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PUBG मोबाइल गेम बच्चों को बना रहे चिड़चिड़ा और गुस्सैल, जानिए कैसे छुड़ाएं ये लत - मानसिक स्वास्थ्य विभाग केजीएमयूू

आपका बच्चा भी अगर मोबाइल गेम खेलता है तो सतर्क हो जायें. यह आदत न केवल बच्चे के लिए बल्कि आपके लिए भी भारी पड़ सकती है. मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने बच्चों से गेमिंग की लत झुड़ाने की अहम जानकारी दी है. जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर..

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PUBG मोबाइल गेम

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Published : Jun 11, 2022, 7:17 PM IST

लखनऊ:आपका बच्चा भी अगर मोबाइल गेम खेलता है तो सतर्क हो जायें. यह आदत न केवल बच्चे के लिए बल्कि आपके लिए भी भारी पड़ सकती है. हाल ही में किए गए अध्ययन में सामने आया है कि मोबाइल पर गेम खेलने की आदत बच्चों को चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना रही है. ऐसे बच्चे तनाव की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. वह सब कुछ छोड़ दिन-रात सिर्फ गेम के बारे में सोचते हैं. यह दावा है लखनऊ के मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के स्तर पर किए गए एक शोध में भी इसकी पुष्टि की है.

बता दें, कि लखनऊ में बच्चे की ऑनलाइन गेम किल्लत के चलते हुए हत्याकांड से एक हंसता खेलता परिवार वीरान हो गया. 16 साल के एक बेटे ने अपनी मां को ही मौत के घाट उतार दिया. गुस्सा सिर्फ इस बात का था कि मां उसकी ऑनलाइन गेमिंग की आदत से परेशान होकर उसे रोकती टोकती थी.

मां-बाप के कारण लगती है लत

कई अध्ययन में सामने आया है कि बच्चों में मोबाइल और ऑनलाइन गेमिंग की लत अभिभावकों की लापरवाही के कारण होती है. मनोवैज्ञानिक डॉक्टर सृष्टि श्रीवास्तव ने बताया कि कई बार छोटे बच्चों को शांत करने के लिए मम्मी-पापा खुद मोबाइल पकड़ा देते हैं. उनकी यही छोटी सी भूल आगे चलकर बच्चों में लत के रूप में नजर आती है. उनकी सलाह है कि बच्चों में आउटडोर एक्टिविटी को ज्यादा बढ़ावा दें. घर में समय बिताने के बजाय बच्चे को पार्क लेकर जायें. जो भी खेल को पसंद करता है उसे समय दें. टीवी और मोबाइल के इस्तेमाल के लिए एक सीमित समय हो. इससे मनोरंजन भी होगा और बच्चे में लत भी नहीं पड़ेगी.

पढ़ेंः लखनऊ PUBG हत्याकांड: फौजी, बेटे व मां की CDR से खुलेगा राज, पिता का शक बना जांच का विषय

बच्चे की दिनचर्या को करें व्यवस्थित

मनोवैज्ञानिक डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती है कि बच्चों की दिनचर्या व्यवस्थित होना बेहद जरूरी है. उनके सुबह उठने के समय से लेकर रात के सोने तक का सब कुछ पूर्व निर्धारित होना चाहिए. सुबह कितने बजे उठना है? उठने के बाद कब योग और व्यायाम करना है? कितने बजे नाश्ता करना है? कितने बजे पढ़ाई करनी है और कितने बजे मोबाइल देखना है? यह सब अगर निर्धारित होगा तो मस्तिष्क शांत रहता है. नकारात्मक विचार नहीं आते हैं. बच्चों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने के लिए उन्हें समय दें. सुबह से शाम तक उनकी गतिविधियों के बारे में बात करें. उनकी समस्याओं कमजोरियों को समझ कर दोस्त की तरह उसका समाधान निकालने में मदद करें.

केजीएमयू के सर्वे में यह आया सामने

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर पवन कुमार गुप्ता ने बीते दिनों 46 बच्चों पर एक शोध किया. शोध में मोबाइल गेम खेलने वाले 95.65 फीसदी बच्चे तनाव की चपेट में मिले. खास बात यह है कि 80 फीसदी बच्चे गेम के बारे में दिन-रात सोचते थे. पढ़ाई से ज्यादा मोबाइल गेम को लेकर चिंतित रहते हैं. डॉक्टर पवन बताते हैं कि जो बच्चे पहले क्रिकेट लूडो शतरंज पतंग उड़ाने या पार्क में खेलने के दीवाने थे उनमें से 96.52% ने मोबाइल गेम के आगे सभी पुराने शौक छोड़ दिए. उन्होंने बताया कि ऐसे बच्चों को मोबाइल की स्क्रीन भाने लगती है. आगे मोबाइल न मिलने की स्थिति में वे बेचैन हो जाते हैं उनमें गुस्सा पनपने लगता है.

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मां से भी दूर हो रहे मासूम

मोबाइल गेम की ये लत बच्चों को उनकी मां से भी दूर कर रही है. डॉक्टर पवन की मानें तो कई बार मां अपने बच्चों को बहलाने या खाना खिलाते समय मोबाइल थमा देती है. उनकी यही आदत अब उनके रिश्ते के लिए भी नुकसानदायक साबित होने वाली है. देखने को मिल रहा है कि ऐसे बच्चों में मां के प्रति भावनात्मक लगाव नहीं पनपता. छोटे बच्चों में यह समस्या और भी ज्यादा हो जाती है. यह बच्चे नजरों से ही मां को समझाते हैं जो बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास को प्रभावित करता है.

यह हो सकते हैं कुछ समाधान

सिंगल फैमिली में रहने वाले बच्चों में मोबाइल और टीवी की लत ज्यादा होती है. कई बार दोनों पेरेंट्स वर्किंग होने की स्थिति में बच्चे टीवी और मोबाइल के लती हो जाते हैं.

  • बच्चों के सोसाइटी में ग्रुप बना सकते हैं. उन्हें पड़ोसियों रिश्तेदारों से जुड़ने में मदद करें.
  • अपने बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ खेलने के लिए भेजें. इससे अकेलापन महसूस नहीं करेगा.
  • पढ़ाई और मोबाइल के इस्तेमाल का एक रूटीन विकसित किया जाए. टाइम टेबल के हिसाब से ही आधा घंटा 45 मिनट मोबाइल देखने को दें. इस तरह धीरे-धीरे लत से बच्चे दूर हो सकेंगे.

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