लखनऊ:आपका बच्चा भी अगर मोबाइल गेम खेलता है तो सतर्क हो जायें. यह आदत न केवल बच्चे के लिए बल्कि आपके लिए भी भारी पड़ सकती है. हाल ही में किए गए अध्ययन में सामने आया है कि मोबाइल पर गेम खेलने की आदत बच्चों को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना रही है. ऐसे बच्चे तनाव की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. वह सब कुछ छोड़ दिन-रात सिर्फ गेम के बारे में सोचते हैं. यह दावा है लखनऊ के मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्तर पर किए गए एक शोध में भी इसकी पुष्टि की है.
बता दें, कि लखनऊ में बच्चे की ऑनलाइन गेम किल्लत के चलते हुए हत्याकांड से एक हंसता खेलता परिवार वीरान हो गया. 16 साल के एक बेटे ने अपनी मां को ही मौत के घाट उतार दिया. गुस्सा सिर्फ इस बात का था कि मां उसकी ऑनलाइन गेमिंग की आदत से परेशान होकर उसे रोकती टोकती थी.
मां-बाप के कारण लगती है लत
कई अध्ययन में सामने आया है कि बच्चों में मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग की लत अभिभावकों की लापरवाही के कारण होती है. मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सृष्टि श्रीवास्तव ने बताया कि कई बार छोटे बच्चों को शांत करने के लिए मम्मी-पापा खुद मोबाइल पकड़ा देते हैं. उनकी यही छोटी सी भूल आगे चलकर बच्चों में लत के रूप में नजर आती है. उनकी सलाह है कि बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी को ज्यादा बढ़ावा दें. घर में समय बिताने के बजाय बच्चे को पार्क लेकर जायें. जो भी खेल को पसंद करता है उसे समय दें. टीवी और मोबाइल के इस्तेमाल के लिए एक सीमित समय हो. इससे मनोरंजन भी होगा और बच्चे में लत भी नहीं पड़ेगी.
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बच्चे की दिनचर्या को करें व्यवस्थित
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती है कि बच्चों की दिनचर्या व्यवस्थित होना बेहद जरूरी है. उनके सुबह उठने के समय से लेकर रात के सोने तक का सब कुछ पूर्व निर्धारित होना चाहिए. सुबह कितने बजे उठना है? उठने के बाद कब योग और व्यायाम करना है? कितने बजे नाश्ता करना है? कितने बजे पढ़ाई करनी है और कितने बजे मोबाइल देखना है? यह सब अगर निर्धारित होगा तो मस्तिष्क शांत रहता है. नकारात्मक विचार नहीं आते हैं. बच्चों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें समय दें. सुबह से शाम तक उनकी गतिविधियों के बारे में बात करें. उनकी समस्याओं कमजोरियों को समझ कर दोस्त की तरह उसका समाधान निकालने में मदद करें.
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