लखनऊ :भारत ने घरेलू कीमतों में वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है. सरकार का कहना है कि केवल निर्यात शिपमेंट की अनुमति होगी जो मूल रूप से सरकार द्वारा किया जाएगा. इसके पीछे की मुख्य वजह यूक्रेन-रूस युद्ध और इसके चलते उपजा खाद्य संकट है. इसे लेकर भारत में किसानों से आढ़तिया ऊंचे दामों पर गेहूं की खरीद कर रहे हैं जिसके चलते काला बाजारी की आशंका भी बढ़ गई है.
दरअसल, यूक्रेन-रूस युद्ध के शुरू होते ही वैश्विक स्तर पर भारत से गेहूं की मांग की जाने लगी. इसी बीच भारत में निजी कंपनियों ने किसानों से एमएसपी से भी ज्यादा दामों पर गेहूं खरीदना शुरू कर दिया. इसके चलते भारत सरकार की खरीद प्रक्रिया प्रभावित होने लगी. वहीं खराब मौसम के चलते इस बार देश में गेहूं का उत्पादन भी कम हुआ है. ऐसे में सरकार ने निजी कंपनियों के विदेश में गेहूं के निर्यात पर रोक लगा दी. वहीं किसानों से गेहूं खरीदकर स्टाक करने वाली कंपनियों पर भी चांप चढ़ाना शुरू कर दिया है.
इसी क्रम में राज्य में भी किसान को गेहूं की कीमतें बिक्री केंद्रों पर सरकारी दरों के मुकाबले खुले बाजार में अधिक मिल रहीं हैं. इसके चलते सरकारी सेंटरों पर गेहूं खरीद नाकाफी रही है. यहां तक कि गांव-गांव सरकारी खरीद केंद्र खोलने की प्रक्रिया के बावजूद राज्य में गेहूं की खरीद बुरी तरह प्रभावित रही है. उधर, उत्पादन भी कम हुआ. ऐसे में संकट को भांपते हुए सरकार ने गेहूं निर्यात पर रोक लगाना जरूरी समझा है. यह कहना है लखनऊ के बीकेटी स्थित चंद्र भान गुप्त कृषि पीजी कॉलेज के विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह का.
डॉ. सत्येंद्र कुमार बताते हैं कि गत वर्षों की अपेक्षा गेहूं कम होने के कई कारण हैं. इसकी क्षेत्रीय परिस्थितियां भी हैं. खाद्य, बीज की कमी के चलते समय पर गेहूं की कई किसानों ने बुआई नहीं कर पाई. दूसरा आवारा पशु बड़े रकबे को चट कर गए हैं. वहीं, जिस समय गेहूं में पुष्प आ रहे थे, उस समय बारिश हो गई. इससे उत्पादन में 30 से 35 फीसद तक की गिरावट आई है.