लखनऊ: समाजवादी पार्टी बुधवार से अपना दो दिवसीय सम्मेलन कर रही है. पहले दिन का सम्मेलन राज्य स्तरीय था, जिसमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का चयन किया जाना था. किसी और के पर्चा न भरने के कारण नरेश उत्तम पटेल को दोबारा पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया. सोशल मीडिया पर इस फैसले की आलोचना हो रही है. तमाम कार्यकर्ता भी इस फैसले से खुश नहीं हैं और दबी जुबान अपनी नाराजगी जाहिर करते हैं.
स्वाभाविक है कि राजनीति में आने वाला हर नेता अहम पदों पर पहुंचने की ख्वाहिश रखता है. हालांकि जब शीर्ष नेतृत्व सभी फैसले लेने लगता है, तो सभी चुनाव बेमानी हो जाते हैं, जैसे कि यह कल पार्टी का राष्ट्रीय सम्मेलन है और एक तरह से तय है कि अखिलेश यादव को निर्विरोध रूप से पार्टी का अध्यक्ष चुन लिया जाएगा.
पार्टी के कई नेताओं को उम्मीद थी कि पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव 2022 के विधान सभा चुनावों में किए गए कई गैर जरूरी और गलत फैसलों से सबक लेंगे और इस सम्मेलन में कुछ ऐसे फैसले करेंगे कि पार्टी और कार्यकर्ताओं में उत्साह भरे. साथ ही लोगों में यह संदेश जाए कि विधानसभा चुनावों में पराजय के छह माह बाद जब यह सम्मेलन हो रहा है, तो नेतृत्व बदली हुई रणनीति के साथ सामने आया है. लगातार आलोचनाओं के शिकार होते रहे अखिलेश यादव ने नरेश उत्तम पटेल को दोबारा अध्यक्ष बनाकर आलोचकों को मौका दे दिया. सपा प्रमुख ने अतीत की गलतियों से कुछ सबक लिए हों ऐसा सम्मेलन के पहले दिन महसूस नहीं हुआ.
उन्होंने अपने भाषण में पूर्व मंत्री रविदास मेहरोत्रा की खूब प्रशंसा की. अखिलेश ने कहा कि ऐसे नेता ही समाजवादी पार्टी की थाती है. यह सही है कि रविदास मेहरोत्रा को एक जुझारू नेता के तौर पर जाना जाता है, पर क्या कह देनेभर से उनके संघर्ष की भरपाई हो गई? क्या उन्हें अहम पद देकर यह संदेश नहीं दिया जाना चाहिए था कि लोग नेता या कार्यकर्ता पार्टी के लिए संघर्ष करेंगे, उन्हें पार्टी भी जवज्जो और ईनाम देगी. अपने भाषण में अखिलेश ने दलितों के मुद्दे को भी जोरशोर से उठाया पर यब भूल गए कि जिस ओबीसी वोट बैंक के दम पर सपा सत्ता में पहुंची थी, उसे कैसे बांध कर रखा जाए.