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जाने-माने व्यंग्यकार उर्मिल थपलियाल का निधन, कैंसर से हार गए जिंदगी की जंग - लखनऊ में उर्मिल थपलियाल का निधन

देश के जाने माने रंगकर्मी, नाट्य लेखक, साहित्यकार, व्यंग्यकार उर्मिल कुमार थपलियाल का मंगलवार को निधन हो गया. वह 79 साल के थे. बीते लंबे समय से वह कैंसर की बीमारी से लड़ रहे थे.

उर्मिल थपलियाल का निधन
उर्मिल थपलियाल का निधन

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Published : Jul 20, 2021, 10:59 PM IST

Updated : Jul 21, 2021, 8:47 AM IST

लखनऊ: देश के जाने माने रंगकर्मी, नाट्य लेखक, साहित्यकार, व्यंग्यकार उर्मिल कुमार थपलियाल का मंगलवार को निधन हो गया. वह 79 साल के थे. बीते लंबे समय से वह कैंसर की बीमारी से लड़ रहे थे. रंगमंच के साथ हिंदी व्यंग्य विधा को नौटंकी शैली में परोसने वाले इकलौते कद्दावर लेखक और नाटककार उर्मिल कुमार थपलियाल ने पिछले 6 दशकों से ज्यादा समय तक कला संस्कृति और रंगमंच की सेवा की.

साहित्यकार उर्मिल कुमार थपलियाल के निधन पर सीएम योगी ने गहरा शोक व्यक्त जताया. उन्होंने अपने शोक संदेश में कहा कि श्री थपलियाल ने अपनी प्रतिभा से रंगमंच और साहित्य जगत को समृद्ध किया. श्री थपलियाल के निधन से कला और साहित्य जगत को हुई क्षति की भरपाई होना कठिन है. सीएम ने दिवंगत आत्मा की शांति की कामना करते हुए परिजनों के प्रति संवेदना व्यक्त की है.

उनके इस आकस्मिक निधन ने पूरे साहित्य जगत को हिलाकर रख दिया है. मंगलवार शाम करीब 5:30 बजे उन्होंने इस लोक को छोड़ दिया. उन्हें नौटंकी, गोलियों के रंगमंच को शहरी जनता में स्थापित करने के लिए जाना जाता है. वह अपनी विशिष्ट शाई नागरी नौटंकी के जनक आदरणीय उर्मिल कुमार थपलियाल का काम पूरे भारत में मशहूर रहे. वह आंतों के कैंसर से पीड़ित थे. वह इस साल के अप्रैल से काफी बीमार चल रहे थे. उनको कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पिछले सप्ताह उनकी तबीयत अधिक खराब होने पर उन्हें गोमतीनगर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां मंगलवार शाम साढ़े पांच बजे उनका निधन हो गया. वह अपने पीछे बेटा रितेश और बेटी रितुल मिश्रा समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गए हैं. उनका अंतिम संस्कार बुधवार सुबह 9 बजे बैकुठ धाम में किया जायेगा.

अपने आवास पर ली अंतिम सांस

वरिष्ठ साहित्यकार और रंगकर्मी उर्मिल कुमार थपलियाल के दामाद सत्येन्द्र मिश्रा ने बताया कुछ समय से वे अस्वस्थ थे. यह हृदय विदारक खबर साहित्य जगत, संस्कृति एवं पत्रकारिता जगत के लिए आपूर्णिय क्षति है. युवा रंगकर्मी मुकेश वर्मा ने बताया कि नाट्य गुरु का जाना बहुत दुखद खबर है. उनके निधन से केवल लखनऊ ही नहीं बल्कि पूरे देश के रंगकर्म की भारी क्षति है.

वरिष्ठ रंगकर्मी और उर्मिल कुमार थपलियाल के पुराने साथियों में से एक सूर्यमोहन कुलश्रेष्ठ ने बताया कि 1974 से वह थपलियाल जी को निदेशक के रूप में देखते आ रहे हैं. नौटंकी शैली में उनको महारथ थी. उनके जैसा रंगकर्मी इस समाज को दूसरा कोई और नहीं मिल पाएगा. रंगकर्मी सीमा मोदी ने बताया कि बीते साल एक नाटक की तैयारी उनके साथ की गई थी. लेकिन, कोरोना संक्रमण के चलते वह कार्यक्रम स्थगित हो गया.

ऐसे हुई थी शुरुआत

16 जुलाई 1943 को गढ़वाल में उनका जन्म हुआ था. वह बहुत अभावों और मुश्किलों में पले बढ़े थे. उन्होंने बचपन में रामलीला में सीता का किरदार अदा करते करते अभिनय को आत्मसाथ कर लिया. वर्ष 1965 में लखनऊ आ गये और आकाशवाणी लखनऊ में कार्यरत हो गए. सोहन लाल थपलियाल के नाम से आकाशवाणी में प्रादेशिक समाचार पढ़ते-पढ़ते आकाशवाणी के लिए एक दो मिनट के फिलर के लिए आधुनिक विषयों को नौटकी के व्याकरण से जोड़ने लगे. 1971 में प्रोफेसर सत्यमूर्ति (मास्साब) लखनऊ में आधुनिक रंगमंच के लिए दर्पण कानपुर की लखनऊ इकाई की स्थापना करना चाहते थे. उन्होंने थपलियाल के साथ मिलकर दर्पण लखनऊ की स्थापना की. संगीत प्रधान नाटकों के इतर भी, उनके द्वारा निर्देशित कई चर्चित नाटक रहे जिनमें किसी एक फूल का नाम लो, सूर्य की अंतिम किरण.. , गुफायें, हनीमून, खूबसूरत बहू, कमला, कागजी है पैरहन, हे ब्रेख्त इत्यादि शामिल हैं. उन्हें यश भारती, केन्द्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की रत्न सदस्यता और अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का कला भूषण व भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार जैसे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्होंने कई अखबारों पत्रिकाओं के लिए लेख और कॉलम लिखें. 200 से भी अधिक नाटकों का निर्देशन किए थे.

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Last Updated : Jul 21, 2021, 8:47 AM IST

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