लखनऊ :अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक जोड़-तोड़ शुरू हो गई है. सभी दलों ने अपना नफा-नुकसान देखते हुए गठबंधन की संभावनाएं तलाशने के लिए गुपचुप मुलाकातें और माहौल बनाना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में कभी भाजपा गठबंधन के साथी रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर फिर एनडीए में लौटने के संकेत दे रहे हैं. गुरुवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और ओम प्रकाश राजभर की वाराणसी में लंबी मुलाकात हुई. इस मुलाकात के बाद कयास लगाए जाने लगे कि लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा और सुभासपा में फिर गठबंधन हो सकता है. आज के हालात में राजभर के पास कम ही विकल्प हैं. सपा से उनकी अनबन हो गई है और बसपा और कांग्रेस की ऐसी स्थिति नहीं है कि वह कोई चमत्कार दिखा सकें. ऐसे में भाजपा का साथ उन्हें फिर भाने लगा है.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की राजनीति. सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की राजनीति.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का गठन ओमप्रकाश राजभर ने 2002 में किया था. वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने सुभासपा से गठबंधन किया. इस चुनाव में नरेंद्र मोदी वाराणसी से चुनाव लड़ रहे थे और प्रधानमंत्री पद के दावेदार थे. ऐसे में भाजपा अपना दल और सुभासपा जैसे पूर्वांचल में प्रभाव रखने वाले दलों से भी गठबंधन किया. वर्ष 2014 में राजभर को भले ही कोई सफलता न मिली हो, लेकिन वर्ष 2017 में भाजपा से गठबंधन का लाभ मिला और उसके चार प्रत्याशी चुनकर विधानसभा पहुंच गए. लंबे राजनीतिक संघर्ष के बाद पहली बार चुनकर विधानसभा पहुंचे ओम प्रकाश राजभर को योगी मंत्रिमंडल में भी जगह मिल गई. गठबंधन में सुभासपा को आठ सीटें मिली थीं, जिनमें वह चार पर जीतने में सफल रही.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की राजनीति. ओम प्रकाश राजभर ने 20 मई 2019 को आरक्षण का लाभ न पाने वाली पिछड़ी जातियों को भी इसका लाभ दिलाने की मांग न माने जाने पर मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. हालांकि इसके पीछे असल कारण कुछ और थे. राजभर अपने दोनों बेटों को कहीं न कहीं समायोजित कराना चाहते थे, लेकिन भाजपा राजभर के दबाव में नहीं आई. वह भाजपा के खिलाफ खुलकर बयानबाजी करने लगे. अंतत: कटुता इतनी बढ़ गई कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. इसके अलावा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में राजभर भाजपा पर दो लोकसभा सीटें देने का दबाव बना रहे थे. भाजपा ने यह दबाव भी नहीं माना. हां, उसने सुभासपा को घोसी सीट देने का मन बना लिया था, लेकिन राजभर इस पर राजी नहीं हुए. दबाव बनाने के लिए उन्होंने 39 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर दी. हालांकि राजभर को लोकसभा चुनाव में कोई सफलता नहीं मिली.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की राजनीति.
वर्ष 2022 में सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने भाजपा को उत्तर प्रदेश की सत्ता से उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया. इस गठबंधन में राजभर की पार्टी के हिस्से में 18 सीटें आईं, जबकि वर्ष 2017 में भाजपा ने उन्हें आठ सीटें दी थीं. समाजवादी पार्टी ने राजभर को 18 सीटें जरूर दीं, लेकिन कई सीटों पर सपा नेताओं को ही सुभासपा के टिकट पर लड़ाने की शर्त रख दी, जिसे राजभर को मानना पड़ा. इस चुनाव में सुभासपा के छह विधायक जीतकर आए, जिनमें कुछ सपा मूल के नेता थे और आज भी अखिलेश यादव के ही करीबी हैं. वर्ष 2022 के चुनाव के बाद सपा-सुभासपा का गठबंधन चार माह में ही टूट गया. राजभर को लगने लगा कि उन्होंने बड़ी गलती की है. भाजपा छोड़ने से मंत्री पद गया, सत्ता का साथ गया और बदले में मिला कुछ भी नहीं. ऐसे में बहुमत के साथ जीतकर आई भाजपा भी उन्हें खास तवज्जो नहीं दे रही थी. अब चूंकि लोकसभा के चुनाव आ रहे हैं. ऐसे में भाजपा और राजभर दोनों को एक-दूसरे की जरूरत महसूस होने लगी है. यही कारण है कि भाजपा नेताओं के साथ ओम प्रकाश राजभर की गुपचुप मुलाकातें शुरू हो गई हैं. अभी राजभर अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं, लेकिन आने वाले कुछ महीनों में राजभर एक बार फिर भाजपा के हमराह होते दिखाई दे सकते हैं.
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर की राजनीति.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. आलोक राय कहते हैं उत्तर प्रदेश में आज जो हालात हैं, उन्हें देखकर ऐसा लगता है कि सुभासपा और भाजपा में फिर गठबंधन बन सकता है. हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन को देखें तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य और बुंदेलखंड में उसने उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन किया था. पूर्वांचल में भाजपा का प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा था. ऐसे में पूर्वांचल में पार्टी को मजबूत करने और केंद्र में एक बार फिर सत्ता में आने के लिए भाजपा सुभासपा को एनडीए में शामिल कर सकती है. इसका फायदा दोनों ही दलों को है. राजभर अकेले लंबे समय तक राजनीति करके देख चुके हैं. बिना बड़े दल के साथ गठबंधन किए उन्हें सफलता मिलने वाली नहीं है. ऐसे में भाजपा से बेहतर भला कौन होगा.
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