लखनऊः यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में योगी सरकार के कई मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है. कई ऐसे मंत्री हैं, जिन्हें कांटे की टक्कर मिल रही है. ऐसे में उन सभी मंत्रियों को अपनी सीट बचाना प्रतिष्ठा का सवाल बनता जा रहा है. क्यों कि चुनाव में मंत्री की हार होना विपक्ष के लिए बड़ी जीत के समान है.
करहल विधानसभा सीटः
इस कड़ी में सबसे पहले नंबर पर हम बात कर लेते हैं केंद्रीय मंत्री एसपी सिंह बघेल की. जिन्होंने इस चुनाव के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के खिलाफ चुनावी समर में हैं. ये मैनपुरी की करहल सीट से अखेलश यादव को चुनौती दे रहे हैं. इस सीट पर पूरे देश की निगाहें लगी हुई हैं.
किसकी चमकेगी किस्मत-कौन खायेगा पटखनी ऐसा इसलिए क्यों कि ये वही करहल है, जहां से मुलायम सिंह ने पहले शिक्षा ग्रहण की और फिर शिक्षण का काम भी किया. इसी जगह से उन्होंने अखाड़े में पहलवानी के दांवपेच भी सीखे. करहल की सियासत का अखाड़ा तो वही है, लेकिन पहलवान बदल चुके हैं. जी हां एक ओर मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव हैं, तो दूसरी ओर उन्हीं के शिष्य एसपी सिंह बघेल. इस वजह से भी इस सीट का महत्व बढ़ जाता है. हालांकि इस सीट से केवल एक बार कांग्रेस और एक बार ही बीजेपी को जीत का स्वाद चखने को मिला है. यही वो वजह है कि सभी लोगों को इस सियासी अखाड़े के विजेता पहलवान का बेसब्री से इंतजार है.
इस सीट पर क्या हैं प्रमुख मुद्दें
- फैक्ट्री-उद्योग नहीं होने से क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ी है.
- किसान आलू आधारित उद्योग की मांग कई सालों से कर रहे हैं.
- विधानसभा क्षेत्र के कई गांवों में आज भी सड़कें कच्ची हैं.
- इस क्षेत्र में इलाज की बेहतर सुविधा नहीं है.
- आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे के किनारे बनी मंडी चालू नहीं हो सकी है.
शाहजहांपुर विधानसभा सीटः
इस विधानसभा सीट पर भी सबकी नजरें टिकी हुई हैं. वजह ये है कि यहां से बीजेपी के दिग्गज नेता और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री सुरेश खन्ना अपना ताज बचाने के लिए मैदान में हैं. इनकी अगर राजनीतिक हैसियत की बात करें तो वे इस सीट से अभी तक 8 बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंच चुके हैं.
सुरेश खन्ना इस सीट पर पहली बार 1989 में विधायक बने थे. जिसके बाद उनकी जीत का सफर लगातार जारी है. जिसमें 1989 के बाद 1991,1993,1996,2002,2007,2012 और 2017 में चुनाव जीत चुके हैं. मौजूदा सरकार में वे योगी सरकार में मंत्री भी हैं. अब 2022 के इस विधानसभा चुनाव में 9वीं बार जीत दर्ज करने के लिए वे मैदान में उतरें हैं. इस चुनाव में उनका मुकाबला सपा गठबंधन के तनवीर खान, बीएसपी के सर्वेस पांडे और कांग्रेस की पूनम पांडे से है.
लखनऊ पूर्वी विधानसभा सीटः
अब हम बात कर लेते हैं लखनऊ पूर्व के सीट की. जहां से योगी सरकार के मंत्री आशुतोष टंडन अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इस सीट पर उनके पिछले प्रतिद्वंद्वी फिर से सामने हैं. पिछले 30 साल से इस सीट पर बीजेपी जीतती आ रही है. पिछले चुनाव में सपा के अनुराग भदौरिया को आशुतोष टंडन ने करीब 80 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से हराया था. इस सीट पर दोनों फिर से आमने-सामने हैं. कांग्रेस ने यहां से पंकज तिवारी और बीएसपी ने आशीष कुमार सिन्हा को मैदान में उतारा है. लखनऊ पूर्व की सीट बीजेपी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है, जहां मंत्री आशुतोष टंडन के साथ ही दो केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह और कौशल किशौर की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है. इस जिले की दो लोकसभाओं से ये दोनों ही केंद्रीय मंत्री सांसद हैं.
लखनऊ कैंट विधानसभाः
बीजेपी लखनऊ कैंट विधानसभा को सबसे सुरक्षित सीट मानती आई है. यहां बीजेपी ने अपने कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक को टिकट दिया है. उनके खिलाफ एसपी ने तीन बार के पार्षद राजू गांधी को मैदान में उतारा है. इस सीट को ब्राह्मण बहुल माना जाता है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ब्राह्मण और पहाड़ी वोटों के दम पर जीत हासिल की थी. 2022 के चुनाव में ये सीट योगी के मंत्री बृजेश पाठक के साथ दोनों केंद्रीय मंत्री, जिसमें राजनाथ सिंह और कौशल किशोर की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. इस लिहाज से भी ये सीट काफी अहम मानी जा रही है.
संभल जिले की चंदौसी विधानसभाः
यूपी की योगी सरकार में राज्यमंत्री के तौर पर गुलाब देवी चंदौसी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में हैं. जिसके बाद उन पर सबकी निगाहें टिकी हैं. मंत्री होने की वजह से सीधे तौर पर चुनाव में उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर है. इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने उनके मुकाबले के लिए विमलेश कुमारी को मैदान में उतारा है. वहीं बीएसपी से रणविजय सिंह उम्मीदवार हैं. जबकि कांग्रेस में मिथिलेश कुमारी को टिकट दिया है. जबकि आजाद समाज पार्टी से रविंद्र कुमार प्रत्याशी हैं.
गाजियाबाद विधानसभा सीटः
गाजियाबाद विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में योगी कैबिनेट के मंत्री अतुल गर्ग हैं. बात करें 2017 के विधानसभा चुनाव की तो भारतीय जनता पार्टी के अतुल गर्ग ने बहुजन समाज पार्टी के विधायक रहे सुरेश बंसल को चुनाव में हरा कर विधायक बने थे. 1996 के विधानसभा चुनाव में बालेश्वर त्यागी लगातार तीसरी बार बीजेपी के विधायक चुने गए थे. उन्होंने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार जितेंद्र को हराया था. 2002 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र प्रकाश गोयल विधायक चुने गये थे.
उन्होंने तीन बार के रहे बालेश्वर त्यागी को हराया था. 2007 के विधानसभा चुनाव में सुनील कुमार शर्मा भारतीय जनता पार्टी के विधायक चुने गये. उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के सुरेश बंसल को चुनाव हराया था. वहीं 2012 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी के प्रत्याशी सुरेश बंसल विधायक चुने गये थे. उन्होंने बीजेपी के अतुल गर्ग को चुनाव हराया था.
इस चुनाव में सुरेश बंसल को 64,485 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी के अतुल गर्ग को 52,364 वोट मिला था. 2012 में मिली हार का बदला उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में जीतकर तो ले लिया. लेकिन साल 2022 का विधानसभा चुनाव उनके लिए काफी चुनौती भरा है. क्यों कि वो तत्कालीन समय में योगी सरकार के मंत्री हैं, ऐसे में अगर हार मिलती है तो निश्चित रूप से उनकी प्रतिष्ठा धूमिल होगी. इसलिए यहां मंत्री के साख की लड़ाई है.
शामली का थानाभवन सीटः
थानभवन विधानसभा सीट से ठाकुर, मुस्लिम, सैनी और वैश्य विधायक रहे हैं. यहां से 1962 और 1967 में ठाकुर रामचंद्र, 2012 और 2017 में सुरेश राणा लगातार दो बार विधायक चुने गये. इनके अलावा अन्य कोई भी विधायक दोबारा यहां से चुनाव नहीं जीत सका. वर्तमान में बीजेपी से सुरेश राणा विधायक और प्रदेश के गन्ना मंत्री हैं. यहां के मुख्य मद्दे की बात करें तो कानून व्यवस्था और गन्ना मूल्य भुगतान बड़ा मुद्दा है. गौर करने वाली बात ये भी है कि मंत्री सुरेश राणा को 2012-2013 में अपने विधायक के कार्यकाल में मुजफ्फरनगर दंगे के मामले में जेल जाना पड़ा था. अबकी बार फिर वो 2022 के चुनावी महासमर में उतरे हैं. ऐसे में इस सीट पर उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी हुई है.
मथुरा विधानसभा सीटः
मथुरा विधानसभा सीट की भी सियासी गलियारे में काफी चर्चा है. अयोध्या के बाद अब मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का मंदिर नई राजनीति का केंद्र बना हुआ है. यहां के मौजूदा विधायक योगी सरकार में ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा हैं. उत्तर प्रदेश में की मथुरा विधानसभा सीट पर 2002 से 2017 तक 15 साल कांग्रेस का कब्जा रहा था. लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पंडित श्रीकांत शर्मा ने कांग्रेस से ये सीट बीजेपी के पाले में डाल दी थी.
इस सीट से कांग्रेस के प्रदीप माथुर लगातार 15 साल तक विधायक चुने गए थे. लेकिन 2017 विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के सामने वो टिक नहीं पाए. श्रीकांत शर्मा को 2017 के विधानसभा चुनाव में 1,43,361 वोट मिले थे. जबकि दूसरे नंबर पर इस सीट से तीन बार के विधायक रहे कांग्रेस के प्रदीप माथुर को 42,200 वोट मिले थे. इस बार ये सीट लोगों के केंद्र बिंदु में है, अयोध्या की राजनीति के बाद बीजेपी ने इसको धार्मिक राजनीति का केंद्र बना दिया है. ऐसे में पंडित श्रीकांत शर्मा की प्रतिबद्धता अपनी सीट बचाने के साथ-साथ जिले की बाकी चार सीटों पर भी जीत दिलाने की है. इस जिले की पांचों सीट पर मंत्री श्रीकांत शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
अलीगढ़ जिले की अतरौली विधानसभा सीटः
अतरौली विधानसभा सीट पूर्व सीएम कल्याण सिंह की पारिवारिक सीट मानी जाती है. इस लिहाज से भी ये सीट काफी मायने रखती है. यहां से दो चुनाव जीतने के बाद कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. इस सीट पर कल्याण सिंह 10 बार चुनाव जीते थे. वहीं उनकी बहू भी इस सीट से चुनाव जीत चुकी है. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह ने चुनाव जीता था, जो कि फिलहाल यूपी सरकार के मंत्री भी हैं.
स्वर्गीय कल्याण सिंह का अलीगढ़ की सबसे चर्चित सीट के रूप में मशहूर अतरौली पर इतना प्रभाव है कि कुल 13 बार वो और उनके परिवार का कोई न कोई सदस्य यहां से विधायक बना है. योगी सरकार में मंत्री संदीप सिंह पिछले चुनाव में यहां से 1,15,397 वोट पाकर विजयी हुए थे. संदीप सिंह ने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया था. सपा की ओर से वीरेश यादव को कुल 64,430 वोट मिले थे.
बीजेपी में कल्याण सिंह के कद को इसी से आंका जा सकता है, जब उनका देहांत हुआ,तो उनको श्रद्धांजलि देने खुद पीएम मोदी तक आये थे. इसके साथ ही गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई दिग्गज नेता और मंत्री उनकी अंतिम यात्रा में मौजूद रहे. इसे देखते हुए 2022 के विधानसभा चुनाव में संदीप सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है.
बुलंदशहर की शिकारपुर विधानसभा सीटः
शिकारपुर विधानसभा सीट यूपी की महत्वपूर्ण विधानसभा सीट है. यहां 2017 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. पिछले चुनाव में यहां कुल 50.26 फीसदी वोट पड़े थे. 2017 में बीजेपी से अनिल कुमार शर्मा ने बीएसपी के मुकुल उपाध्याय को 50,245 वोटों के मार्जिन से हराया था. इस समय अनिल शर्मा योगी सरकार में वन एवं पर्यावरण मंत्री हैं. 2022 में ये फिर से मैदान में हैं. इस बार ये सीट उनकी प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है.
मुजफ्फरनगर विधानसभा सीटः
ये विधानसभा सीट उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण सीट है, यहां से 2017 में बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. इस दौरान मुजफ्फरनगर में कुल 45.38 फीसदी वोट पड़े थे. 2017 में भारतीय जनता पार्टी से कपिल देव अग्रवाल ने समाजवादी पार्टी के गौरव स्वरूप बंसल देव अग्रवाल ने सपा के गौरव स्वरूप बंसल को 10,704 वोटों के मार्जिन से हराया था. यहां के संसदीय क्षेत्र से संजीव कुमार बाल्यान सांसद हैं और खुद कपिल देव अग्रवाल योगी सरकार में राज्य मंत्री हैं. इस वजह से उनकी भी प्रतिष्ठा यहां दांव पर लगी है.
मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीटः
मेरठ जिले की इस सुरक्षित सीट पर योगी सरकार में बाढ़ नियंत्रण राज्यमंत्री दिनेश खटीक हस्तिनापुर से चुनाव लड़ रहे हैं. वे सबसे कम शिक्षित उम्मीदवार हैं. उन्होंने केवल नौवीं तक की पढ़ाई की है. लेकिन इस सीट की बात करें तो ये काफी अहम सीट है, 2017 में बीजेपी ने यहां जीत का परचम लहराया था. उस चुनाव में करीब 44.92 फीसदी यहां मतदान हुए थे. दिनेश खटिक ने बीएसपी के योगेश वर्मा को 36,062 वोटों के मार्जिन से हराया था. ये सीट दिनेश खटीक के लिए प्रतिष्ठा का विषय बना हुआ है. मंत्री रहते हुए हाराना उनकी प्रतिष्ठा पर बट्ठा लगा सकता है.
आगरा जिले की कैंट विधानसभा सीटः
इस जिले में कुल 9 विधानसभा सीटें हैं. लेकिन कैंट विधानसभा सबसे अलग है. इस सीट पर सपा आज तक एक बार भी विधानसभा का चुनाव नहीं जीत सकी है. जबकि बसपा, कांग्रेस और भाजपा लंबे समय तक काबिज रही है. 2017 में 15 साल बाद वापसी करते हुए इस सीट को बीजेपी ने दोबारा अपने कब्जे में किया है. इस सीट से मौजूदा विधायक गिरीराज सिंह धर्मेश योगी सरकार में समाजकल्याण राज्य मंत्री हैं. इस लिहाज से ये सीट काफी अहम है. इस सीट को फिर से बीजेपी अपने पाले से जाने नहीं देना चाहेगी.
मथुरा की छाता विधानसभा सीटः
इस विधानसभा सीट पर जाट और ठाकुर बिरादरी का अच्छा खासा प्रभाव देखने को मिलता है. यहां से बीजेपी के चौधरी लक्ष्मी नरायण विधायक हैं, जो योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी हैं. 1993 में इस सीट पर जनता दल के तेजपाल सिंह विधायक बने थे. इसके बाद 1996 में लक्ष्मी नारायण कांग्रेस के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे थे.
वहीं 2002 के विधानसभा चुनाव में रालोद के तेजपाल सिंह एक बार फिर चुनाव जीतकर विधायक बने थे. 2007 में चौधरी लक्ष्मीनारायण बीएसपी के टिकट पर विधायक चुने गये थे. 2012 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के प्रत्याशी तेजपाल सिंह इस सीट से तीसरी बार विधायक चुने गये थे.
उन्होंने बीएसपी के चौधरी लक्ष्मी नारायण को इस चुनाव में हराया था. 2017 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर बीजेपी के चौधरी लक्ष्मी नारायण चुनाव जीतकर विधायक बने. वो बीएसपी सरकार में पूर्व मंत्री भी रह चुके हैं. अलग-अलग पार्टियों से वो चार बार विधायक रह चुके हैं. उन्होंने पूर्व मंत्री ठाकुर तेजपाल के बेटे और निर्दलीय प्रत्याशी अतुल सिंह सिसोदिया को चुनाव में करारी शिकस्त दी थी.
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पांच साल तक इन मंत्रियों ने जनता के लिए कितना काम किया? इसका जवाब तो 10 मार्च को मिल जाएगा. यही चुनाव परिणाम उनके कद को बड़ा और छोटा करेंगे. अब देखना ये है कि किसका कद घटता है और किसका कद घटता है.
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