उत्तर प्रदेश में कैदी भी तमाम सकारात्मक काम कर रहे हैं. लखनऊ सहित प्रदेश की तमाम जेलों में कैदी खेती करके सब्जी, अनाज आदि उगा रहे हैं. यही नहीं, जेलों में लघु उद्योग भी स्थापित हैं.
जेल में उगाते हैं सब्जी
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Published : Jun 16, 2021, 2:24 PM IST
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Updated : Jun 16, 2021, 10:12 PM IST
लखनऊःजेल में बंदकैदी शब्द सुनते ही अक्सर लोगों के मन में खूंखार अपराधी की तस्वीर बनती है लेकिन कहते हैं ना हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. इस मामले का दूसरा पहलू ये है कि वो सिर्फ कैदी ही नहीं, अच्छे किसान, एक अच्छे कामगार और एक अच्छे लघु उद्यमी भी हैं. जेलों में जहां कैदी छोटे-छोटे उद्योग धंधे लगाते हैं, वहीं वे कृषि उत्पादन में भी पीछे नहीं हैं. राज्य के विभिन्न कारागारों में 1051.58 एकड़ भूमि उपलब्ध है. इनमें कृषि के साथ पौधरोपण भी कराया गया है. इस पर कैदियों द्वारा खरीद, रबी और जायद फसलों के साथ हरी सब्जियों की पैदावार की जाती है. यदि कारागार विभाग के आंकड़ों पर ध्यान दें तो कैदियों ने 1051.58 एकड़ भूमि पर 1013.28 लाख रुपये की लागत की 79067.79 क्विंटल धान, आलू, सब्जी, प्याज, लहसुन और चारा का उत्पादन किया है.
जेल में कैदी करते हैं खेती.
गौरतलब हो कि प्रदेश की जेलों में करीब 1,06,964 से अधिक कैदी बंद हैं. इनके लिए उत्तर प्रदेश जेल मेन्युअल के अनुसार, खाने के लिए प्रतिदिन करीब 25 हजार कुंतल सब्जी की आवश्यकता होती है. इसकी पूर्ति कारागारों द्वारा उत्पादित सब्जी से ही की जाती है. जेल मेन्युअल के अनुसार आवश्यकता से अधिक सब्जी उत्पादन होने पर कारागारों में कार्यरत बंदीरक्षकों को निशुल्क सब्जी का वितरण किया जाता है. इसके पश्चात, जो सब्जी बचती है, उसकी बिक्री कर शासकीय आय भी अर्जित की जाती है. वर्ष 2019-2020 के दौरान प्रदेश की कारागारों में आलू लगभग 23754.19 क्विंटल तथा सब्जियों का 52766.44 क्विंटल उत्पादन किया गया. यही नहीं, कारागारों में विभिन्न सब्जियों के उत्पादों की बिक्री से लगभग 668.11 लाख की धनराशि भी अर्जित की गई. कृषि कार्यों के लिए कारागार विभाग ने जेलों को कई सुविधाएं भी दी हैं. विभाग के कृषि कार्यों के लिए प्रदेश के विभिन्न कार्यक्रमों में 32 ट्रैक्टर, 95 नलकूप, 23 पंपिंग सेट उपलब्ध कराए गए हैं. कई कारागारों में नए नलकूप तथा बोरिंग की भी स्वीकृति प्रदान की गई है. यही नहीं कारागारों की आवश्यकता और समाधानों की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए कारागार की भूमि के वैज्ञानिक प्रबंधन, उत्पादन क्षमता व गुणवत्ता में वृद्धि व सुधार हेतु जनपद स्तर पर मुख्य विकास अधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया गया है. विभागों द्वारा उन्नतशील अच्छे किस्म के बीजों की व्यवस्था व आलू उत्पादन हेतु कारागारों को चिह्नित करने के संबंध में कारागार अधीक्षकों एवं परिक्षेत्रीय उपमहानिरीक्षकों को निर्देश दिए गए हैं. उद्यान एवं वन विभाग के सहयोग से कारागारों में आम, कटहल, नींबू, पपीता, केला व करौंदा आदि के पौधों का पौधरोपण किए जाने के भी निर्देश दिए गए हैं. हालांकि, इनके पहले भी तमाम पेड़ लगाए गए हैं. धनिया, मिर्च और हल्दी के उत्पादन के लिए सात कारागारों के कृषि फॉर्मों को मसालों की बुवाई के निर्देश दिए गए हैं. इन मसालों के उत्पादन से होने वाली आय से प्रशासन पर पड़ने वाले वित्तीय भार में कमी आएगी. उपमहानिरीक्षक कारागार मुख्यालय बीपी त्रिपाठी ने बताया कि जेलों में फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए उत्तर प्रदेश कारागारों में मौजूद कृषि योग्य जमीनों में एक इंच भूमि अनुउपयोगी नहीं रहने देंगे. जेलों में मौजूद कृषि योग्य जमीनों में सब्जी उत्पादन के लिए उपयोग किया है. इसके चलते आज हम आत्मनिर्भर हैं. प्रदेश की जेलों में खुद के लिए सब्जी व अनाज पैदा करते हैं. जिन जेलों में कृषि योग्य भूमि नहीं है, उन जेलों में सब्जी व अनाज दूसरे जेलों से भेजा जाता है. जेलों में बंदियों को यदि खरीद कर भोजन देना हो तो यह संभव नहीं है. फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कारागारों के जेल अधीक्षकों की कई आवश्यक निर्देश दिए गए हैं.
फसल का नाम
क्षेत्रफल (एकड़ में)
उत्पादन
मूल्य (लाख में)
धान
8.52
128.31
2.70
आलू
305.26
23754.19
330.0
हरी सब्जी
693.79
51220.44
642.15
अन्य सब्जी
21.60
1546.00
25.96
प्याज
12.51
407.83
7.63
लहसुन
0.37
7.65
0.22
चारा
9.53
2003.37
4.52
कुल
1051.58
79067.79
1013.28
कैदी सिर्फ खेती ही नहीं कर रहे तमाम लघु उद्योग भी चला रहे हैं. उत्तर प्रदेश के आगरा में साबुन, फिनायल, दरी, सिलाई उद्योग, केंद्रीय कारागार नैनी में कंबल, सिलाई, दरी, चादर एवं गमछा उद्योग, कपड़ा डिटर्जेंट, संगम बॉथ सोप उद्योग, फिनायल, फर्नीचर एवं काष्ठ कला उद्योग चलाया जा रहा है. इसी तरह केंद्रीय कारागार बरेली में कंबल, वस्त्र, सिलाई, काष्ठ कला उद्योग, केंद्रीय कारागार और वाराणसी में दरी, वस्त्र, सिलाई, स्टील, काष्ट व लौह उद्योग चल रहा है. इसके अलावा केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में सिलाई, दरी, प्रकीर्ण, रंगाई व छपाई उद्योग, लखनऊ आदर्श कारागार में पावरलूम, हस्त निर्मित, कागज प्रिंटिंग प्रेस एवं सिलाई उद्योग चलाया जा रहा है. जिला कारागार उन्नाव में सिलाई व दरी उद्योग, जिला कारागार सीतापुर में दरी उद्योग एवं जिला कारागार गोरखपुर में सिलाई उद्योग स्थापित हैं. जेलों में स्थापित उद्योगों के संचालन का मुख्य उद्देश कारागार में निरुद्ध बंदियों की आवश्यकता सामग्री के उत्पादन के साथ-साथ बंदियों को व्यवसायिक प्रशिक्षण प्रदान करना है, जिससे वे कारागार से रिहाई के उपरांत स्वावलंबी बनकर अर्जित अनुभवों व कुशलता से जीवन यापन कर सकें.