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यूपी में पसमांदा मुसलमानों को लेकर सियासत तेज, बीजेपी और विपक्ष आमने सामने

देश की सियासत में उत्तर प्रदेश की राजनीति का गहरा महत्व होता है. बात की जाए अगर यूपी की सियासत की तो यहां पर अल्पसंख्यक समुदाय का वोट भी काफी असरदार माना जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव और कुछ ही समय बाद होने वाले यूपी में निकाय चुनाव को लेकर प्रदेश की मौजूदा सरकार और विपक्ष आमने सामने है. भाजपा यूपी में मुस्लिम वोटर को रिझाने के लिए तमाम प्रयास कर रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष भाजपा पर आरोप लगा रहा है कि हमेशा असल मुद्दों से भटकाकर बीजेपी हिंदू, मुसलमान, मंदिर, मस्जिद जैसी चीजों पर वोट मांगती है.

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Published : Nov 19, 2022, 9:44 PM IST

लखनऊ :देश की सियासत में उत्तर प्रदेश की राजनीति का गहरा महत्व होता है. बात की जाए अगर यूपी की सियासत की तो यहां पर अल्पसंख्यक समुदाय का वोट भी काफी असरदार माना जाता है. 2024 के लोकसभा चुनाव और कुछ ही समय बाद होने वाले यूपी में निकाय चुनाव को लेकर प्रदेश की मौजूदा सरकार और विपक्ष आमने सामने है. भाजपा यूपी में मुस्लिम वोटर को रिझाने के लिए तमाम प्रयास कर रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष भाजपा पर आरोप लगा रहा है कि हमेशा असल मुद्दों से भटकाकर बीजेपी हिंदू, मुसलमान, मंदिर, मस्जिद जैसी चीजों पर वोट मांगती है.

मुसलमानों को लेकर देश और प्रदेश में सियासत कोई नई बात नहीं है. यूपी ऐसा राज्य है जहां पर मुस्लिम समुदाय की आबादी देश के दूसरे राज्यों की तुलना में ज़्यादा है. लिहाजा राजनीतिक दल भी यूपी के मुसलमानों का वोट हासिल करने के लिए तमाम सियासी हथकंडे अपनाते हैं. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस पर आरोप लगता है कि इन सियासी दलों ने मुसलमानों का वोट तो लुभावने वादे कर प्राप्त किया, लेकिन उनको समाज कि मुख्य धारा से जोड़ने के बजाय सिर्फ सियासत की. अब बीजेपी अल्पसंख्यक समुदाय का भरोसा हासिल करने के लिए तमाम प्रयत्न करती दिखाई दे रही है. जिसके तहत यूपी में पसमांदा मुसलमानों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के वादे के साथ मैदान में दिखाई पड़ रही है जिससे विपक्षी पार्टियां चिंतित नज़र आ रही हैंं.

उत्तर प्रदेश की राजनीति की जानकारी देते संवाददाता अर्सलान समदी.


भाजपा द्वारा दिए गए नारे सबका साथ सबका विकास और सबका विश्वास पर अमल करते हुए यूपी सरकार भी अल्पसंख्यकों को बेहतर शिक्षा, चिकतिसा और सुविधाएं देने का दावा कर रही है. जिसकी कमान योगी सरकार ने पसमांदा समाज से आने वाले युवा चेहरे मंत्री दानिश आजाद अंसारी को सौपी है. दानिश अंसारी की मुस्लिम समाज से हर तबके और ख़ासतौर से पसमांदा मुसलमानों में बेहतरीन पकड़ और प्रतिष्ठा के चलते अल्पसंख्यक समाज आशा भरी नजरों से बीजेपी की तरफ देख रहा है.

बीजेपी नेता शफाहत हुसैन (BJP leader Shafahat Hussain) का कहना है कि दानिश अंसारी के नेतृत्व में तमाम पसमांदा मुसलमान बीजेपी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहता है, क्योंकि एक लंबे वक्त से मुसलमानों के ऊपर सियासत होती आई है. मुसलमानों में दानिश आजाद अंसारी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए शफ़ाअत हुसैन का दावा है कि दानिश अंसारी पसमांदा मुसलमानों के खलीफा हैं. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा (BJP Minority Front) के कार्यालय प्रभारी असरार अहमद का कहना है कि बीजेपी की विकास की सियासत को देखते हुए अधिक संख्या में पसमांदा मुसलमान बीजेपी के साथ जुड़ रहा है. असरार अहमद कहते हैं कि हमारी सरकार भी अल्पसंख्यकों के हितों में तमाम काम कर रही है. जिसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव और कुछ समय बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले निकाय चुनाव में देखने को मिलेगा.



धर्मों की सियासत बीजेपी का पुराना फंडा :समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता फखरुल हसन चांद (Samajwadi Party spokesperson Fakhrul Hasan Chand) का कहना है कि बीजेपी ने हमेशा से धर्मों को बांट कर सियासी फायदा हासिल करने की कोशिश की है. पसमांदा मुसलमानों पर बीजेपी मुद्दों से भटकाने के लिए सियासत कर रही है. खुद पसमांदा समाज से आने वाले सपा नेता फखरुल हसन चांद का कहना है कि मुसलमानों में कोई बड़ा छोटा नहीं माना जाता है, लेकिन बीजेपी अगला बनाम पिछड़े की सियासत करके अल्पसंख्यक समुदाय का वोट हासिल करना चाहती है, लेकिन मुस्लिम समाज बीजेपी की सियासत को बाखूबी जानता है और 2024 लोकसभा चुनाव या फिर नगर निकाय चुनाव में बीजेपी के साथ ना जाकर समाजवादी पार्टी पर भरोसा जताएगा.

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