ी माता को मोली चढ़ाएं और उसके बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र भी अर्पित करें. फिर उसके बाद जो भी चीजें आपने माता को अर्पित की हैं, उसका प्रतिबिंब तालाब के दूध और जल में देखें. कजरी तीज पर संध्या को पूजा करने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है. फिर उन्हें भी रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें. चांदी की अंगूठी और गेंहू के दानों को हाथ में लेकर चंद्रमा के अर्ध्य देते हुए अपने स्थान पर खड़े होकर परिक्रमा करें.
कजरी तीज व्रत कथा
एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था जो बहुत गरीब था. उसके साथ उसकी पत्नी ब्राह्मणी भी रहती थी. इस दौरान भाद्रपद महीने की कजली तीज आई. ब्राह्मणी ने तीज माता का व्रत किया. उसने अपने पति यानी ब्राह्मण से कहा कि उसने तीज माता का व्रत रखा है. उसे चने का सतु चाहिए. कहीं से ले आओ. ब्राह्मण ने ब्राह्मणी को बोला कि वो सतु कहां से लाएगा. सातु कहां से लाऊं. इस पर ब्राह्मणी ने कहा कि उसे सतु चाहिए फिर चाहे वो चोरी करे या डाका डालें. लेकिन उसके लिए सातु लेकर आए. रात का समय था. ब्राह्मण घर से निकलकर साहूकार की दुकान में घुस गया. उसने साहूकार की दुकान से चने की दाल, घी, शक्कर लिया और सवा किलो तोल लिया. फिर इन सब से सतु बना लिया. जैसे ही वो जाने लगा वैसे ही आवाज सुनकर दुकान के सभी नौकर जाग गए. सभी जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगे. इतने में ही साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया. ब्राह्मण ने कहा कि वो चोर नहीं है. वो एक एक गरीब ब्राह्मण है. उसकी पत्नी ने तीज माता का व्रत किया है इसलिए सिर्फ यह सवा किलो का सातु बनाकर ले जाने आया था. जब साहूकार ने ब्राह्मण की तलाशी ली तो उसके पास से सतु के अलावा और कुछ नहीं मिला. उधर चांद निकल गया था और ब्राह्मणी सतु का इंतजार कर रही थी. साहूकार ने ब्राह्मण से कहा कि आज से वो उसकी पत्नी को अपनी धर्म बहन मानेगा. उसने ब्राह्मण को सातु, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर दुकान से विदा कर दिया. फिर सबने मिलकर कजली माता की पूजा की. जिस तरह से ब्राह्मण के दिन सुखमय हो गए ठीक वैसे ही कजली माता की कृपा सब पर बनी रहे.
क्यों मनाई जाती है कजरी तीज, पूर्वांचल के खास त्योहार का है विशेष महत्व