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Published : Oct 28, 2019, 10:54 PM IST

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राउत नाचा: छत्तीसगढ़ का वह नृत्य, जो यदुवंशियों के बिन हो नहीं सकता

राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक चलता है. इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी, ठुमरी और बीच-बीच में दोहे और पारंपरिक गड़वा बाजा की विशेष धूम रहती है.

राउत नाचा की धूम.

बेमेतरा: कला, संस्कृति और आदिवासियों के गढ़ छत्तीसगढ़ के कोने-कोने में परंपराओं ने अपनी डेहरी सजा रखी है. दीपावाली के दूसरे दिन से देवउठनी एकादशी तक राउत नाचा किया जाता है. राउत नाचा छत्तीसगढ़ में परंपरागत रूप से दूध दही का व्यवसाय करने वाले यदुवंशियों का एक ऐसा नृत्य है, जिसकी धूम अंचल में पखवाड़े भर बनी रहती है.

बता दें कि राउत नाचा छत्तीसगढ़ में दिवाली के दूसरे दिन यानी गोवर्धन पूजा के दिन से शुरू होता है, जो देवउठनी एकादशी तक चलता है. इस नृत्य में यदुवंशी घर-घर जाकर पारंपरिक नृत्य राउत नाचा करते हैं, जिसके बाद उन्हें शगुन के रूप में वस्त्र और अन्न भेट किया जाता है. वहीं देवउठनी एकादशी में गाय को सोहाई पहनाने की भी परंपरा है.

राउत नाचा की धूम.
  • इस नृत्य में यदुवंशियों का विशेष रंगीन पोशाख लाठी, ठुमरी और बीच-बीच में दोहे और पारंपरिक गड़वा बाजा की विशेष धूम रहती है.
  • गांव में यह त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. दीपावली पर्व के 15 दिनों तक गोवर्धन पूजा से लेकर एकादशी तक यादव नर्तक सामूहिक नृत्य करते है.
  • दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है, जो गौठान में विशेष रूप से मनाई जाती है. इस दिन गो माता की पूजा की जाती है और पकवान खिलाये जाते हैं.

परी, गढ़वा बाजा होते हैं आकर्षण केंद्र
राउत नाचा में पुरुष महिला पोशाक में होते हैं जो परी कहलाते हैं, गढ़वा बाजा छतीसगढ़ का पारंपरिक वाद्य यंत्र है जिसे गुदुम बाजा भी कहते हैं.

विलुप्ति की कगार पर परंपरा
आज आधुनिकता के समय में लोग परंपरागत त्योहारों को भूलते जा रहे हैं, जिसके कारण ही आज राउत नाचा विलुप्ति के कगार पर खड़ा है.

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