लखनऊ:इमाम हुसैन की शहादत के गम के महीने मोहर्रम का आगाज होने वाला है. मोहर्रम से पहले अदब की सरजमी लखनऊ में भी मोहर्रम की तैयारियां तेजी से चल रही हैं. पहली मोहर्रम को बड़े इमामबाड़े से निकलकर छोटे इमामबाड़े जाने वाली 22 फिट ऊंची शाही जरी का निर्माण इन दिनों शाही कारीगरों द्वारा किया जा रहा है. कोरोना काल के चलते इस वर्ष शाही कारीगरों को मोम की जरी तैयार करने के लिए महज एक महीने का वक्त मिला, जिसमें शाही कारीगरों का पूरा कुनबा इन दिनों जुटा हुआ है.
मोम की जरी बनाने में जुटे शाही कारीगर. हजरत मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन की शहादत इस्लामिक महीने मोहर्रम में हुई थी. नवाबों की नगरी लखनऊ का मोहर्रम पूरी दुनिया में मशहूर है और लखनऊ को अज़ादारी का मरकज़ भी कहा जाता है. नवाबों द्वारा कायम किया गया हुसैनाबाद ट्रस्ट मोहर्रम से जुड़े कई कामों को कराता है, जिसकी ज़िम्मेदारी लखनऊ प्रशासन के पास है. मोहर्रम की पहली तारीख को निकलने वाले शाही ज़री के जुलूस को बड़े इमामबाड़े से उठाकर छोटे इमामबाड़े लाया जाता है, जिसमें हज़ारों का मजमा शरीक होता है. शाही ज़री को तैयार करने लखनऊ के बाहर से शाही कारीगर हर वर्ष बुलाये जाते हैं, जो इन ज़री को महीनों की मेहनत के बाद तैयार करते हैं.
इस वर्ष कोरोना काल के चलते इन कारीगरों को एक महीने का ही समय मिला है. इन दिनों हुसैनाबाद स्थित ऐतिहासिक छोटे इमामबाड़े में शाही मोम की ज़री को अंतिम रूप दिया जा रहा है. 22 फिट ऊंची शाही मोम की ज़री हुसैनाबाद ट्रस्ट की ओर से 2 लाख 55 हज़ार रुपये में 3 अन्य ज़री के साथ तैयार की जा रही है. मोहर्रम की पहली तारीख से 10 तारीख के बीच राजधानी लखनऊ में कड़ी सुरक्षा के बीच 5 बड़े जुलूस निकाले जाते हैं. पहली मोहर्रम को शाही मोम की ज़री का जुलूस, सात मोहर्रम को मेंहदी का जुलूस, 8 मोहर्रम को अलम फातेह फुरात, नौ मोहर्रम को आशूरा का जुलूस और दस मोहर्रम को आशुरे का जुलूस निकाला जाता है. इन जुलूसों में हज़ारों की संख्या में शिया समुदाय के लोग शामिल होते हैं और इमाम हुसैन को पुरसा देते हैं.