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विधानसभा चुनावों के समय भाजपा में आए नेता भुगत रहे वनवास

जगजाहिर है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता. इसके बावजूद मतलबपरस्ती या फिर राजनीतिक विचारधारा की आड़ मेे नेता दल बदल करते ही हैं. दल बदल के दांव पर कई नेताओं ने राजनीतिक इमारत इतनी ऊंची कर ली है कि उनके आगे राजनीतिक दलों के आका भी सिर नवाते नजर आते हैं. वहीं कई दर बदर ही रहते हैं. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण.

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Published : Apr 19, 2023, 8:00 PM IST

Updated : Apr 19, 2023, 9:51 PM IST

लखनऊ : प्रदेश में हुए 2022 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले विभिन्न दलों के नेता भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. जाहिर है जब कोई राजनेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी में शामिल होता है तो उसे बेहतर भविष्य की उम्मीद होती है. कई बार वादे भी किए जाते हैं. हालांकि भाजपा में आए ज्यादातर नेताओं के हाथ अभी तक रीते ही हैं. जो प्रमुख नेता उस वक्त भाजपा में शामिल हुए थे, उनमें प्रमुख रूप से मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव बिष्ट, उत्तर प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष रहे पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी, पूर्व मंत्री और सपा से चार बार विधायक और एक बार विधान परिषद के सदस्य शतरुद्र प्रकाश, छह बार विधायक रहे शिवेंद्र सिंह और पूर्व विधायक भगवान सिंह कुशवाहा के नाम प्रमुख हैं.

विधानसभा चुनावों के समय भाजपा में आए नेता भुगत रहे वनवास.
किसी भी राज्य अथवा लोकसभा के चुनावों के वक्त प्राय: राजनेता बेहतर भविष्य और विचारधारा के आधार पर दल बदल करते हैं. प्रदेश में हुए वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों से पहले भी तमाम नेताओं ने पाला बदला. दलबदल करने वाले कुछ नेता बताते हैं कि उनसे ज्वाइनिंग कमेटी के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत बाजपेई, तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी अथवा सरकार में समायोजन का वादा भी किया था, ताकि इन नेताओं का सम्मान बना रहे, लेकिन एक साल से ज्यादा वक्त बीत जाने के बाद भी इन नेताओं को पार्टी के निर्णय की प्रतीक्षा है.
विधानसभा चुनावों के समय भाजपा में आए नेता भुगत रहे वनवास.
समाजवादी कुनबा छोड़कर भाजपा में आईं अपर्णा यादव ने विधानसभा चुनावों में अपने जेठ अखिलेश यादव की पार्टी के खिलाफ खूब प्रचार-प्रसार भी किया. उस समय कयास लगाए जा रहे थे कि भाजपा उन्हें लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से प्रत्याशी बना सकती है, पर ऐसा नहीं हुआ. इसके बाद लोगों ने कयास लगाए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की करीबी माने जाने वाली अपर्णा को वह अपने मंत्रिमंडल में मौका देंगे, जो नहीं हुआ. फिर लोकसभा के उपचुनाव में चर्चा चली कि पार्टी उन्हें मैनपुरी से जेठानी डिंपल यादव के सामने मैदान में उतरेगी, लेकिन यह भी नहीं हुआ. बाद में कहा गया कि विधानसभा की रिक्त छह सीटों पर भाजपा उन्हें नामित करा सकती है, लेकिन यह उम्मीद भी टूट गई. गौरतलब है कि समाजवादी पार्टी ने अपर्णा को वर्ष 2017 में लखनऊ की कैंट विधानसभा सीट से मैदान में उतारा था, लेकिन वह भाजपा की रीता जोशी से 33 हजार से ज्यादा वोटों से पराजित हो गई थीं.
विधानसभा चुनावों के समय भाजपा में आए नेता भुगत रहे वनवास.
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निकट सहयोगी रहे पूर्व मंत्री सत्यदेव त्रिपाठी का भी यही हाल है. वह कांग्रेस के बड़े नेता रहे हैं और उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर व चौधरी चरण सिंह समय का नेता माना जाता है. वर्ष 2019 में जब कांग्रेस ने प्रियंका गांधी को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया तो इस दौरान उनके कुछ मतभेद हो गए, जिसके बाद अनुशासनहीनता में सत्यदेव त्रिपाठी सहित 10 नेताओं को कांग्रेस से बाहर कर दिया गया. जिसके बाद 15 दिसंबर 2021 को इन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. उनके साथ पुत्र अभिषेक त्रिपाठी ने भी भाजपा की सदस्यता ली, पर दोनों के ही हाथ अब तक रीते हैं. इसी तरह वाराणसी कैंट विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे पूर्व मंत्री शतरुद्र प्रकाश भी 21 दिसंबर 2021 को भाजपा में शामिल हुए थे. उन्हें वाराणसी के बड़े नेताओं में शुमार किया जाता है. वर्ष 1970 से अलग-अलग आंदोलनों में भूमिका निभाने वाले शतरुद्र प्रकाश डेढ़ दर्जन से ज्यादा बार जेल गए और कई बार गिरफ्तारियां दीं. सोशलिस्ट आंदोलन से निकले शतरुद्र प्रकाश मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाते थे. अखिलेश यादव के राजनीति क्रियाकलापों से वह नाखुश थे. शायद इसी कारण उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली. उस वक्त शतरुद्र प्रकाश विधान परिषद के सदस्य थे. पार्टी ने उनकी भी कोई सुध नहीं ली है. ऐसे नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, जो भाजपा में शामिल हुए और अब उपेक्षित हैं.
विधानसभा चुनावों के समय भाजपा में आए नेता भुगत रहे वनवास.
इस संबंध में राजनीतिक विश्लेषक डॉ. एसटी मिश्र कहते हैं भारतीय जनता पार्टी की अपनी एक शैली है. अन्य दलों की भांति भाजपा में भीतर क्या चल रहा है, यह किसी को पता नहीं होता. मीडिया में भी कयासों पर ही केंद्रित समाचार होते हैं, क्योंकि पार्टी संगठन की बातें और फैसले बाहर नहीं आ पाते. दूसरी बात इस पार्टी में कोई भी निर्णय किसी एक व्यक्ति के कहने से नहीं होता. यहां सामूहिक निर्णय चलता है. इसलिए यदि किसी नेता को पार्टी ज्वाइन कराते समय यदि कोई नेता किसी तरह का वादा कर लेता हो, तो इसके खास मायने नहीं हैं. हां, यदि कोई व्यक्ति संगठन को उपयोगी लगता है, तो उसका उपयोग देर-सबेर होता जरूर है. फिर वह चाहें अपर्णा यादव हों अथवा अन्य कोई नेता.
Last Updated : Apr 19, 2023, 9:51 PM IST

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