लखनऊ:साल का आखरी दौर भी बागवानों को नुकसान का दर्द देकर जा रहा है. मौजूदा समय में मौसम के बदले मिजाज ने बागवानों के सामने एक बार फिर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. दिसंबर माह में अधिक तापमान होने की वजह से 80 प्रतिशत तक दशहरी आम के पेड़ों में बौर निकलने की प्रक्रिया निर्धारित समय से एक माह पूर्व ही शुरू हो गई है. जो आम के उत्पादन के लिए घातक है और आगामी फसल को भारी नुकसान होने का संकेत दे ही है.
दशहरी आम की फसल को लेकर एक रिपोर्ट... बीते वर्ष मंडियों में नहीं मिली आम की उचित कीमतयह साल फलपट्टी के बागवानों के लिए ठीक साबित नहीं हुआ. इस वर्ष ने बागवानों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ दी. पहले जून-जुलाई में तैयार हुई आम की फसल को कोरोना की मार झेलनी पड़ी, जिसकी वजह से बागवानों को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ा. कोरोना की वजह से बागवानों का आम देश की बहुत सी मंडियों में सीधे नहीं पहुंच सका, जिससे उनकी फसल की लागत भी नहीं निकल सकी.
छिड़काव के बाद भी नहीं हो रहा दवा का कोई असरमलिहाबाद के किसान मुलायम सिंह ने बताया कि इस बार बागों में अगमन बौर निकल आया है, जिससे बहुत दिक्कतें बढ़ गई हैं. बौर काला पड़ा जा रहा हैं. कई वैज्ञनिकों और डॉक्टरों से बात की, लेकिन अगमन बौर न निकलने की कोई दवा अभी नहीं है. हम छिड़काव पर छिड़काव किए जा रहे हैं. लेकिन दवा से कोई फायदा नहीं दिख रहा है. हम लोगों को बहुत तकलीफ हो रही है. अगर ऐसे ही रहा तो हम लोगों का बड़ा नुकसान होगा.
बागों में समय से पहले बौर आना खतरे की घंटी
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के निदेशक शैलेंद्र राजन ने बताया कि आम में इस सीजन बौर का निकलना एक चिंताजनक कारण है. आमतौर से आम के बौर फरवरी और मार्च में निकलते हैं तब एक अच्छी उपज की संभावना होती है. लेकिन जब दिसंबर माह में ही बौर निकल आए तो चिंता की बात है. आम तौर पर देखा गया है कि जाड़े में निकले बौर अधिक सर्दी के कारण काले होकर गिर जाते हैं.
उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में तापमान के अत्यधिक गिरने से ये बौर नष्ट हो जाएंगे. आजकल बौर निकल आने के कई कारण है. एक तो प्रकृति में बदलाव और कुछ किसानों द्वारा पेट्रांबोलिजाल के उपयोग से बौर जल्दी निकल आता है. अभी इसका कोई उपाय नहीं है, जिसके प्रयोग से इन बौरों को निकलने से रोका जा सके. लेकिन अभी शोध कार्य चल रहा है कि भविष्य में इस बौर को देर से निकलने के लिए प्रयत्न किए जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि बहुत से क्षेत्रों में जहां तापमान नींचे नहीं जाता है, वहां के लोग खुश होते हैं कि जल्दी बौर आएगा तो फसल जल्दी आएगी. लेकिन उत्तर भारत मे बिल्कुल इसके विपरीत हैं, जल्दी बौर आना खतरे से खाली नहीं है.
मौजूदा समय मे मौसम के बदले मिजाज ने बागवानों के सामने एक बार फिर मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. दिसम्बर माह में अधिक तापमान होने से बागों में बौर आना शुरू हो गया है, जिससे किसान काफी चिंतित हैं .