लखनऊ : समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बहुप्रतीक्षित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है. अखिलेश यादव ने नई कार्यकारिणी में एक तरफ जहां शिवपाल सिंह यादव को बड़ी जिम्मेदारी दी है. वहीं रामचरित मानस पर टिप्पणी करने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य का कद भी बढ़ाया है. इसके अलावा जातीय समीकरण को लेकर अखिलेश यादव ने कई बड़े संकेत अपनी इस नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी के माध्यम से देने की कोशिश की है. चौंकाने वाली बात यह है कि अखिलेश ने अपनी इस नई कार्यकारिणी में ऊंची जातियों से पूरी तरह से दूरी बनाई है जो भविष्य में उन्हें इसका जवाब भी देना पड़ सकता है.
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी पिछड़ा कार्ड पर पूरी तरह से फोकस करती हुई नजर आई है. इस राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुख्य रूप से ओबीसी समाज का प्रतिनिधित्व सबसे अधिक है, जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज से अखिलेश यादव ने पूरी तरह से दूरी बनाई हुई है जो भविष्य में अपने आप में कई तरह के सियासी समीकरण को भी बताने का काम करेगी. इसके अलावा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव अपनी इस नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दूसरे दलों से आने वाले नेताओं पर भी मेहरबान दिखे हैं और कई बड़े नेताओं को उन्होंने राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी दी है.
62 सदस्यों वाली इस राष्ट्रीय टीम में अखिलेश यादव ने सबसे अधिक प्रतिनिधित्व ओबीसी समाज को दिया है. इसके बाद मुस्लिम समाज से जुड़े चेहरों को भी जिम्मेदारी दी गई है. जबकि ब्राह्मण और क्षत्रिय समाज का प्रतिनिधित्व सिर्फ कहने के लिए ही हैं. 18 राष्ट्रीय महासचिव इस नई कार्यकारिणी में बनाए गए हैं, जिनमें एक भी ब्राह्मण और एक भी क्षत्रिय नेता को जिम्मेदारी नहीं दी गई है. जिससे कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या इस समाज को अखिलेश यादव पूरा सम्मान और प्रतिनिधित्व देना चाहते हैं. क्या इस वर्ग के बिना वह वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में ओबीसी समीकरण को लेकर चुनाव मैदान में उतरेंगे. सपा के प्रवक्ता अमीक जामेई ने कहा कि राष्ट्रीय कार्यकारणी में शिवपाल यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य के जनरल सेकरेट्री बनाए जाने से संविधान और जातीय जनगणना के लिए शुरू होने वाले संघर्ष को धार मिलेगी. वहीं भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा है कि श्रीरामचरित मानस के अपमान का पुरस्कार स्वामी प्रसाद मौर्य को मिला है. उन्होंने आगे कहा कि सपा चाहती है कि उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़े. सपा यूपी में जातीय संघर्ष उत्पन्न करना चाहती है. कहा कि सपा अपने मंसूबों में कामयाब नहीं होगी. घोषित लिस्ट में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का हिंदू विरोधी और जातिवादी चेहरा सामने आया है.