लखनऊ : उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के बीच सोशल मीडिया (sp bjp social media controversy) पर शुरू हुई जुबानी जंग अब सड़कों पर उतर आई है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (SP President Akhilesh Yadav) रविवार को अपने सोशल मीडिया देखने वाले युवक की गिरफ्तारी के बाद पुलिस मुख्यालय पहुंचे और सरकार पर तमाम आरोप लगाए. इस घटना को लेकर दिनभर हंगामा होता रहा. यह लड़ाई कहां जाकर रुकेगी कहना कठिन है. हालांकि यह जरूर है कि पार्टी के दिग्गज नेता इस तरह की स्तरहीन राजनीति को पसंद नहीं करते. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी इस तरह की राजनीति को अमर्यादित और गैर जरूरी बताते हैं. सपा में कई ऐसे नेता हैं, जो गैर जरूरी, स्तरहीन और निजी टिप्पणियों को पसंद नहीं करते.
एक दौर था जब राजनीति में परस्पर विरोधी (Samajwadi and BJP's altercation ) होने के बावजूद लोग कभी भी एक दूसरे पर निजी टिप्पणियां नहीं करते थे. यही नहीं तमाम पक्ष-विपक्षी के नेता कार्यक्रमों और निजी आयोजनों में एक-दूसरे से मिलते थे, कुशलक्षेम पूछते थे, दुख-सुख में भी शरीक होते थे. संसद और विधान भवनों में भी कई बार यह बात हुई कि विरोध नीतियों का होना चाहिए, परस्पर नहीं. दो पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और चंद्रशेखर की दोस्त और विरोध एक राजनीतिक मिसाल हो सकती है. चंद्रशेखर अटल जी को अपना गुरु मानते थे और संसद में अपने तर्कों से अटल जी का खूब विरोध भी करते थे. राजनीति का तकाजा भी यही है. यदि नेताओं में दलीय दुर्भावना बढ़ी और यदि बात बदला लेने और सत्ता के दुरुपयोग तक पहुंची तो इसमें नुकसान सभी का होगा, क्योंकि सत्ता किसी एक की नहीं होती. जो आज सत्ता में हैं, कल वह विपक्ष में हो सकता है. हालांकि यह बातें न तो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता समझ रहे हैं और न ही मुख्य विपक्षी पार्टी सपा के नेता. दोनों ही दलों के नेताओं ने मर्यादा की सीमाएं लांघी और एक-दूसरे पर व्यक्तिगत और ओछी टिप्पणियां करते रहे. इसे लेकर भाजपा नेताओं ने सपाइयों पर एफआईआर कराई, तो ऐसी ही टिप्पणियों को लेकर सपा ने भी भाजपा नेता के खिलाफ केस दर्ज कराया. हैरानी की बात है कि दोनों ही दलों का नेतृत्व अपने नेताओं को स्तरहीन और घटिया टिप्पणियां करने से क्यों नहीं रोक रहा है, जबकि इन दलों के तमाम नेता ऐसी टिप्पणियों से इत्तेफाक नहीं रखते.