लखनऊ : समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए गठबंधन की राजनीति कभी मुफीद नहीं रही. वर्ष 2017 से लेकर अब तक चाहे विधानसभा चुनाव हो, लोकसभा चुनाव या फिर निकाय चुनाव. हर बार अखिलेश को हार ही मिली है. अखिलेश ने इन सभी चुनावों में विभिन्न दलों के साथ गठबंधन का प्रयोग किया, लेकिन ऐसा एक भी प्रयोग उन्हें सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंचा पाया. अब एक बार फिर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश गठबंधन के साथ जाने को तैयार हैं. देखना होगा कि यह विपक्षी महागठबंधन का दांव कितना सही बैठता है.
सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता को लेकर पूरी ताकत के साथ जुटे हुए हैं. पटना से लेकर बेंगलुरु तक अखिलेश यादव ने महागठबंधन की कवायद को लेकर विपक्षी दलों की बैठक में न सिर्फ़ शामिल हुए, बल्कि बढ़-चढ़कर अपनी भूमिका का निर्वहन भी किया. अखिलेश की कोशिश है कि भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ चुनावी लड़ाई में सभी दल एक साथ चुनाव मैदान में उतरें. तभी भारतीय जनता पार्टी का सामना मजबूती के साथ किया जा सकता है. गैर भाजपा दलों को एक मंच पर लाकर विपक्षी दलों के नेता एक साथ चुनाव लड़ने की कोशिश में जुटे हुए हैं, लेकिन सवाल यह है कि अखिलेश यादव इस कोशिश में एक तरफ 26 दल एक साथ एक मंच पर आए हैं. उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक पर एकाधिकार रखने वाली बहुजन समाज पार्टी पूरी तरह से विपक्षी गठबंधन से अलग है.
बसपा सुप्रीमो मायावती ने घोषणा की है कि बहुजन समाज पार्टी विपक्षी महागठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ेगी. ऐसे में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में अखिलेश यादव कांग्रेस राष्ट्रीय लोक दल सहित अन्य छोटे दलों को मिलाकर अगर चुनाव मैदान में उतरते भी हैं तो उन्हें अपेक्षित सफलता मिल पाना आसान नहीं है. खास बात यह भी है कि 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने जिन छोटे दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ने का काम किया था उसमें से पूर्वांचल में बड़ी भूमिका का निर्वहन करने वाले ओमप्रकाश राजभर ने भी अखिलेश यादव का साथ छोड़ दिया है. वह भारतीय जनता पार्टी के गठबंधन में जा चुके हैं.