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लखनऊ: बच्चों से जुड़े मनोविकार के लक्षणों का काउंसलिंग से हो सकता है इलाज - मनोचिकित्सक से बातचीत

आजकल के बदलते परिवेश में बच्चों की मनोदशा पर प्रभाव पड़ रहा है. कई बच्चों में भी डिप्रेशन और कई मानसिक परेशानियां सामने आ रही हैं. इस बारे में कई बार तो अभिभावक जागरूक रहते हैं, लेकिन कई बार की गई लापरवाही बड़ी मुसीबत का कारण बन जाती है. बच्चों की मनोदशा के बारे में ईटीवी भारत ने कुछ मनोचिकित्सक से बात की.

राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान
राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान

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Published : Sep 3, 2020, 2:49 PM IST

लखनऊ: 29 अगस्त को राजधानी के बेहद पॉश इलाके में डबल मर्डर से सनसनी मच गई थी. पुलिस के खुलासे में यह बात सामने आई थी कि घर में एक नाबालिग बच्ची ने ही अपनी मां और भाई की हत्या की थी. इसके बाद कई ऐसे सवाल भी उठे जो बच्चों की मनोदशा से जुड़े हुए थे. इस पर ईटीवी भारत ने कुछ मनोचिकित्सक से बात करके बच्चों से जुड़े मनोविकार और मेंटल डिसऑर्डर्स के बारे में जाने की कोशिश की.

मनोचिकित्सक से बातचीत

बच्चों में कई मानसिक परेशानियां आ रही सामने
डॉक्टर राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में बतौर मनोचिकित्सक डॉक्टर देवाशीष शुक्ला कहते हैं कि बच्चों के जहन में तमाम ऐसी बातें चलती रहती हैं, जिनका पता सिर्फ अभिभावक लगा सकते हैं. वह ही अपने बच्चे के सबसे ज्यादा नजदीक होते हैं, लेकिन यदि समय पर उनकी गतिविधियों पर ध्यान न दिया जाए तो इस तरह की घटनाएं सामने आ सकती हैं. वह कहते हैं कि आजकल के परिवेश में बच्चों में भी डिप्रेशन और कई मानसिक परेशानियां सामने आ रही हैं. जिसके बारे में अभिभावक जागरूक हो रहे हैं और वह मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं. डॉक्टर ने बताया कि जो घटना पिछले शनिवार को सामने आई है, इसके बारे में जितनी जानकारी उन्हें मिल रही है उस लिहाज से वह कहते हैं कि बच्चे में जरूर कोई न कोई साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसके बारे में समय से जानने की जरूरत है.

जांच के आधार पर ही लग सकता है बीमारी का पता
उस बच्चे के लक्षणों के आधार पर डॉ. देवाशीष कहते हैं कि हेलूसिनेशन जैसे साइकोलॉजिकल डिसऑर्डर्स में व्यक्ति अपने ऊपर का कमांड किसी ऐसे व्यक्ति या वस्तु को दे देता है जो आमतौर पर अस्तित्व में ही नहीं रहती. इस बारे में किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के मानसिक चिकित्सा रोग विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पीके दलाल भी बताते हैं कि हेलुसिनेशन मानसिक बीमारी का एक लक्षण होता है. इसमें व्यक्ति को लगता है कि उसे किसी की आवाज सुनाई पड़ रही है या उसे कोई दिखाई पड़ रहा है, जो उससे बात कर रहा है, लेकिन असलियत में ऐसा कुछ नहीं होता है. उन्होंने बताया कि यह बस एक लक्षण है इसकी काउंसलिंग और मनोचिकित्सकीय जांच के आधार पर ही बताया जा सकता है कि व्यक्ति कौन सी मानसिक बीमारी से ग्रसित है.

बच्चों के व्यवहार परिवर्तन पर नजर रखना जरूरी
डॉ. देवाशीष कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति हेलुसिनेटेड रहता है, यानी अपने ऊपर का कमांड किसी और व्यक्ति को दे देता है तो उसे लगता है कि कोई भी काम वह नहीं बल्कि कोई और कर रहा है. शायद यही वजह रही है कि उस बच्ची ने मां और भाई को मार दिय. यहां तक कि उसने शीशे में खुद को भी गोली मारी, लेकिन उसे लगा कि यह काम उसने नहीं बल्कि किसी और ने किया है या करने को कहा है. ऐसे मामलों पर डॉ देवाशीष का कहना है कि समय पर काउंसलिंग होना बच्चों के लिए बेहद जरूरी है. मानसिक बीमारी उम्र के किसी भी पड़ाव पर हो सकती है और इसकी शुरुआत बहुत छोटी सी घटना से भी हो सकती है. इसलिए व्यवहार परिवर्तन पर नजर बनाए रखना ही सबसे बड़ी सावधानी रहती है.

समय पर काउंसलिंग की जरूरत
मानसिक बीमारी होने के बावजूद किसी भी व्यक्ति के कई विषयों में पारंगत होने के सवाल पर डॉ. देवाशीष ने बताया कि यह मुमकिन है. वह कहते हैं कि यह बच्ची भी 5 तरह के साज बजाती थी, कथक नृत्य करती थी, शूटिंग में चैंपियन थी. इस तरह के कई कृत्य वह उम्र के हिसाब से कर रही थी और यह उसके जीवन का हिस्सा हैं, इसलिए उसमें वह पारंगत हो सकती है. वह कहते हैं कि उम्र के हिसाब से व्यक्ति का क्रियाकलाप जरूर सामान्य हो सकता है. लेकिन उसके व्यवहार में परिवर्तन या फिर कोई ऐसा कृत्य जो उसने पहले न किया हो या बार-बार कर रहा हो, उसे नजरअंदाज करना किसी बड़ी परेशानी को न्योता दे सकता है. डॉ. देवाशीष कहते हैं कि एक बच्चे के व्यवहार में जरा सा भी परिवर्तन होने पर उसे हल्के में नहीं लेना चाहिए. बहुत जरूरी है कि बढ़ते बच्चों के क्रियाकलापों पर नजर बनाए रखा जाए और व्यवहार में यदि असामान्य परिवर्तन देखें तो तुरंत उनकी काउंसलिंग की जाए और जरूरत पड़ने पर डॉक्टरी परामर्श भी लिया जाए.

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