हैदराबाद: यूपी विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर जिस पार्टी को सफलता मिली, सरकार उसी की बनती है. वहीं, बीते कई विधानसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो ये आरक्षित सीटें किसी भी पार्टी के लिए सत्ता पाने या गंवाने के लिहाज से काफी अहमियत रखती हैं. इस चुनाव में भी इन आरक्षित सीटों पर सभी पार्टियां अपने समीकरण तय करने में जुटी हैं. हालांकि अबकी हालात कुछ भिन्न हैं, फिर भी सवाल जस के तस बरकरार हैं कि क्या आरक्षित सीटों के परिणामों का इतिहास एक बार फिर खुद को दोहराएगा या अबकी कुछ नया देखने को मिलेगा ? असल में 403 विधानसभा सीटों वाले यूपी में अबकी कुल 86 आरक्षित सीटों में से 84 सीटें अनुसूचित जातियों की हैं तो वहीं, दो अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित हैं. ये दोनों सीटें प्रदेश के दक्षिणी-पूर्वी जनपद सोनभद्र में दुद्धी और ओबरा हैं. वहीं, इन सीटों के लिए अब तक करीब सभी पार्टियों ने अपने प्रत्याशियों के नामों का एलान भी कर दिया है.
इन सीटों पर दलों का दांव
सूबे में दलितों और पिछड़ों की सियासत करने वाली बसपा अबकी आरक्षित सीटों पर खासा ध्यान दे रही है. इधर, बसपा सुप्रीमो मायावती पूरी कोशिश में हैं कि अनुसूचित जाति के वोटों के साथ ही वो अगड़ी जाति के खासकर ब्राह्मण समुदाय के मतदाताओं को भी अपनी ओर आकर्षित कर सके और यही कारण है कि उन्होंने अपनी पुरानी सियासी स्ट्रैटजी में काफी फेरबदल किए हैं. हालांकि समाजवादी पार्टी भी इन सीटों पर अपने 2012 का इतिहास दोहराने की पूरी कोशिश कर रही है. इन सीटों का एक रोचक तथ्य यह भी है कि हर विधानसभा चुनाव में आरक्षित सीटों पर सरकार विरोधी लहर रही है. ऐसे में समाजवादी पार्टी अपने हाथ से यह मौका गंवाना नहीं चाहती है तो भाजपा भी इन सीटों पर जातिगत समीकरण को ध्यान में रखकर प्रत्याशियों के चयन से लेकर दूसरी जातियों के मतदाताओं को लामबंद करने तक पूरी तैयारी में जुटी है. खैर, हिंदू-मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण में कहीं अनुसूचित जाति के वोट छिटक न जाएं इस पर पार्टी की नजर है.
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जानें आरक्षित सीटों का समीकरण
ऐसे तो हर राज्य की विधानसभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की सीटों की संख्या को जन प्रतिनिधित्व कानून, 1950 की धारा 7 के तहत तय किया गया है. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन आदेश, 1976 के मुताबिक साल 2004 में अनुसूचित जातियों के लिए यूपी में 89 विधानसभा सीटें आरक्षित की गई थीं. लेकिन परिसीमन आदेश, 2008 से यह संख्या घटकर 85 हो गई. वहीं, साल 2012 के विधानसभा चुनाव के बाद संसद में अध्यादेश के माध्यम से परिसीमन आदेश में संशोधन हुए और फिर सूबे में अनुसूचित जातियों के लिए 84 और अनुसूचित जनजातियों के लिए 2 सीटें तय की गई.