लखनऊ : यूपी विधानसभा का शीतकालीन सत्र चार दिन तक चला और सदन की कार्यवाही अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई. ऐसे में सवाल उठता है कि महज चार दिन तक सदन की कार्यवाही सिमट गई जो लोकतंत्र और जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर यह कितना सही है. पिछले काफी समय से सदन की कार्यवाही कम होती जा रही है. विपक्षी पार्टियों ने भी सदन की कार्यवाही सिर्फ चार दिन तक सीमित रखने को लेकर सवाल खड़े किए हैं. राजनीतिक विश्लेषक भी सदन की कार्यवाही होने को सही मानते हैं.
दरअसल सदन की कार्यवाही जितना अधिक चलेगी जनहित से जुड़े मुद्दों पर ज्यादा चर्चा होगी. विधायक और विधान परिषद सदस्य अपने अपने क्षेत्र की समस्याओं व विकास के कार्यों को लेकर सदन में याचिका लगाते हैं और उस पर बहस और कार्यवाही होती है. पिछले दो दशक से सदन की कार्यवाही लगातार कम होती जा रही है. सदन की कार्यवाही के दौरान हंगामा और नकारात्मक भूमिका के कारण सदन कम चल रहे हैं. अब विपक्ष के साथ-साथ सरकार की भी कोशिश रहती है कि सदन की कार्यवाही ज्यादा दिन न चलने पाए. ऐसे में सदन की संख्या लगातार कम होती चली जा रही है. लोकतंत्र और संवैधानिक परंपराओं के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं माना जाता है. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार सदन की कार्यवाही पूरे साल में 90 दिन के लिए संचालित होनी चाहिए, लेकिन अब पूरे साल में 20 से 25 दिन में सदन की कार्यवाही सिमट कर रह जाती है.