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सड़क सुरक्षा के नाम पर फिर होगी खानापूरी, हादसे रोकने के लिए नहीं हो रहे सही उपाय

यूपी में सड़क सुरक्षा को लेकर हर साल लाखों का बजट सिर्फ जागरूकता के नाम पर खपा दिया जाता है. वास्तव में बजट खपाने के लिए सड़क सुरक्षा सप्ताह या पखवारा की औपचारिकता निभाई जाती है. धरातल पर व्यवस्था पूरी तरह चौपट है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Jul 6, 2023, 4:37 PM IST

लखनऊ :प्रदेश सरकार एक बार फिर सड़क सुरक्षा सप्ताह मनाने की तैयारी कर रही है. यह सालाना होने वाला आयोजन रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ भी नहीं लगता है. प्रदेश में हादसों की तादाद साल-दर-साल बढ़ती जा रही है. लोग नियमों की फिक्र नहीं करते और सरकार है कि कड़ाई से नियमों का पालन भी नहीं करा पाती है. हाल ही में सरकार ने 2016 से 2021 के बीच हुए वाहनों के चालान माफ कर दिए. स्वाभाविक है कि इस फैसले से लोगों को राहत मिली, पर यह संदेश भी गया कि ट्रैफिक नियम तोड़ते रहो, देर-सबेर चालान माफ हो ही जाएंगे.

सड़क सुरक्षा के नाम पर फिर होगी खानापूरी.



प्रदेश की भाजपा सरकार 17 से 31 जुलाई तक सड़क सुरक्षा पखवारे का आयोजन कर रही है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य सड़क हादसों की तादाद में कमी लाना और लोगों को नियमों के प्रति जागरूक करना है. इस बार सरकार ने एक नई पहल की है. यदि कोई कर्मचारी दूसरी बार बिना हेलमेट के पाया गया तो उसे गैरहाजिर माना जाएगा. यह आदेश सभी सरकारी विभागों में लागू है. सरकार की यह पहले अच्छी तो है, लेकिन इसका अनुपालन कैसे होगा, यह कोई नहीं जानता. क्या किसी विभाग का मुखिया स्टैंड पर खड़ा होकर यह देखेगा कि कौन कर्मचारी हेलमेट लगाकर आया है और कौन नहीं? इस आदेश पर अमल थोड़ा कठिन लगता है.

सड़क सुरक्षा के नाम पर फिर होगी खानापूरी.



इस पखवारे में जिला स्तर पर रोड़ सुरक्षा एक्शन प्लान तैयार किया जाता है और हादसों के लिए प्रमुख कारण और हादसे के लिए चिह्नित एक्सीडेंट जोन आदि की सूचनाएं परिवहन आयुक्त को प्रेषित की जाती हैं. सरकार का प्रयास है कि इस बार विभागवार जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जाएं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके. हालांकि प्रदेश में अज्ञानता से ज्यादा नियमों की अनदेखी ही दुर्घटनाओं का प्रमुख कारण है. प्रदेश में यदि हादसों की बात करें तो गत वर्ष की तुलना में साढ़े पांच फीसद इजाफा हुआ है. वहीं दुर्घटनाओं में मौतों का आंकड़ा चार फीसद से ज्यादा बढ़ा है. यह स्थिति वाकई चिंताजनक है. सूबे में हर साल वाहनों की संख्या बढ़ रही है. यदि लोगों को सऊर नहीं आया तो हादसों और इसमें होने वाली मौतों की संख्या और भी बढ़ सकती है.

सड़क सुरक्षा के नाम पर फिर होगी खानापूरी.


सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी आदित्य प्रकाश गंगवार कहते हैं यदि यातायात नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए तो हादसों की संख्या में गिरावट आ सकती है और मौतों में भी कमी लाई जा सकती है. नियम न मानने और अनुपालन न करा पाने के लिए जनता और विभाग दोनों ही समान रूप से जिम्मेदार हैं. यदि इसे देश के तमाम महानगरों में नियमों की अनदेखी पर कड़ा दंड देकर लोगों को राह पर लाया जा रहा है तो उत्तर प्रदेश में यह क्यों नहीं हो सकता. यदि प्रदेश के ही नोएडा और गाजियाबाद की बात करें, तो वहां भी नियमों का कड़ाई से पालन होता है. फिर ऐसा क्या कारण है कि यहां के लोग नहीं मानते और प्रशासन भी नहीं मनवा पाता. जब तक दोनों पक्ष नहीं चेतेंगे स्थिति में सुधार आ पाना कठिन है.

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