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Published : Aug 3, 2020, 9:34 AM IST

Updated : Aug 3, 2020, 10:36 AM IST

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लखनऊ निवासी प्रो. अशोक साहनी को 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड'

राजधानी लखनऊ निवासी प्रो. अशोक साहनी को केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने प्रतिष्ठित लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड 2020 के लिए चुना है. मंत्रालय ने उन्हें अपने शोध पर एक वेबिनार व्याख्यान के लिए भी आमंत्रित किया है.

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प्रो.अशोक साहनी ने गुजरात में डायनासोर की मौजूदगी पर शोध किया था.

लखनऊ: केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लखनऊ निवासी भू वैज्ञानिक प्रोफेसर अशोक साहनी को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड 2020 से सम्मानित करने के लिए चुना है. प्रो. साहनी जंतुओं के जीवाश्म के अध्ययन में निपुण रहे हैं. उनको यह सम्मान जियोलॉजी, पैलियोन्टोलॉजी और बायोस्ट्रैटीग्राफी में किए गए शोध और उत्कृष्ट कार्यों के लिए दिया जा रहा है. कोरोना वायरस के संक्रमण काल की वजह से यह सम्मान उन्हें उनके घर पर ही भेजा जाएगा.

प्रो.अशोक साहनी ने गुजरात में डायनासोर की मौजूदगी पर शोध किया था.
मिनेसोटा विश्वविद्यालय अमेरिका से पीएचडी कर भूवैज्ञानिक प्रोफेसर अशोक साहनी पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ में प्रोफेसर एमेरिटस रह चुके हैं. जंतुओं के जीवाणु पर अध्ययन करने वाले प्रोफेसर अशोक साहनी ने गुजरात में डायनासोर के जीवाश्म और उनकी मौजूदगी पर शोध किया था. उनके द्वारा किए गए इस शोध को दुनिया भर में काफी सराहना मिली थी.

50 से भी अधिक वर्षों तक जीवाश्म पर किया शोध
ईटीवी भारत से से बात करते हुए प्रो.अशोक साहनी ने कहा, "मैंने 50 से भी अधिक वर्षों तक जीवाश्म पर शोध किया है. मेरे घर पर पिता और दादा जी से भी मुझे ऐसा ही माहौल मिला और मैं उसी में ढल गया". अपने जीवन काल में किए गए शोध के बारे में प्रोफेसर साहनी ने बताया कि दुनिया भर में मशहूर हुए डायनासोर पर किए गए शोध में भी मेरे साथ मेरे सहकर्मियों का बड़ा योगदान रहा. हमें इत्तेफाक से डायनासोर के अंडे और घोंसले मिले, जिस पर हमने कई वर्षों तक शोध किया. उस शोध से हमें यह पता चला कि डायनासोर कैसे रीप्रोड्यूस करते थे, किन जगहों पर अपना घोंसला बनाते थे और कैसे पर्यावरण में रहते थे.

अभी हाल में हमने गुजरात की कोल माइंस पर भी स्टडी की है. हमारी इस रिसर्च में हमें कुछ बहुत पुराने प्रजाति के जीव-जंतु मिले हैं. इन सबके साथ हमने पेड़ों से निकलने वाले गोंद पर भी एक रिसर्च किया था. गोंद के एक जीवाश्म के रिसर्च के दौरान हमें उस रेजिन (गोंद) में तकरीबन 5 करोड़ वर्ष पहले के कीड़े मकोड़ों के जीवाश्म भी मिले. इस तरह के जीवन पर आधारित हमारे कई ऐसे शोध रहे हैं, जो वैज्ञानिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रखते हैं.

व्हेल मछलियों पर प्रोफेसर साहनी ने किया शोध
अपनी सबसे प्रिय शोध के बारे में बताते हुए प्रोफेसर साहनी ने कहा कि यूं तो मेरे द्वारा किए गए सभी शोध मुझे प्रिय हैं, लेकिन व्हेल मछलियों पर किया गया शोध मेरा सबसे खास विषय रहा है. व्हेल मछलियों के इवोल्यूशन पर हमने शोध किया था. व्हेल मछली की सबसे पुरानी प्रजाति हमने कश्मीर और कच्छ से खोज निकाली थी और उस शोध से हमें यह भी पता चला था कि पूरी दुनिया में व्हेल प्रजाति की मछली का ओरीजिन भारत-पाकिस्तान से था. इससे पहले कोई व्हेल मछली नहीं थी.

प्रोफेसर साहनी भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के फेलो रह चुके हैं. इसके अलावा कई अन्य वैज्ञानिक संस्थाओं में भी उन्हें फेलोशिप मिली है. राजधानी में मिनेसोटा विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद प्रो. साहनी ने लखनऊ विश्वविद्यालय में भी बतौर लेक्चरर अपनी सेवाएं दी हैं.

प्रोफेसर अशोक साहनी को केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड के साथ ही एक वेबिनार व्याख्यान के लिए भी आमंत्रित किया है. इस व्याख्यान के बारे में प्रोफेसर साहनी ने बताया कि इस वेबिनार में मैं भारत की जैव विविधता के इतिहास के बारे में बात करूंगा. हमारी जैव विविधता, क्लाइमेट और भारत के जियोलॉजिकल भागों से भी जुड़ी हुई हैं. इन तीनों के जुड़ाव और जैव विविधता में आ रही इस वक्त की समस्याओं पर बात करना आज की आवश्यकता है.

Last Updated : Aug 3, 2020, 10:36 AM IST

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