लखनऊ:विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को पत्र भेजकर भाजपा विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द किए जाने को लेकर जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि किसी भी मामले में विधायक को सजा मिलने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के क्रम में सदस्यता निरस्त हो जाती है और यह मामला विधानसभा अध्यक्ष के स्तर पर नहीं होता है. विधान सभा सचिवालय की तरफ से ही विधानसभा सीट रिक्त घोषित करने की कार्यवाही होती है. उन्होंने कहा है कि जयंत चौधरी को पहले तथ्यों से अवगत हो जाना चाहिए था. उसके बाद ही किसी प्रकार का सवाल खड़ा करना चाहिए था. विधानसभा अध्यक्ष महाना में पत्र भेजकर इस मामले में जवाब दिया है. उन्होंने कहा है कि विधायक विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द करने की कार्यवाही सजा घोषित होने के साथ ही हो चुकी है.
उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान को सजा घोषित होने के बाद सदस्यता निरस्त होने और विधानसभा सीटें रिक्त घोषित होने के बाद जयंत चौधरी ने विक्रम सैनी की सदस्यता समाप्त किए जाने को लेकर सवाल खड़ा किया था. उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भेजा था, जिसको लेकर अब विधानसभा अध्यक्ष ने जवाब भेजा है.
जयंत चौधरी को विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भेजा गया पत्र
कृपया अपने पत्र दिनांक 29 अक्टूबर, 2022 का संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, जिसमें विक्रम सिंह सैनी, विधायक. खतौली, मुजफ्फरनगर के संदर्भ में कोई निर्णय न लेने एवं मेरे स्तर पर भिन्न मानक अपनाने के विषय में इंगित किया गया है. यह पत्र मेरे संज्ञान में मीडिया के माध्यम से आया. पत्र में वर्णित तथ्यों के विषय में विधिक अवधारणाओं का विवरण दिया जाना अनिवार्य है, जिससे स्थिति स्पष्ट हो सके.
सर्वप्रथम यह उल्लेखनीय है कि अध्यक्ष के स्तर पर मेरे द्वारा किसी सदस्य को न्यायालय द्वारा दण्डित करने की स्थिति में कोई सदस्यता रद्द किए जाने का निर्णय नहीं लिया जाता है. इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा याचिका संख्या - 490 / 2005 एवं याचिका संख्या-203/2005 में दिनांक 10 जुलाई, 2013 को पारित निर्णय के अनुसार सदन के किसी सदस्य को लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(3) के अंतर्गत किसी न्यायालय द्वारा दण्डित किए जाने पर उसकी सदस्यता निर्णय के दिनांक से स्वतः समाप्त मानी जाएगी.
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसी निर्णय में यह भी अवधारित किया गया है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) के अंतर्गत अ अभियोजित करने के आधार पर ऐसे सदस्य को कोई लाभ प्राप्त नही होगा. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) को इस निर्णय में असंवैधानिक घोषित किया गया है. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के सुसंगत अंश निम्नवत् हैं.
"However, if any sitting member of Parliament or a State Legislature is convicted of any of the offences mentioned in sub-sections (1), (2) and (3) of Section 8 of the Act and by virtue of such conviction and/ or sentence suffers the disqualifications mentioned in sub-sections (1), (2) and (3) of Section 8 of the Act after the pronouncements of this judgment, his, membership of Parliament or the State Legislature, as the case may be, will not be saved by sub-section (4) of Section 8 of the Act which we have by this judgment declared as ultra vires the Constitution notwithstanding that he files the appeal or revision against the conviction and/or sentence."