लखनऊ :मनुष्य ने लगातार विकास किया है और इसमें तकनीकी ज्ञान की बड़ी भूमिका रही है. जिसने आज हमें इस लायक बना दिया है कि हम विभिन्न प्रजातियों के जीन में भी परिवर्तन कर सकते हैं, जिनके चलते हमारी कृषि उपज पर भी धनात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन इसके बाद भी भविष्य में आने वाली चुनौतियों जैसे बढ़ती वैश्विक जनसंख्या एवं जलवायु परिवर्तन को देखते हुए हमें खाद्य सुरक्षा पर भी काम करना होगा. इस दिशा में एक और चुनौती भी है कि जहां कम आमदनी के कारण कृषि में रुझान कम होने से एक ओर किसानों की संख्या घटती जा रही है, वहीं मजदूरों की संख्या बढ़ रही है. यह बातें एनबीआरआई में आयोजित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस के मौके पर मुख्य अतिथि प्रो. अश्विनी पारीक ने कहीं. उन्होंने वर्ष 2047 की भावी भारतीय कृषि व्यवस्था पर आधारित अपने व्याख्यान में बताया.
सीएसआईआर-एनबीआरआई में बुधवार को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी दिवस पर कार्यक्रम आयोजित हुआ. इस दौरान राष्ट्रीय कृषि-खाद्य जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (एनएबीआई), मोहाली के कार्यकारी निदेशक एवं नवोन्मेषी एवं अनुप्रयुक्त जैव-प्रसंस्करण केंद्र (सीआईएबी), मोहाली के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रो. अश्विनी पारीक मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. प्रो. पारीक ने कहा कि 'विश्व की लगभग नौ बिलियन जनसंख्या की खाद्य जरुरतें पूरी करने के लिए हमें कृषि व्यवस्था को भी आधुनिक तकनीकियों के द्वारा बदलना होगा, जिनमें क्रास ब्रीडिंग, म्यूटाजेनेसिस, पॉलीप्लोयडी, ट्रांसजेनिक्स, जीनोम एडिटिंग, वर्टिकल फार्मिंग आदि मुख्य हैं. प्रो. पारीक ने हाल ही में चर्चा में आई कुछ तकनीकों जैसे गोल्डन राईस, बीटी कॉटन, पादप आधारित वैक्सीनों, ग्लूटेन फ्री राईस आदि की भी चर्चा की.'