हैदराबादः2020 में कोरोना काल के दौरान सैकड़ों मील पैदल चलकर अपने गांव पहुंचे ग्रामीणों का वो दर्द आप नहीं भूले होंगे. आपको यह भी याद होगा कि उस बुरे वक्त में कैसे मनरेगा इन प्रवासी मजदूरों के परिवारों के जीवन यापन का सहारा बनी थी. जैसे-जैसे कोविड का असर कम हुआ तो घर लौटे प्रवासी मजदूर भी शहरों की ओर रुख कर गए. कई मजदूरों ने गांवों में ही रहना बेहतर समझा. मनरेगा उनके लिए अभी भी आय का मुख्य साधन है. सरकार ने इस बार बजट में मनरेगा पर जमकर कैंची चलाई है. यह कटौती 25000 करोड़ रुपए की है. चलिए जानते हैं कि आखिर यूपी में इसका क्या असर पड़ेगा.
कोविड काल यानी 2020-21 के दौरान सरकार ने मनरेगा का बजट बढ़ाकर 111,500 करोड़ कर दिया था. यह बजट देश में अब तक का मनरेगा सर्वाधिक बजट था. 2021-22 में सरकार ने इस बजट में कटौती कर पहले इसे 73 हजार करोड़ रुपए तय किया, हालांकि बाद में सरकार को इसे बढ़ाकर 98 हजार करोड़ रुपए करना पड़ा. इस वर्ष इस 98 हजार करोड़ रुपए के बजट पर सरकार ने और कैंची चला दी. 2022 में इस बजट में 25 हजार करोड़ रुपए और कम कर दिए गए. ऐसे में मनरेगा के सबसे बड़े हिस्सेदार यूपी पर इसका असर पड़ना तय है.
यूपी के दो करोड़ से ज्यादा परिवार जुड़े हैं
अगर 2021 के आंकड़ो पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि मनरेगा से यूपी में करीब 2.01 करोड़ परिवार जुड़े थे. मनरेगा के मजदूरों को 100 दिन का गारंटी वाला काम सरकार की ओर से दिया जाता है. इसमें प्रति मजदूर 201 रुपये प्रति दिन के हिसाब से मजदूरी दी जाती है. यूपी के कई गांव ऐसे हैं जहां मजदूरों को मनरेगा का काम पहले ही नहीं मिल पा रहा था. उन्हें जॉब कार्ड बनवाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी. भ्रष्टाचार भी इसकी बड़ी वजह था. इस बार 25 फीसदी तक बजट घट गया है. ऐसे में कई मजदूरों को इस बार काम नहीं मिल सकेगा. साथ ही भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा मिलेगा.
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