लखनऊ :सर्दियों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि इस मौसम में शरीर में रक्त का प्रवाह धीमी गति से होता है, जिसके चलते कभी-कभी रक्त प्रवाह पूरी तरह से रुक जाता है. इस स्थिति में ब्रेन स्ट्रोक अटैक होता है. केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रवि उनियाल ने जानकारी देते हुए बताया कि 'पिछले दो वर्षों में बच्चों में ब्रेन स्ट्रोक का खतरा करीब 15 फीसदी बढ़ा है. कम उम्र में बच्चों को ब्रेन स्ट्रोक का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, इस वजह माता-पिता भी टेंशन में आ जाते हैं. डॉक्टरों के मुताबिक, एक वयस्क के मस्तिष्क की तुलना में एक बच्चे को ब्रेन स्ट्रोक से उबरने की बेहतर संभावना होती है.'
'न्यूरोलॉजी विभाग में चल रहा बच्चे का इलाज' : बाराबंकी से आए सिद्धार्थ मल्होत्रा ने बताया कि 'शुरुआत में बिल्कुल भी पता नहीं चला कि बच्चे को ब्रेन स्ट्रोक है. धीरे-धीरे बच्चा बड़ा होने लगा. बच्चा जब तीन साल का पूरा हो गया तो यह उम्मीद हुई कि अब बच्चा चलने फिरने लगेगा, लेकिन बच्चे को चलने फिरने में दिक्कत होती थी. वह अधिक मूवमेंट भी नहीं करता था. बच्चों के बड़े होने के साथ यह समस्या बढ़ने लगी. हर कोई बोलने लगा कि तीन साल की उम्र में बच्चा हल्का-फुल्का चलना शुरू कर देता है, फिर इसके बाद डॉक्टर को दिखाना शुरू किया. बाराबंकी में जिला अस्पताल में दिखाया. वहां पर डॉक्टर ने कहा कि लखनऊ के केजीएमयू में लेकर जाएं. केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में बच्चे का इलाज शुरू हुआ. अभी इलाज करते हुए चार महीना हुआ है.'
लक्षण |
- बच्चे को दौरा पड़ना. |
- बहुत ज्यादा नींद आना और मानसिक स्थिति में बदलाव होना. |
- बच्चा जब शरीर के एक ही साइड का उपयोग करे. |
- छोटे बच्चों में अक्सर निदान में देरी हो जाती है. |
- बड़ी उम्र के बच्चों में स्ट्रोक के लक्षण वयस्कों की तरह होते हैं. |
- तेज सिरदर्द और उल्टी होना. |
- देखने या आंखों की गति में परेशानी. |
- शरीर या चेहरे के एक हिस्से में कमजोरी या सुन्न होना. |
- अचानक भ्रम होना या चक्कर आना. |
- चलने, संतुलन बनाने या तालमेल बनाने में परेशानी. |
- दिखाई देने में परेशानी. |
'जांच में पता चला काफी समय से है ब्रेन स्ट्रोक' : गोंडा के अखिल प्रजापति अपने चार महीने के नवजात को केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग में दिखाने के लिए पहुंचे. उन्होंने बताया कि बच्चे के शरीर में एक नॉर्मल बच्चों की तरह हलचल नहीं हो रही थी. जिस वजह से डॉक्टर को दिखाने के लिए कई लोगों ने सुझाव दिया. हमने पहले इतना ध्यान नहीं दिया था, लेकिन एक दो महीना बचने के बाद यह महसूस होने लगा कि बच्चे का एक तरफ का शरीर हलचल कर रहा है, लेकिन दूसरे हिस्से का शरीर शांत रहता है. जिसके बाद न्यूरोलॉजी विभाग में डॉक्टरों ने बच्चे का एमआरआई जांच कराई. एमआरआई में पता चला कि बच्चे को जन्म से ही ब्रेन स्ट्रोक है. पिछले एक साल से केजीएमयू में बच्चे का इलाज कराया जा रहा है, जिस समय बच्चे का ब्रेन स्ट्रोक डायग्नोज हुआ था. उस समय उसकी उम्र महज तीन महीने की थी. वर्तमान में बच्चा डेढ़ साल का हो चुका है. पहले से काफी सुधार हुआ है, लेकिन अभी पूरी तरह से बच्चा स्वस्थ नहीं है.
सही समय पर हर बीमारी का इलाज संभव :केजीएमयू के न्यूरोलॉजी विभाग के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रवि उनियाल ने बताया कि 'बच्चों में ब्रेन स्ट्रोक बहुत रेयर बीमारी है, लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ब्रेन स्ट्रोक से पीड़ित बच्चों की संख्या नहीं है. यदि वयस्कों में 100 मरीज ब्रेन स्ट्रोक के हैं तो उसके 10 प्रतिशत ब्रेन स्ट्रोक से छोटे बच्चे भी पीड़ित हैं. इसलिए जरूरी है कि लोग जागरुक रहें. खुद के प्रति भी और अपनी बच्चों के प्रति भी. उन्होंने कहा कि बड़ी बीमारियों में सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि लोग इसके बारे में जानते नहीं हैं. जानकारी का अभाव होता है. जागरूकता की कमी होती है. सही समय पर हर बीमारी का इलाज संभव है.'