लखनऊ :वर्ष 1990 में जब देश में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू हुई थीं. उसी दौरान अयोध्या में आंदोलन चल रहा था. उत्तर प्रदेश की राजनीति में तब मंडल और कमंडल की राजनीति शुरू हो गई थी. भाजपा हिंदुत्व की राजनीति कर रही थी और विपक्ष मंडल की राजनीति कर रहा था. जिसमें कभी भाजपा ऊपर हुई तो कभी विपक्ष ने दम लगाया था. रामचरितमानस पर हमला बोलकर समाजवादी पार्टी ने अब एक बार फिर से मंडल और कमंडल की राजनीति शुरू की है. जिसका सामना करने के लिए भारतीय जनता पार्टी में भी पिछड़े और दलित नेताओं को आगे कर दिया है.
देश के प्रधानमंत्री वर्ष 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह थे. तब राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था. उस वक्त राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी राजनीति को कमंडल की राजनीति कहा गया था. इसी वक्त मंडल कमीशन की सिफारिशों को प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने लागू कर दिया था. जिसकी वजह से समाज के पिछड़े वर्ग को 27 फ़ीसदी में आरक्षण देने की घोषणा हुई थी. इस आरक्षण की व्यवस्था के साथ में सवर्णों ने एक बड़ा आंदोलन शुरू किया था. अनेक युवाओं ने आत्मदाह कर लिया था. तब पिछड़ों और राम मंदिर आंदोलन की जो राजनीति पार्टी मंडल और कमंडल की राजनीति कहा गया था. जिसके पास लगातार उत्तर प्रदेश के चुनाव जातिगत आधार पर लड़े गए.
वर्ष 1990 में राम मंदिर आंदोलन के बाद हुए चुनाव में राम लहर चल गई थी. इसकी वजह से भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश में और केंद्र में जबरदस्त सफलता मिली थी. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी एक हुए. इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से दोनों ने सरकार बनाई थी. इसके बाद लगातार कमंडल की राजनीति चलती रही और उत्तर प्रदेश जातिगत आधार पर बंटता रहा.