लखनऊ : आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में श्रीराम मंदिर का लोकार्पण और प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम तय हुआ है. राम मंदिर ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आमंत्रित किया गया है. प्रधानमंत्री मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को आमंत्रित किए जाने के साथ ही इस विषय में राजनीति भी तेज हो गई है. तमाम विपक्षी दल इसे लेकर भाजपा और केंद्र सरकार को घेरने में जुट गए हैं. विपक्ष का कहना है कि सरकार मंदिर के लोकार्पण कार्यक्रम को इवेंट का रूप देकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है, वहीं भाजपा और सरकार के अपने तर्क हैं. इसमें कोई दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी, संघ और अन्य हिंदू संगठन इस आयोजन को राष्ट्रीय स्तर पर जन-जन तक पहुंचाने की तैयारी कर रहे हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि यदि भाजपा इस कार्यक्रम को जन-जन तक ले जाना चाहती है, तो इसमें न तो कोई नई बात है और न ही इससे किसी को हैरान होना चाहिए. यह मुद्दा कई दशकों से भाजपा के एजेंडे में रहा है. अब जबकि मंदिर का लोकार्पण होने जा रहा है, तब यह उम्मीद करना कि पार्टी या सरकार खुद को इससे अलग रखे, तर्कहीन है. हर दल की अपनी नीतियां और उनके नफा-नुकसान होते हैं. मंदिर निर्माण को लेकर भाजपा की स्थापित नीति रही है. ऐसे में भाजपा और उसके सहयोगी संगठन इसका भरपूर लाभ उठाने का प्रयास करेंगे, क्योंकि राजनीति में कोई भी कार्य यूं ही नहीं होता. यदि अल्पसंख्यकों की राजनीति करने वाले दल भाजपा और सरकार का विरोध करते हैं, तो इसका उन्हें नुकसान ही होगा. विरोध का कोई लाभ मिल पाना असंभव है.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं 'पांच सौ वर्ष का एक सपना साकार होने जा रहा है. अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण पूर्णता की ओर अग्रसर है. 22 जनवरी को इस भव्य मंदिर का लोकार्पण होना है. यह एक ऐतिहासिक अवसर होगा. ऐसा सपना था, लोगों ने जिसकी कल्पना तक छोड़ दी थी. वर्तमान पीढ़ी को यह सौभाग्य मिलने जा रहा है. श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ ट्रस्ट के सदस्यों ने प्रधानमंत्री को 22 जनवरी के लिए आमंत्रण दिया है. निश्चित रूप से इस काम की सराहना होनी चाहिए. वह देश के प्रधानमंत्री हैं, केवल इस नाते ही नहीं, बल्कि इस समस्या के समाधान में उनके योगदान को देखते हुए यह उचित कदम है. विपक्ष के लोगों ने इसका विरोध भी किया है. यह वैसा ही है, जैसे संसद भवन के निर्माण का कार्य यूपीए सरकार में होना चाहिए था, लेकिन वह नहीं कर सके, हालांकि लोकार्पण के समय सारे विपक्षी दल संसद के नए भवन के निर्माण का विरोध कर रहे थे. आज फिर वही स्थिति दोहराई जा रही है.'