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नवाबों के शहर में कटी पतंगें काट रही बिजली

बिजली चोरी के मामले में तो राजधानी का पुराना लखनऊ अव्वल है ही. पतंगबाजी के चलते बिजली गुल होने के मामले में भी शहर का यही इलाका पहले स्थान पर है. चौक, ठाकुरगंज, अमीनाबाद, अपट्रान, ऐशबाग और हुसैनगंज सहित कई और खंडों की 90 फीसद से ज्यादा बिजली आपूर्ति पतंगबाजी के चलते बाधित हुई है.

पतंगों के कारण बिजली की कटौती.
पतंगों के कारण बिजली की कटौती.

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Published : Dec 1, 2020, 3:16 PM IST

लखनऊः बिजली विभाग ने इन सभी खंडों में अक्टूबर माह से लेकर नवंबर माह तक ट्रिप हुई विद्युत आपूर्ति का आंकलन किया तो अक्टूबर में 90 फीसद और नवंबर में 95 फीसद विद्युत आपूर्ति खस्ताहाल हुई. अब ऐसे में बिजली विभाग को यहां की पतंगबाजी पर अंकुश लगाने की जरूरत महसूस हो रही है.

पतंगों के चलते कट रही बिजली.

नवाबों का पतंगबाजी का शौक बना सरदर्द
इस बार पहले की तुलना में लखनऊ में कहीं ज्यादा पतंगबाजी हुई है. कोरोना के कारण घरों पर मौजूद लोगों ने पतंगबाजी का सहारा लिया. लोगों का शौक बिजली विभाग के लिए शॉक लगने वाला साबित हुआ है. दीपावली के एक दिन बाद जमघट में आसामान में पतंगों का जमघट लगा तो शहर में बिजली गुल होनी भी शुरू हो गई. बिजली विभाग की ओर से जारी आंकड़ों में बताया गया कि 10 नवंबर से 25 नवंबर के बीच 100 फीसद पुराने लखनऊ के ज्यादातर इलाकों की विद्युत आपूर्ति सिर्फ तार लगी पतंगों की वजह से गुल हुई. पतंगे तारों पर गिरने से कई बार सप्लाई ठप हुई. तार बंधी पतंगें विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए निर्बाध बिजली आपूर्ति के लिए चुनौती बन गई.

इन इलाकों में पतंगें बनीं मुसीबत
बिजली विभाग के अधिकारी बताते हैं कि न्यायालय ने तार बंधी पतंगों पर रोक लगा रखी है. इसके बाद भी ऐशबाग, पानदरीबा, हुसैनगंज, मवैया, राजाजीपुरम, चारबाग, चौपटिया, ठाकुरगंज, अमीनाबाद, लाटूस रोड, लालकुआं, अपट्रान, मोतीझील, चौक, मेडिकल कॉलेज, सिटी स्टेशन, रेजीडेंसी सहित कई और जगहों पर तार बंधी पतंगें उड़ाई जाती हैं. जिसकी वजह से आए दिन बिजली ट्रिप होती है. उपभोक्ता इसके लिए बिजली विभाग को ही जिम्मेदार मानते हैं.

ओएचई बनी है समस्या
अभी भी करीब पुराने लखनऊ की 50 फीसदी लाइनें ओरवहेडेड हैं. जब पतंग कटकर तारों पर आकर गिरती है तो जोरदार धमाका होने के बाद विद्युत आपूर्ति घंटों बाधित गुल हो जाती है. बसपा सरकार से लेकर सपा सरकार में इन खंडों के बहुत से क्षेत्रों की लाइनों को भूमिगत किया गया, लेकिन अभी भी कई जगहों पर लाइनों को अंडरग्राउंड किया जाना बाकी है. बसपा सरकार में 2010 में शक्ति सिंह के मुख्य अभियंता रहने के दौरान मुंबई की ही तर्ज पर लाइनों को अंडरग्राउंड करने का काम शुरू किया गया. जो सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान चलता रहा. 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद भी कुछ क्षेत्रों में लाइनें अंडरग्राउंड की गईं.

जाल कम कर रहा कटौती का जंजाल
लखनऊ विद्युत संपूर्ति प्रशासन (लेसा) के तत्कालीन मुख्य अभियंता सुधीर कुमार वर्मा ने तार बंधी पतंगों से सबस्टेशनों के पॉवर ट्रांसफॉर्मरों को बचाने के लिए आसपास जाल लगाकर घेराव करा दिया था. उसी समय पुराने लखनऊ के करीब 70 फीसदी बिजली घरों के पॉवर ट्रांसफॉर्मरों पर जाल को बिछाने का काम सम्पन्न हुआ. इसकी वजह से तार लगी पतंग कटने के बाद भी बिजली नहीं कटती.

महंगी पड़ती हैं अंडरग्राउंड लाइनें
वर्ष 2010 के बाद से जिस तरह से शहर के अंदर की लाइनों को भूमिगत किए जाने का काम प्रारंभ हुआ था, उस हिसाब से तीन से चार सालों में सभी लाइनें पूरी तरह अंडरग्राउंड हो जानी चाहिए थी, लेकिन ओवरहेडेड लाइनों की अपेक्षा भूमिगत लाइनें करीब पांच गुनी पड़ती हैं. यही वजह है कि कई इलाकों में अभी भी अंडरग्राउंड लाइनों के बजाय ओवरहेड लाइनें ही पड़ी हैं.

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