लखनऊःयोगी सरकार ने जेम पोर्टल लागू करने की व्यवस्था के आदेश अगस्त 2017 में ही दे दिए थे. आदेश में शासकीय विभागों और उनके अधीनस्थ संस्थाओं में खरीदारी के लिए जेम (GeM) की व्यवस्था अनिवार्य की गई थी. जो उत्पाद या सेवाएं जेम पोर्टल पर उपलब्ध हैं, उनकी खरीदारी अनिवार्य रूप से जेम पोर्टल से ही की जायेगी. पौने चार साल में करीब 7,177 करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीदारी जेम पोर्टल से विभागों ने की है. जिससे विभाग में भ्रष्टाचार काफी हद तक कम हुआ है.
साल दर साल बढ़ती गयी खरीदारी
योगी सरकार के फैसला का नतीजा ये हुआ कि कई विभागों ने प्रदेश में जेम पोर्टल के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2017-18 में 602 करोड़, वित्तीय वर्ष 2018-19 में 1,674 करोड़ और वित्तीय वर्ष 2019-20 में 2,401 करोड़ रुपये की खरीदारी की. वर्तमान वित्तीय वर्ष 2020-21 में दिसंबर महीने तक कुल 25 सौ करोड़ की खरीदारी की गई है. इस तरह पौने चार साल में करीब 7,177 करोड़ रुपये से ज्यादा की खरीदारी जेम पोर्टल से विभागों ने की है. इस बारे में एमएसएमई के अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल कहते हैं कि मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति स्पष्ट है. सरकार भ्रष्टाचार को पूरी तरह से खत्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. जेम पोर्टल उसी प्रयास का एक सार्थक परिणाम है, जिसे राष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है.
सैकड़ों करोड़ के भ्रष्टाचार पर लगी है रोक: आईआईए
आईआईए के चेयरमैन पंकज गुप्ता कहते हैं कि जेम पोर्टल सरकार और उद्यमियों के लिए बहुत फायदेमंद प्लेटफॉर्म है. सरकारी विभागीय खरीद में पारदर्शिता लाने और भ्रष्टाचार रोकने में ये राष्ट्रीय स्तर पर दूसरे प्रदेशों के लिए भी अनुकरणीय है. इसके यूपी में लागू होने से निस्संदेह पिछली सरकारों से चले आ रहे सैकड़ों करोड़ के भ्रष्टाचार पर रोक लगी है. सरकार का उद्देश्य था कि बिना किसी भ्रष्टाचार के एमएसएमई को सही रेट मिले. सही लोग पार्टिशिपेट कर सकें. विभागीय टेंडर की प्रक्रिया में बहुत समय बेकार होता था और उद्मियों का पैसा भी बहुत खर्च होता था, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता था.
एमएसएमई को नोडल बनाया गया