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महंत नरेंद्र गिरि केस: IG केपी सिंह ने प्रयागराज में गुजारा कैरियर का दो तिहाई वक्त, अब सवालों के घेरे में

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की मौत (Narendra Giri Death Case) की गुत्थी उलझती ही जा रही है, लेकिन इस पूरे मामले में एक ऐसा किरदार भी है, जिनका जिक्र महंत नरेंद्र गिरि ने अपने सुसाइड नोट में किया है, तो वहीं उनका जिक्र आरोपी महंत आनंद गिरि ने भी किया है. आखिर कौन है यह किरदार और क्या है? उनका प्रयागराज कनेक्शन, जो इस पूरी कड़ी में अहम होता जा रहा है.

आईजी प्रयागराज केपी सिंह
आईजी प्रयागराज केपी सिंह

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Published : Sep 28, 2021, 12:30 PM IST

Updated : Sep 28, 2021, 6:42 PM IST

लखनऊ:महंत नरेंद्र गिरि की मौत के मामले (Narendra Giri Death Case) में आईजी प्रयागराज केपी सिंह (Prayagraj IG KP Singh) एक ऐसा किरदार हैं, जिन पर खुद महंत नरेंद्र गिरि और बाघंबरी मठ के तमाम कर्ताधर्ता व शिष्य भरोसा करते थे. वहीं आरोपी आनंद गिरि ने आईजी प्रयागराज केपी सिंह का नाम लेकर फंसाने की साजिश रचने का आरोप लगाया था. अब सवाल उठता है कि आखिर दोनों ही पक्षों की जुबान पर आईजी प्रयागराज केपी सिंह का ही नाम क्यों? एसएसपी या एडीजी जोन का नाम क्यों नहीं लिया गया? दरअसल, आईजी केपी सिंह का प्रयागराज से गहरा नाता रहा है. अपनी नौकरी के कुल 31 सालों में 18 साल 6 महीने 14 दिन केपी सिंह ने प्रयागराज में ही गुजारे हैं. प्रयागराज में वह सीओ से लेकर आईजी के पद तक तैनात रहे. आरोपी आनंद गिरि के आरोप लगाने के बाद केपी सिंह सवालों के घेरे में आ गए हैं.

पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, 1987 में पीपीएस से अपनी नौकरी की शुरुआत करने वाले केपी सिंह की प्रयागराज की तैनाती पर गौर करें, तो 16 अगस्त 1991 से 20 जनवरी 1994 यानी 2 साल 5 महीने और 4 दिन इलाहाबाद में सीओ के पद पर रहे. फिर 8 मई 1995 से 28 मई 1997, यानी 2 साल 20 दिन इलाहाबाद पीएचक्यू में सीओ रहे. प्रमोशन पाकर एडिशनल एसपी बने तो 16 जुलाई 2004 से 31 जनवरी 2006, 1 साल 5 महीना और 15 दिन तक इलाहाबाद में एडिशनल एसपी यमुनापार बने रहे. फिर 31 जनवरी 2006 से 4 फरवरी 2009, पूरे 3 साल 4 दिन एडिशनल एसपी पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद रहे.

यह सिलसिला यही थमा नहीं. इसके बाद वह पांच माह यूपी एसटीएफ में एडिशनल एसपी रहे और फिर वापस इलाहाबाद आ गए. 25 जुलाई 2009 से 16 अप्रैल 2011 तक यानी पूरे 1 साल 8 महीने 21 दिन केपी सिंह इलाहाबाद के इंटेलिजेंस यूनिट में एडिशनल एसपी रहे. साल 2012 में कुंभ हुआ तो केपी सिंह को 9 महीने 23 जून 2012 से 25 मार्च 2013 के लिए एसपी कुंभ बनाया गया. 25 मार्च 2013 को कुंभ खत्म हुआ, तो अगले ही दिन उन्हें वापस पुलिस मुख्यालय इलाहाबाद में एसपी कार्मिक के पद पर तैनात किया गया. 25 मार्च 2013 से 21 सितंबर 2015 तक यानी 2 साल 5 महीने 27 दिन तक वह एसपी इलाहाबाद पीएचयू रहे.


वह 10 फरवरी 2016 से 28 अप्रैल 2017, 1 साल 2 महीने 18 दिन एसपी जीआरपी इलाहाबाद बने. एसपी जीआरपी के पद से हटे तो साढे़ चार महीने के लिए वह प्रयागराज से सटे जिले फतेहपुर में एसपी रहे और फिर वापस 26 सितंबर 2017 इलाहाबाद पीएसी में कमांडेंट बनाए गए, यहां 1 साल 3 महीने 23 दिन यानी 18 जनवरी 2019 तक इलाहाबाद पीएसी कमांडेंट बने रहे. साल 2018 का कुंभ आया, तो केपी सिंह को 19 जनवरी 2018 से 01 जुलाई 2019 तक, 1 साल 5 महीने 11 दिन के लिए एसपी कुंभ मेला बनाया गया. केपी सिंह डीआईजी बने तो 2 जुलाई 2019 को उन्हें डीआईजी रेंज प्रयागराज बना दिया गया. वह डीआईजी से 1 जनवरी 2020 को आईजी हुए, तो आईजी रेंज प्रयागराज बना दिए गए. वह प्रयागराज रेंज में 2 साल 3 महीना और प्रयागराज में रहते हुए 4 साल 11 महीने का वक्त बीत चुके हैं.


केपी सिंह ने 2018-19 का कुंभ बतौर एसएसपी व डीआईजी के तौर पर संपन्न कराया. इससे पहले बतौर एडिशनल एसपी 2012-13 का कुंभ करवा चुके थे. दो कुंभ संपन्न कराने का अनुभव और प्रयागराज में ही नौकरी के 18 साल 6 महीना का लंबा वक्त, यही वजह थी केपी सिंह महंत नरेंद्र गिरि के बेहद करीबी थे, लेकिन आनंद गिरि से भी उनका बराबर का परिचय था.

महंत नरेंद्र गिरि के करीबी होने का ही नतीजा था कि महंत नरेंद्र गिरि की जब मौत हुई, तो मठ के लोगों ने स्थानीय पुलिस के साथ आईजी केपी सिंह को भी सीधे फोन किया था. वहीं, ब्लैकमेलिंग और आत्महत्या के लिए जिम्मेदार माने गए आनंद गिरि ने घटना की शाम हरिद्वार से जिन लोगों पर महंत नरेंद्र गिरि की साजिश रचकर हत्या करवाने और उनको फंसाने का आरोप लगाया, उसमें आईजी रेंज प्रयागराज केपी सिंह का भी नाम शामिल था. फिलहाल इस मामले में सीबीआई ने जांच शुरू कर दी है और सीबीआई ने हर उस शख्स से पूछताछ शुरू कर दी है, जो महंत नरेंद्र गिरि का करीबी था.

पूर्व डीजी एके जैन का कहना है कि एक ही जिले में लंबे समय तैनाती ठीक नहीं है. भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है. सिविल पुलिस ने 3 वर्ष की तैनाती का प्रावधान है. चुनाव से पूर्व लंबे साल से तैनात अफसरों को हटाया जाता है. इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया ऐसे अफसरों को हटाने के निर्देश देता है. मगर, इससे बचने के लिए अफसर साइड पोस्टिंग करा लेते हैं या फिर अन्य विभाग में ट्रांसफर करा लेते हैं.

Last Updated : Sep 28, 2021, 6:42 PM IST

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