लखनऊः समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपना राजनीतिक दल प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव इन दिनों बड़े पसोपेश में हैं. वह दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं. एक ओर तो वह मन ही मन भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन चाहते हैं, तो दूसरी ओर अपनी पार्टी का विलय करा समाजवादी पार्टी में वापसी का ख्वाब देख रहे हैं. हालांकि उनके दोनों ख्वाब पूरे होते नहीं दिख रहे हैं. उन्होंने तीसरी संभावना भी नहीं छोड़ी है और 2012 की रथयात्रा के बाद मिली सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने अपना रथ भी तैयार करा लिया है. ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी चाहती क्या है.
सूत्र बताते हैं कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के नेता शिवपाल सिंह यादव भारतीय जनता पार्टी के संपर्क में हैं. उन्हें लगता है कि भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन कर उन्हें सत्ता का आनंद मिल सकता है. पिछले चुनाव में अमित शाह के साथ उनकी बैठक भी हुई थी, जिसमें वह कोई निर्णय नहीं ले पाए थे. सूत्र बताते हैं कि यही कारण है कि भाजपा अब जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं करना चाहती है. जब यह सुनिश्चित हो जाएगा कि शिवपाल भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन करने के लिए अंतिम फैसला ले चुके हैं और निर्णय बदलेंगे नहीं, तब तक भाजपा का कोई बड़ा नेता उनसे मिलेगा नहीं. शिवपाल यादव भी निर्णय लेने में कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते. वह अभी एक-दो महीने जमीनी हकीकत देखना चाहते हैं कि जनता का रुझान किस ओर है. इसके बाद ही वह कोई निर्णय लेंगे. यही वजह है कि वह सभी विकल्पों को खुला रखना चाहते हैं.
किस खेमे में जुटेगा दोनों हाथों में लड्डू चाह रहे शिवपाल यादव का रथ
समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपना राजनीतिक दल पीएसपीएल बनाने वाले चाचा शिवपाल सिंह यादव इन दिनों पसोपेश में हैं. एक ओर वो मन ही मन बीजेपी से गठबंधन चाहते हैं, तो दूसरी ओर अपनी पार्टी का विलय एसपी में कर घर वापसी का ख्वाब देख रहे हैं.
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वहीं राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर दिलीप अग्निहोत्री मानते हैं कि राजनीति में संभावनाएं और विकल्प सदा बने रहते हैं. कुछ समय पहले तक किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव जीतने वाली शिवसेना कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में सरकार बना लेगी. राजनीति में आज जो दोस्त हैं, वह कल दुश्मन बन सकते हैं. कल के दुश्मन आज दोस्त बन सकते हैं. हालांकि परिवार के स्तर पर जब गांठ बन जाती हो, तो उसका जुड़ाव हो पाना मुश्किल हो जाता है. अखिलेश या शिवपाल के मामले में राजनीति से ज्यादा परिवार इसमें शामिल है. इनके लिए संभावनाएं कठिन अवश्य हैं. सपा में जैसे समीकरण हैं, उस हिसाब से शिवपाल लाभप्रद भी नहीं हो सकते हैं. यह अखिलेश जानते हैं. इसलिए शिवपाल को सपा में पहले वाला सम्मान मिलना संभव नहीं है. यदि वह भारतीय जनता पार्टी के साथ जाएं, तो निश्चित रूप से उन्हें सम्मान मिल सकता है. भाजपा जो समीकरण बनाने में लगी है, उसमें शिवपाल फिट बैठते हैं. शिवपाल की पार्टी को अब पांच साल हो रहे हैं, लेकिन वह कोई चमत्कार नहीं दिखा सके हैं. इसलिए गठबंधन व तालमेल के मामले में यह पार्टी नई है. अगर भाजपा में इनका विलय हो, तो स्थिति अच्छी हो सकती है.