हैदराबाद:रास्ते मुकम्मल हो तो सफर आसां होता है, लेकिन अगर संघर्ष की पगडंडियों पर चलकर मंजिल हासिल हो तो उसका आनंद ही कुछ और होता है. पिता की दिली हशरत थी कि बेटा पहलवान बने, लेकिन बेटे के नसीब में कुछ और ही था. वक्त के थपेड़ों ने उसे जिंदगी के कई रंग दिखाए, पर वो अपने पथ से बिना विचलित हुए बस आगे बढ़ता रहा. आखिरकार उसे उसकी मंजिल मिल ही गई. एक बार नहीं, दो बार नहीं, बल्कि तीन बार वो उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना. जी हां, आज हम बात कर रहे हैं समाजवादी पार्टी के संरक्षक व सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की. मुलायम सिंह यादव के सियासी सफरनामे (Political journey of Mulayam Singh Yadav) को जान आप इतना जरूर समझ जाएंगे कि जरूरत और ख्वाहिश में क्या अंतर है और जब परिस्थितियां विपरीत हो तो वक्त के साथ समझौता कितना अहम होता है.
मुलायम सिंह यादव (mulayam singh yadav)ने अपने सियासी जीवन में यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज के सामाजिक स्तर को ऊपर लाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए. वहीं, उनकी पहचान एक ऐसे राजनेता के रूप में रही है, जो साधारण किसान परिवार से निकलकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे. चाहे वो प्रदेश की सियासत हो या फिर देश की, दोनों ही जगह उनकी बड़ी पहचान रही है. साथ ही वे उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री बने तो वहीं, एक बार उन्हें देश के रक्षा मंत्री के रूप में सेवा देने का भी अवसर मिला था. 22 नवंबर, 1939 को इटावा के ग्राम सैफई में जन्मे मुलायम सिंह यादव अपने पिता के तीसरे संतान थे. कहा जाता है कि जब उनका जन्म हुआ तो गांव के एक पंडित ने कहा था कि यह लड़का पढ़ेगा और अपने कुल का नाम करेगा. लेकिन पिता की दिली हशरत थी कि वे पहलवान बने. मुलायम सिंह की शुरुआती शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई और इसके बाद उनका विवाह 1957 में मालती देवी से हुआ, जिनसे बेटे अखिलेश हुए.
वहीं, आगे चलकर उनका संपर्क लोहिया और उनके संग जुड़े लोगों से हुआ, जिसके बाद उन्होंने सियासत में कदम रखा. मुलायम सिंह ने अपने सियासी जीवन में यूपी में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज के सामाजिक स्तर को बेहतर बनाने की दिशा में कई महत्वपूर्ण कार्य किए. मुलायम सिंह से जुड़ा एक किस्सा जो उनके सियासी तेवर को दिखाता है. महज 14 साल की उम्र में मुलायम सिंह को जेल जाना पड़ा था. तब वे राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर 'नहर रेट आंदोलन' (nahar ret aandolan)में शामिल हुए थे और पहली बार जेल गए. वहीं, सियासत में आने से पहले मुलायम सिंह एक स्कूल में पढ़ाया करते थे. तब वो साइकिल से स्कूल जाया करते थे. इसीलिए जब मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया तो चुनाव चिह्न साइकिल ही रखा.
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गुरु की सीट से शुरू की सियासत
मुलायम सिंह यादव ने अपने सियासी गुरु नत्थू सिंह को मैनपुरी में आयोजित एक कुश्ती प्रतियोगिता में अपने दांव और चतुराई से प्रभावित किया था. बाद में मुलायम जब सियासत में आए तो उन्होंने गुरु नत्थू सिंह (Mulayam Singh Yadav Guru Nathu Singh)के परंपरागत विधानसभा क्षेत्र जसवंतनगर से ही अपने सियासी सफर को शुरू किया. हालांकि, तब उन्होंने विधायकी का चुनाव सोशलिस्ट पार्टी और फिर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा था. हर बार उन्हें जीत हासिल हुई. बाद में उन्होंने स्कूल के अध्यापन कार्य से इस्तीफा दे दिया था.