लखनऊ: नगर निकायों में तैनात आशुलिपिकों वैयक्तिक सहायकों (पर्सनल असिस्टेंट) के वेतन पुनरीक्षण का मामला अभी भी लटका हुआ है. यह हाल तब है, जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर मुख्य सचिव स्तर पर एक वेतन समिति गठित कर कार्रवाई करने की बात कही गई थी. इसके बावजूद दो साल से यह कवायद सिर्फ फाइलों तक ही सीमित है. ऐसे में नगर विकास विभाग के आशुलिपिक वैयक्तिक सहायकों का वेतन पुनरीक्षण राज्य कर्मचारियों की तरह नहीं हो सका है. हजारों कर्मचारियों का सैलरी स्ट्रक्चर व्यवस्थित नहीं हुआ है, जिससे ये सभी परेशान हैं.
नहीं मिल पा रहा वेतन वृद्धि और प्रमोशन का लाभ
नगर विकास विभाग के अंतर्गत नगर निकायों में आशुलिपिक कऔर वैयक्तिक सहायकों (पर्सनल असिस्टेंट) के पद पर काम करने वाले कर्मचारियों का संवर्ग नहीं होने से वेतन बढ़ोतरी और पदोन्नति का लाभ हजारों कर्मचारियों को नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में इन पदों पर नियुक्त होने वाला कर्मचारी इसी पद पर सेवा करते-करते रिटायर हो जाता है.
पांच साल से घूम रही हैं फाइलें
यह विसंगति नगर विकास और वित्त विभाग की खींचतान के चलते पिछले पांच साल से यह मामला लटका हुआ है. पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार में भी इसे दूर करने की कवायद शुरू हुई थी, लेकिन यह सिर्फ फाइलों तक ही सीमित रही. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद कर्मचारियों के हित को लेकर ध्यान दिया गया. मुख्यमंत्री के निर्देश के बावजूद यह मामला सिर्फ नगर विकास और वित्त विभाग के बीच फाइलों तक ही सीमित है. आशुलिपिक और वैयक्तिक सहायक के पद पर नियुक्त होने से लेकर सेवानिवृत्त होने तक कर्मचारियों के वेतन में कोई खास बढ़ोतरी नहीं हो पाती है.
कर्मचारी संगठनों की मांग को देखते हुए पिछली सरकार में भी इनके वेतन पुनरीक्षण कराने का प्रस्ताव तैयार किया गया था. अब तक इस पर कोई प्रगति नहीं हुई है. भाजपा सरकार में भी इसे दूर करने की बात हुई थी.