लखनऊ: बुराई तभी पांव पसारती है जब अच्छाई मौन हो जाती है. लोक गीतों के नाम पर विषमताएं ऐसी हो गई हैं कि उन्हें परिवार के साथ बैठकर देखा व सुना नहीं जा सकता. मनोरंजन के नाम पर पैसा कमाने के लिए सांस्कृतिक मूल्यों व परम्पराओं को क्षति पहुंचाए जाने का कार्य चल रहा है. आवश्यक है कि हम मिल-जुलकर लोकगीतों के क्षरण को रोकने के लिए प्रयास करें. ये बातें मुम्बई से आए लोक संस्कृति कर्मी रत्नाकर कुमार ने कहीं.
लोकगीतों के क्षरण को रोकने के लिए मिल-जुलकर करें प्रयास: रत्नाकर कुमार
राजधानी लखनऊ में प्रेस क्लब में अवध भारती संस्थान व लोकरंग फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में 'भोजपुरी एवं अवधी लोकगीतों का संरक्षण' विषय पर आयोजित परिचर्चा में रत्नाकर कुमार ने कहा कि हमें मिल-जुलकर लोकगीतों के क्षरण को रोकने के लिए प्रयास करना होगा.
प्रेस क्लब में अवध भारती संस्थान व लोकरंग फाउण्डेशन के संयुक्त तत्वावधान में 'भोजपुरी एवं अवधी लोकगीतों का संरक्षण' विषय पर आयोजित परिचर्चा में रत्नाकर कुमार मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. इस अवसर पर अवधी साहित्य के पुरोधा कवि पं. वंशीधर शुक्ल पर आधारित डॉ. सीमा पांडेय की पुस्तक 'पं. वंशीधर शुक्ल: व्यक्ति और रचनाकार' का लोकार्पण किया गया. मुख्य अतिथि को अंगवस्त्र देकर सम्मानित भी किया गया.
इससे पहले विषय प्रवर्तन करते हुए अवध भारती संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. रामबहादुर मिश्र ने कहा कि भोजपुरी व अवधी दोनों सगी बहने हैं. एक में अत्यधिक मिठास है तो दूसरे में समृद्ध साहित्य. उन्होंने संतोष जताया कि इन दोनों की साझा लोक संस्कृति को संरक्षित करने व आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाने के लिए लोग आगे आ रहे हैं.