लखनऊ:किसी भी राष्ट्रीय पार्टी का जिलाध्यक्ष और महानगर अध्यक्ष जैसे पद हासिल करना बड़ी उपलब्धियों में सुमार है. माना जाता है कि ऐसे पदों से राजनीति में अच्छे दिनों की शुरुआत हो जाती है. राजधानी में बीजेपी महानगर अध्यक्ष का ऐसा पद है, जिसे लेकर राजनीति के अजातशत्रु नाम से जाने जाने वाले अटल बिहारी बाजपेयी, पूर्व गृह मंत्री व मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से लेकर यूपी के पूर्व सीएम कल्याण सिंह जैसी बड़ी-बड़ी शख्सियतें रुचि लेती रही हैं. लेकिन पिछले 20 वर्षों में लखनऊ महानगर अध्यक्ष की कुर्सी पर आने वाले नेताओं की राजनीति में चार चांद नहीं लग पाया. इस पद से हटने के साथ ही उनके राजनीतिक सफर में मानो विराम लग जाता है.
भाजपा की स्थापना छह अप्रैल 1980 को हुई. स्थापना वर्ष में सतीश चंद्र सक्सेना महानगर इकाई के पहले अध्यक्ष बने. वह 1982 तक इस पद पर रहे. 1982 में बद्री प्रसाद अवस्थी अध्यक्ष बने जो 1985 तक इस पद पर विराजमान रहे. 1985 में श्रीनिवास तिवारी लखनऊ महानगर बीजेपी के अध्यक्ष बने. इसके बाद भगवती प्रसाद शुक्ला 1986 से 89 तक अध्यक्ष रहे. सुरेश श्रीवास्तव 89 से 91 तक अध्यक्ष रहे. 91 में एक बार फिर बद्री प्रसाद अवस्थी महानगर भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए. इनके बाद फिर भगवती प्रसाद शुक्ला 1993 से 1996 तक अध्यक्ष रहे. यहां तक के लोग सीधे प्रदेश की राजनीति में छलांग लगाते रहे या फिर यूं कहें किविधायक बनते रहे. इनमें से सुरेश श्रीवास्तव हों या फिर भगवती प्रसाद शुक्ल विधायक बनने से सफल रहे, लेकिन इसके बाद की परिस्थितियां बदल गईं थीं.
जब अटल और कल्याण के बीच फंस गए नगर अध्यक्ष
पार्टी के नेता राजेन्द्र तिवारी को 1998 में महानगर का अध्यक्ष बनाया गया. वर्ष 1999 अप्रैल में उन्हें अटल जी के कोप का भाजन होना पड़ा. बताते हैं कि अटल जी के निर्देश पर उन्हें पद से हटा दिया गया था. संगठन से हटाए जाने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अपनी सरकार में उन्हें दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री बना दिया. कल्याण सरकार में वह आवश्यक वस्तु निगम के अध्यक्ष बनाए गए. कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री पद से हटने के साथ ही राजेन्द्र तिवारी का पद भी चला गया. यहीं से बड़े बड़े नेताओं की महानगर अध्यक्ष बनने में दिलचस्पी बढ़ती गयी, लेकिन राजेन्द्र तिवारी आखिरी व्यक्ति हैं जो सरकार में शामिल हो पाए. महानगर अध्यक्ष पद से हटाकर संचालन समिति का गठन कर दिया गया. संचालन समिति में बद्री प्रसाद अवस्थी, भगवती प्रसाद शुक्ला एवं सुरेश चंद्र श्रीवास्तव को रखा गया.