देहरादून:16 जून 2013 वो तारीख जिसने उत्तराखंड को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, वो दिन जिसे शायद ही कोई याद करना चाहेगा. उस दिन आसमान से बरसी आफत ने उत्तराखंड खासकर केदार घाटी में जगह-जगह बर्बादी के वो निशान छोड़े जिन्हें मिटाने में वर्षों लग गए. लेकिन अब केदार घाटी बदल रही है. यहां जिंदगी तो ढर्रे पर लौट आयी है, यात्रा भी फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौटने लगी है. कुदरत की ओर से दिए गए जख्मों के साथ सामंजस्य बैठाकर कर लोग फिर से जिंदगी के रास्ते पर चल निकले हैं और इस सब में उनका साथ देने के लिए साये की तरह साथ खड़े है बाबा केदार. आज भी चट्टान की तरह केदार घाटी में न सिर्फ विराजमान हैं बल्कि घाटी में तबाही का मंजर देख चुके लोगों के मन में उनके प्रति श्रद्धा और अगाध हो गयी है.
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सरकारी आंकड़ों के अनुसार
- 4400 लोग इस घटना में मारे गए थे.
- 4200 से ज्यादा गांवों का पुरी तरह से संपर्क टूट गया था.
- 11091 मवेशी मारे गए थे और 991 स्थानीय लोग मारे गए थे.
- 1309 हेक्टर कृषि भूमि बाह गयी थी, 2141 भवनों का नामोनिशान मिट गया है.
- 4700 हजार यात्री सिर्फ केदार मंदिर में फंसे थे.
- सेना द्वारा 9000 लोगो को रेस्क्यू किया गया था.
- जबकि 30 हजार लोगों को पुलिस ने सुरक्षित निकाला था.
- अब तक कुल 644 लोगो के कंकाल मिल चुके है.
7 साल में बदला केदारनाथ
बाबा केदार के धाम में 16 जून को कुदरत ने जो तांडव किया उसे देश और दुनिया के लोग शायद ही भूले हों. उस दिन चोराबारी ग्लेशियर और गांधी सागर झील से आये पानी और मलबे के सैलाब ने सिर्फ हजारों लोगों को जिन्दा दफन ही नहीं किया बल्कि करोड़ों रुपये की संपत्ति को भी तबाह कर दिया. उस दिन एक झटके में कुदरत ने हजारों बच्चों को अनाथ बना दिया और कितने बूढ़े मां-बाप से उनके बुढ़ापे की लाठी को छीन लिया. लोग कुदरत की उस मार को भूल कर आगे की ओर चल दिए हैं और सिर्फ लोग ही क्यों बाबा केदार की नगरी भी एक बार फिर से वक्त के साथ कदम ताल करने लगी है. आज केदारनाथ पूरी तरह से बदल गयी है, केदारनाथ जाने वाली सड़कें पूरी तरह से बदल गयी हैं, तो केदारनाथ में हाईटेक हेलीपैड हैं तो होटल धर्मशाला अत्याधुनिक तरीके से बन रही है. केदारनाथ मंदिर के चारो तरफ मोटी दीवार बना दी गयी है और तो और अगर भविष्य में कभी आपदा जैसे हालात बनते हैं तो उसके लिए रेस्क्यू टीमों की टुकड़ी भी हमेशा तैयार रहती है.
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इन्हें हुआ सबसे ज्यादा नुकसान
आपदा के बाद सबसे ज्यादा नुकसान अगर किसी को हुआ था तो वो था उत्तराखंड का पर्यटन उद्योग. पीएचडी चैंबर्स ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट बताती है कि इस आपदा से 12,000 करोड़ के नुकसान हुआ था. इतना ही कुमाऊं-गढ़वाल में आज भी लोग इस आपदा का दंश झेल रहे हैं. केदारनाथ में अब तक लगभग वर्ल्ड बैंक और एडीबी यानी एशियन डेवल्पमेन्ट बैंक से 2300 करोड़ रूपये का काम हुआ है.
मंदिर समिति के लोग कहते है विश्वास नहीं था की अब इतनी आस्था जुड़ी रहेगी
2013 में हुई तबाही के बाद एक बार तो ऐसा लगने लगा था कि शायद बाबा केदार की नगरी में दोबारा चहल पहल शुरू होने में कई दशक लग जायेंगे, लेकिन तबाही का मंजर दिखाने वाले बाबा ने ही लोगों को फिर से उठकर अपने पैरों पर खड़े होने की ऐसी प्रेरणा दी. सिर्फ दो साल में ही बाबा का धाम आबाद हो गया. यहां लोगों के मन में अपने घर बार और अपनों को खो देने का गम तो है, लेकिन सिर उठाकर जीने का गजब का माद्दा भी है. शायद यही कारण है की 5 साल बाद केदार घाटी में आने वाले लोगों को ये विश्वास ही नहीं होता की यहां कुदरत ने विनाश की ऐसी होली खेली थी की उसे देखने वाले कई लोग आजतक सामान्य भी नहीं हो पाए.
पिछले साल तक रिकॉर्ड तोड़ रही है भक्तों की भक्ति- इस साल कोरोना ने मारा
आज भी बाबा केदार के धाम में जमीन के नीचे हजारों लोग दफन हैं, लेकिन आपने सुना होगा की वक्त हर जख्म भर देता है. चलते रहने का नाम ही जिंदगी है और इसका जीता जगता उदाहरण बाबा केदार का धाम है. इस बार कपाट अपने तय समय अनुसार खुलने के बाद से अब भले ही कोरोना वायरस की वजह से भक्तों की भीड़ न आई हो लेकिन, लोगों का बाबा केदार के प्रति प्यार और भक्ति वैसा ही है. शायद यही कारण है कि लगातार प्रशासन से लोग केदारनाथ जाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी फिलहाल, सरकार ने धार्मिक यात्राओं पर अधिक संख्या में यात्रियों को भेजने पर रोक लगा रखी है.
आपदा की यादें हुई धुंधली
हम खुद इस बात के गवाह हैं कि कैसे केदार घाटी को कुदरत ने तबाह कर दिया था, लेकिन केदार घाटी में अब सब कुछ सामान्य होने लगा है. बाबा के धाम की रौनक तो लौट आई ही है बाबा के धाम को नया रंग रूप प्रदान करने की कोशिश जो 2013 के बाद से लगातार चल रही थी अब वह मूल स्वरूप ले चुकी है. अगर ये सब इसी गति से जारी रहा तो केदारनाथ एक ऐसा स्थान होगा. जहां दुनिया का हर आदमी आकर बाबा के आगे नतमस्तक होना चाहेगा.