हिंदी भाषा को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं. देखें खबर लखनऊ :हिन्दवी उत्सव के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार शिवमूर्ति ने हिंदी साहित्य के संरक्षण और प्रचार के महत्व पर अपनी बहुमूल्य अंतर्दृष्टि साझा की और दर्शकों को अपने गहन शब्दों से प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि हिंदी न सिर्फ हमारी मातृभाषा है बल्कि 'हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा'. हिंदी भाषा अपने आप में अपनी स्थान बनाने के लिए पर्याप्त है. हिंदी भाषा को किसी भी प्रकार की बैसाखी की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि आने वाले समय में साहित्य अब कागज तक ही सीमित नहीं रहेगा, तकनीक बहुत आगे जा चुकी है. तकनीक के इस बदलाव का बेहतरीन उपयोग रेख़्ता और हिन्दवी ने किया है. साहित्य को इतने बड़े पैमाने पर डिजिटलाइज़ करने और इस उपक्रम की शुरुआत करने वाले संजीव सराफ को शुक्रिया कहना चाहता हूं आज के समय में लोग फ़ायदे के लिए निवेश करते हैं. साहित्य में निवेश धन का सर्वोत्तम उपयोग है.
हिंदी भाषा को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं. हिंदी भाषा को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं. हिन्दवी उत्सव के प्रथम सत्र में कठिन समय में कटाक्ष विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई. जिसमें सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी, कथाकार अखिलेश और लेखिका शालिनी माथुर ने शिरकत की. सत्र का संचालन ममता सिंह ने किया. हरिशंकर परसाई के 100 वर्ष में श्रीलाल शुक्ल के शहर लखनऊ में आयोजित इस कार्यक्रम की गरिमा के अनुरूप उक्त विषय का चयन किया गया था. परिचर्चा में वक्ताओं ने समकाल में अभिव्यक्ति की आवश्यकता और इसके खतरों पर बौद्धिक संवाद प्रस्तुत किया.
हिंदी भाषा को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं.
आयोजन के द्वितीय सत्र में कविता-पाठ का आयोजन किया गया. जिसमें समादृत कवि अरुण कमल, कुमार अम्बुज, अजंता देव, सविता भार्गव और कवि-गीतकार यश मालवीय ने भाग लिया. विभिन्न विषयों पर प्रस्तुत कविताओं ने न केवल एक संवाद का निर्माण किया बल्कि दर्शकों का भरपूर मनोरंजन भी किया. कार्यक्रम का संचालन नवोदित कवयित्री नाजिश अंसारी द्वारा किया गया. कविता पाठ के बाद अंतिम सत्र में प्रसिद्ध ‘षडज’ बैंड द्वारा एक आत्मीय संगीत प्रस्तुति दी गई. उनकी प्रस्तुति दर्शकों द्वारा ख़ूब सराही गई और बार-बार तालियां बजा उनका स्वागत किया गया.
हिंदी भाषा को किसी सहारे की आवश्यकता नहीं. कार्यक्रम के आखिरी में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए रेख़्ता फ़ाउंडेशन के संस्थापक संजीव सराफ़ ने कहा, हरिशंकर परसाई के व्यंग्य आज के दौर में भी प्रासंगिक हैं. उन्होंने कहा कि हिन्दवी उत्सव की सफलता हिंदी साहित्य के बढ़ते महत्व और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसकी विरासत को बनाए रखने की आवश्यकता को रेखांकित करती है. हिन्दवी (Hindwi.org) हिंदी भाषा और संस्कृति के प्रति गहरे उपार्पण का प्रतीक है और भविष्य में भी इस तरह के बहुमुखी कार्यक्रमों का आयोजन जारी रखने का वादा करता है.
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